धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आर्यसमाज अन्धविश्वास व कुरीतियों को भस्म करने वाली आग हैः स्वामी आर्यवेश

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव का समापन

वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव रविवार 10 मई 2015 को हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। स्वामी दिव्यानन्द जी के द्वारा प्रातः पांच बजे से 6:30 बजे तक योग प्रशिक्षण का कार्यक्रम हुआ जिसके बाद सामवेद पारायण यज्ञ का अवशिष्ट भाग पूरा किया गया। शुद्ध मन्त्रोच्चार गुरूकुल पौंधा, देहरादून के ब्रह्मचारियों ने किया। यजमानों व धर्मप्रेमी आगन्तुकों ने सामवेद पारायण यज्ञ में श्रद्धापूर्वक आहुतियां समर्पित की। श्रद्धालुओं की अत्यधिक संख्या के कारण मुख्य यज्ञशाला सहित पांच वृहत यज्ञकुण्डों में यज्ञ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी दिव्यानन्द जी ने इस अवसर पर कहा कि यज्ञ त्याग का प्रतीक है। प्रत्येक याज्ञिक को त्याग की भावना बनानी चाहिये। उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा से सभी यज्ञ में भाग लेने वाले व्यक्तियों की कामनायें पूर्ण हों। यज्ञ करने वालों को यज्ञ में की जाने वाली प्रार्थनाओं के अनुसार ही अपना जीवन भी बनाना चाहिये। आपने सभी यज्ञ के सहभागियों की ओर से ईश्वर से सभी की सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री उत्तम मुनि जी ने कहा कि यज्ञ की भावना इदन्न मम’ अर्थात् संसार में मेरा अपना कुछ भी नहीं है, जो है वह सब ईश्वर का है, ऐसी भावना सभी यजमानों व धर्मप्रेमियों की बनानी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस भावना को जीवन में चरितार्थ करना है। इसके बाद स्वामी दिव्यानन्द जी ने यज्ञ में भाग लेने वाले सभी बन्धुओं को आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद का कार्यक्रम आश्रम में वृहद् सभागार में हुआ।

ग्रीष्मोत्सव के मुख्य अतिथि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली के प्रधान स्वामी आर्यवेश जी ने समारोह में बड़ी संख्या में देश भर से पधारे धर्मप्रेमियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे तपोवन आश्रम, देहरादून में आने का अवसर मिला है। आज की परिस्थिति में देश में यदि कोई आशा की किरण दिखाई देती है तो वह आर्यसमाज है।  आर्य समाज एक आशावादी संगठन है, यह कभी निराश नहीं हुआ। देश की गुलामी के दिनों में आर्यसमाज का आविर्भाव हुआ और थोड़े से समय में ही यह विश्व भर में विख्यात हो गया। अमेरिका के एक विद्वान ने महर्षि दयानन्द के ही समय में उनके बारे में लिखा था कि मुझे आर्य समाज के रूप में एक आग दिखाई देती है जो देश के सभी अन्धविश्वास, अज्ञान व कुरीतियों को दूर कर रही है। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज की आग इसकी विचारधारा की आग है। इस आग में आर्यसमाज के नेताओं का बलिदान व देश की धार्मिक व सामाजिक उन्नति के लिए इनका समर्पण भी है। पूरी दुनिया में केवल एक ही संस्था है जो यह घोषणा करती है कि संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करना। बसुधैव कुटुम्बकम के विचार को केन्द्र में रखकर महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना की थी। आर्यसमाज मानव मात्र के उपकार व कल्याण की बातें सोचता है। नई पीढ़ी को संस्कारित करना आज की मुख्य आवश्यकता है। ईश्वर को क्यों मानें, वेद