कविता

मंजूरी चाहिए

 manjuri chahiye

मैने भी पढ़ना हैसमय नहीं मांगती

बस मंजूरी चाहीऐ

काम पर भी आऊंगी

झाड़ू पोछा भी करूंगी

बस मंजूरी दे दो मुझे

मैने भी पढ़ना है

पढ़ूंगी तो बिटिया को

पढ़ा सकूंगी मैं

नही देखा जाता मुझसे

झाड़ू कटका करना उसका

बहुत सहा मैने जिंदगी में

मेरी बिटिया न सहे वो सब

मंजूरी दे दो मुझे बस

मैने भी पढ़ना है

अब अंगूठा नही लगाना

सही करना है मुझे भी

अब कोई खेत न छीने

अब पढ़ कर सही करना है

मंजूरी दे दो मुझे बस

मैने भी पढ़ना है

पढ़ कर खेत वापस लेने हैं

घर छुड़वाना है अपना

बच्चो को छत देनी है

उन्हे पढ़ाई का महत्व

सब समझाना है

पढ़ूंगी तो पति को लाऊंगी

उन्हे परिवार का महत्व

समझा पाऊंगी मैं

बच्चो को भी कुछ बनाना है

पढ़ाई का महत्व समझाना है

बिटिया पढ़ी लिखी होगी

तभी तो उसका भविष्य

सब मुझे ही संवारना है

मंजूरी दे दो बस

मुझे भी पढ़ना है

राजू मोनू को देखा नही जाता

छोटे छोटे हाथो से मज़दूरी करते

मुझे उन्हे भी समझाना है

पढ़ाई का महत्व बताना है

क्या कर पाऊंगी मैं सब

पर मुझे करना ही है

मुझे पढ़ना ही है

अभी सो जाती हूँ

सुबह काम पर भी जाना है

घर का काम करके

रात को पढ़ना भी है

मंजूरी दे दो मुझे बस

मेरी उमर को न देखो

मेरी लगन को पहचानो

रमा शर्मा
कोबे, जापान

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'

2 thoughts on “मंजूरी चाहिए

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर कविता !

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