ईश्वरीय ज्ञान है, यज्ञ क्यों करें आदि, इन विषयों को युक्ति व प्रमाणों से नई पीढ़ी को समझाना होगा। यदि हम विफल रहे तो आने वाला समय बहुत खतरनाक होगा। हमारी भावी पीढ़ी आज के बच्चे हैं। यह विभिन्न क्षेत्रों में जायेंगे जिसका प्रभाव देश व समाज पर पड़ेगा जो इनके धर्म व संस्कृति से अनभिज्ञ होने के कारण अच्छा नहीं होगा। विद्वान वक्ता ने कहा कि परमात्मा ने मनुष्यों को अन्य योनियों की तरह स्वभाविक ज्ञान नहीं दिया जिससे हमारे सभी कार्य चल जायें। मनुष्य को सभ्य बनाने का ज्ञान यदि बच्चों को नहीं मिलेगा तो उनका निर्माण अच्छी प्रकार से नहीं होगा। इस पर आपने विस्तार से चर्चा की और सभी पहुलुओं पर सारगर्भित एवं प्रेरक प्रकाश डाला। अच्छे संस्कारों के न होने के कारण ही आज समाज को सच्चे, अच्छे, निष्ठावान व ईमानदार लोग नहीं मिलते हैं। ईमानदार अफसरों के प्रति अपने अनुभवों को भी आपने प्रस्तुत किया और कहा कि सर्वत्र उनकी प्रशंसा होती है। भ्रष्ट जीवन का भी आपने चित्रण किया और सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से मालामाल बनने की घटनाओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समाज में कुछ थोड़े से लोगों के ईमानदार या आदर्श बनने से समाज नहीं चलता। अपवाद कभी सिद्धान्त नहीं बनते। जब तक सभी पदों पर ईमानदार लोग नहीं आयेंगे देश व समाज आगे नहीं जा सकता। आपने युवकों के चरित्र निर्माण पर बल दिया। डा. धनंजय जी की आपने प्रशंसा की। तपोवन में आगामी मई मास में आयोजित युवक-युवती चरित्र निर्माण शिविर की आपने प्रसंशा की। आपने कहा कि नेता की शक्ति उसके अनुयायियों व कार्यकर्ताओं में निहित होती है। उनके सहयोग के बिना किसी योजना व कार्यक्रम को सामाजिक नेता सफल नहीं बना सकते। विद्वान नेता ने सभी श्रोताओं को कहा कि बच्चों व युवकों को इकट्ठा कर उनसे चर्चा कर उऩ्हें अच्छी शिक्षा व विचार दें जिससे समाज का उत्थान हो। उन्होंने कहा कि आज हमें व्यवहारिक होना पड़ेगा। सार्वदेशिक सभा ने देश के सभी आर्यसमाजों, सभाओं व गुरूकुलों आदि के माध्यम से युवक-युवतियों को आर्य संस्कारों से सुसज्जित करने का निर्णय किया है जिससे देश का भविष्य सुरक्षित रह सके। स्वामी आर्यवेश जी ने अनेक अन्य विषयों पर भी सारगर्भित, सामयकि एवं प्रासंगिक विचार प्रस्तुत किये। स्वामी आर्यवेश जी के पूरे वक्तव्य को youtube पर भी सुना जा सकता है।  लिंक है : http://youtu.be/62waFrMZu6s

आर्यजगत के विख्यात विद्वान आचार्य उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ ने अपने ओजस्वी सम्बोधन में कहा कि आर्यसमाज का दृष्टिकोण केवल वेद और यज्ञ तक सीमित नहीं है अपितु जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी इसका व्यापक दृष्टिकोण है। आपने राष्ट्र रक्षा यज्ञ की चर्चा की और कहा कि इसकी आवश्यकता क्यों है व श्रोता इसमें कैसे सहयोग कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि राष्ट्र रक्षा का पहला आधार भाषा होती है। देश में एक समान भाषा के न होने से मनुष्यों को संगठित नहीं किया जा सकता। देश को संगठित करने व इमोशनल इंटिग्रेशन के लिए एक भाषा का होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि एक भाषा नहीं होगी तो एक कोने का व्यक्ति दूसरे कोने के व्यक्ति से जुड़ नहीं सकता। महर्षि दयानन्द के जीवन का उदाहरण देकर विद्वान वक्ता ने कहा कि यद्यपि वह गुजराती थे, उनकी मातृ भाषा गुजराती थी, संस्कृत के वह देश के सबसे बड़े विद्वान थे, संस्कृत को वह धारा प्रवाह सरलता से बोलते थे फिर भी राष्ट्रीय एकता के लिए उन्होंने इन भाषाओं के स्थान पर हिन्दी को महत्व दिया क्योंकि हिन्दी में ही राष्ट्र भाषा होने की शक्ति व सामर्थ्य है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने अपने सभी ग्रन्थ भी हिन्दी में ही लिखे। जहां संस्कृत का प्रयोग आवश्यक था वहां संस्कृत का प्रयोग करते हुए भी उन्होंने उनके हिन्दी अर्थों को प्रस्तुत किया है। महर्षि दयानन्द ने देश भर में घूम कर वैदिक धर्म और संस्कृति का हिन्दी भाषा के माध्यम से प्रचार किया। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज हिन्दी का प्रचार कर रहा है। हमें अपना सभी कार्य हिन्दी में करने के साथ अपने हस्ताक्षर व विवाह आदि के निमत्रण पत्र भी हिन्दी में ही छपवाने चाहिये और अपने मन से हिन्दी के प्रति सभी प्रकार की हीन भावना को दूर करना चाहिये।  उन्होंने सभी श्रोताओं से अपने दैनन्दिन जीवन के सभी कार्यों में हिन्दी का प्रयोग करने की प्रतिज्ञा करने को कहा। उन्होंने हिन्दी के विद्वानों को अंग्रेजी की विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान व अभियांत्रि़क आदि ज्ञान की पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद करने का परामर्श दिया जिससे हिन्दी और अधिक उपयोग में आ सके।

विद्वान वक्ता श्री उमेश कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हमारा धर्मग्रन्थ भी एक होना चाहिये। ऐसा होने से अनेक लाभ और न होने से अनेक हानियां हैं। यह भी राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है जिस पर महर्षि दयानन्द का ध्यान गया था और आर्य समाज पर भी इस स्वप्न को साकार करने का दायित्व है। उन्होंने कहा कि हमारे पौराणिक भाई भी हमारी ही तरह वेद को अपौरूषेय ज्ञान मानते हैं। वेद हम सब का धर्मग्रन्थ होने के साथ सर्वोत्तम व सर्वोपरि राष्ट्रीय ग्रन्थ है। हमारा मनुष्य समाज विभिन्न भागों में बंटा हुआ है। यह बटवारा विगत तीन हजार वर्षों में हुआ है। यह बंटवारा इससे पहले नहीं था। तीन हजार वर्षों से पहले संसार के सभी लोगों का एक ही मत व धर्म वैदिक धर्म था। हमें मनोविज्ञान का सहारा लेकर वेदों के महत्व का जन-जन में प्रचार करना होगा। उन्होंने दृणता व विश्वासपूर्वक घोषणा की कि यह शताब्दी महर्षि दयानन्द के विचारों की शताब्दी बनेगी। वेदों को उन्होंने सार्वभौमिक मनुष्य मात्र का धर्मग्रन्थ बताया। विद्वान वक्ता ने राष्ट्र रक्षा के तीसरे मुख्य कारक जन्मना जातिवाद का उल्लेख कर कहा कि मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव, छुआछूत, छोटे-बड़े का भाव व जन्मनाजातिवाद राष्ट्र की उन्नति, प्रगति व एकीकारण में बाधक है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द की प्रेरणा से स्थापित गुरूकुल व विद्यालयों में कभी किसी से जन्म की जाति नहीं पूछी गई व सबको समान रूप से शिक्षा दी गई। गुरूकुल में पढ़े विद्वान आर्यसमाज सहित सर्वत्र पण्डित जी”महाशय जी”  के नाम से सम्बोधित किये जाते रहे हैं। आर्यसमाज की स्थापना के बाद से आर्यसमाज के पुरोहित जो सभी जन्मना जातियों के होते हैं, विवाह आदि संस्कार कराते आ रहे हैं और इसमें कहीं कोई समस्या नहीं है। अनेक पौराणिक बन्धु भी आर्यसमाज के विवाह संस्कार को गुणवत्ता व श्रेष्ठता की तुलनात्मक दृष्टि से वरीयता देते हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद आरम्भ किये गये आरक्षण ने जन्मना जातिवाद को फिर से फैलाया है। श्री उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि विद्यावान व्यक्ति पण्डित होता है भले हि वह किसी भी जन्मना जाति का क्यों न हो। उन्होंने उदाहरण के लिए यह भी बताया कि आगरा में एक महिला जिसका नाम राजकुमारीजी है, वह लोगों के अन्त्येष्टि संस्कार तक करातीं हैं। राष्ट्र का आधार नारी जाति को धर्मशास्त्रों सहित सभी प्रकार के ज्ञान विज्ञान की शिक्षा से सम्पन्न करना है। इस विषय को प्रस्तुत कर विद्वान वक्ता ने विस्तार से नारी शिक्षा की महत्ता व आर्यसमाज के योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारे गुरूकुलों व विद्यालयों की शिक्षा और व्यवस्था में समयानुकूल सुधार व व्यवस्था का आधुनिकरण होना चाहिये। विद्वान आर्यनेता ने आर्यसमज से गुरूकुलों को उच्च कोटि का शिक्षा संस्थान बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द वर्तमान सहशिक्षा प्रणाली को नहीं चाहते थे। उन्होंने गुरूकुल प्रणाली का स्वरूप प्रस्तुत कर व उसका समर्थन किया। उनके अनुयायियों द्वारा उनके स्वप्नों को साकार रूप दिया जिसकी विद्वान वक्ता ने प्रशंसा की। विद्वान वक्ता ने शुद्धि आन्दोलन की भी चर्चा की और इसे आर्य हिन्दू समाज के लिए अपरिहार्य बताया। उन्होंने भावी संकट से समाज को सावधान किया। श्री कुलश्रेष्ठ ने श्रोताओं से पूछा कि जब हिन्दू ईसाई व मुसलमान बन सकता है तो उसकी शुद्धि क्यों नहीं हो सकती? आर्यसमाज के माननीय विद्वान ने कहा कि देहरादून में यह तपोवन आश्रम इस कारण चल रहा है कि यहां आस पास की आबादी हिन्दू है। उन्होंने कहा कि अपने आसपास के लोगों का ध्यान रखें कि वह किस मत के हैं। ऐसा न हो कि आप उदासीन रहें और बाद में आपको भागना पड़े। विद्वान वक्ता ने समलैगिंकता का उल्लेख कर इसके समर्थकों को मानसिक रूप से असन्तुलित बताया और कहा कि इसका विरोधी केवल आर्यसमाज है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि हमें बुराईयों से संघर्ष करना है और अपने विचारों को बढ़ाना है।

आचार्य आशीष दर्शनाचार्य ने कहा कि सत्य का प्रचार इस प्रकार से होना चाहिये कि सत्य सबके हृदयों में प्रवेश करता हुआ स्थिर हो जाये। आन्तरिक प्रचार की अवहेलना कर बाहरी प्रचार करने के कारण हम लोग पिछड़ गये हैं। हमें दूसरों का जीवन बनाना है तथा समाज में क्रान्ति करनी है। उन्होंने कहा कि कि क्रान्ति का आरम्भ अन्दर से होता है। यदि हम अपने व दूसरों के अन्दर क्रान्ति को प्रज्जवलित करने के साथ अपने लोगों के अन्दर प्रचार व प्रसार करने की भावना रखते हैं तभी आर्य समाज को सफल कर सकते हैं। आर्यजगत के विद्वान श्री आशीष आर्य ने कहा कि यदि हम तर्क को आधार बनाकर अपने बच्चों को ईश्वर संबंधी बातें बतायेंगे तो उनकी ईश्वर को मानने में स्वीकार्यता अधिक होगी। डारविन के विकासवाद की चर्चा कर उन्होंने कहा कि बच्चों को इसे स्कूल में पढ़ाया जाता है जबकि घरों पर इसके विपरीत बातें होती है जिससे बच्चे भ्रमित होते हैं। आचार्यजी ने यज्ञ की चर्चा की और कहा कि हमें यज्ञ को विज्ञान की कसौटी पर सत्य सिद्ध करना है। यज्ञ को रसायन विज्ञान के आधार पर भी मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध करना हमारा कर्तव्य है।  विज्ञान की शरण लेकर हमें समाज व देश में यज्ञ के सत्य व वैज्ञानिक स्वरूप का प्रचार कर इसके पर्यावरण के लिए हितकारी व कल्याणीकारी अर्थात् प्रदूषण निवारक प्रभावों को बताना होगा तभी यह स्वीकार्य होगा। उन्होंने कहा कि हमें यज्ञ से जुड़े सभी प्रश्नों के समाधान तर्क व युक्ति से करने होंगे तभी बच्चे व युवापीढ़ी उन्हें स्वीकार करेंगे। आपने कहा कि आजकल स्कूल हमारे बच्चों के मस्तिष्क को लाजिकल बना रहे हैं। ईश्वर है या नहीं? आर्य समाज का प्रचार आगे कैसे बढ़़े? जैसे प्रश्नों को भी प्रस्तुत कर उन्होंने उनके समाधानों की चर्चा की। श्री आषीश आर्य ने कहा कि यदि हम युवाओं पर ध्यान केन्द्रित करेंगे और तर्क व युक्ति से उन्हें सन्तुष्ट कर सकेंगे तभी वह हमारे विचारों को ग्रहण करेंगे। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हम अपने बच्चों को वैदिक मत की मान्यताओं को तर्क पूर्ण दृष्टि से समझाते व बताते हैं? विद्वान वक्ता ने कहा कि यदि हम शास्त्रीय प्रमाण की बात करने के स्थान पर तर्क व युक्ति से युवा पीढ़ी को सन्तुष्ट करेंगे तो वह अधिक दृण विचारों के बनेंगे। उन्होंने कहा कि युवा उस बात को अपनाते हैं जो युक्ति व तर्क से सिद्ध होती हैं। बच्चों को हमें सत्यार्थ प्रकाश में उल्लेखित विषयों को युक्ति व प्रमाणों के आधार पर बताना चाहिये जिससे बड़े होकर वह सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन कर अपना सुधार करने के साथ प्रचार प्रसार में भी योगदान कर सकें।

देहरादून में आर्ष विद्या के प्रसिद्ध केन्द्र गुरूकुल पौंधा के प्राचार्य डा. धनंजय जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज को स्वर्णिम नियम दिये हैं। महर्षि दयानन्द के प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में वैदिक मान्यताओं की विस्तार से चर्चा है। उन्होंने आर्य समाज के नियम सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्यासत्य का विचार करके करने चाहिए’ का उल्लेख कर कहा कि इस पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। धर्म के सत्य स्वरूप को महर्षि दयानन्द ने जानकर आर्यसमाज के माध्यम से उसका देश विदेश में प्रचार किया। उन्होंने कहा कि धर्म को इसके सत्य स्वरूप में आर्यसमाज व इसके अनुयायियों ने ही आत्मसात किया है। सायण के वेद भाष्य का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि यह हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों की परम्परा व ज्ञान विज्ञान के विरूद्ध होने के साथ नैतिकता के भी विरूद्ध है। सायण भाष्य को अनेक विश्वविद्यालयों में मान्यता दिया जाना और महर्षि दयानन्द के सर्व प्रकार से श्रेष्ठ भाष्य को स्वीकार न करने पर उन्होंने दुख जताया। आपने मानव जीवन शैली में आयी न्यूनता और त्रुटियों की भी चर्चा की। इस विषय में महर्षि दयानन्द की मानव जीवन शैली को अपूर्व देन की भी आपने चर्चा की और कहा कि हमने गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित प्राचीन वैज्ञानिक सामाजिक व्यवस्था को छोड़ा, इस कारण भी समस्यायें आ रही हैं। वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम को उन्नत कर हम युवाओं के चरित्र निर्माण की समस्या का निवारण कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म व संस्कृति के प्रचार, धार्मिक विद्वानों की उत्पत्ति व ऐसे अनेक कार्यों के लिए जनता गुरूकुलों की ओर देखती है। वैदिक धर्म के प्रचार में सफलता तब मिलेगी जब 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग घरों को छोड़कर पूरा समय धर्म प्रचार कार्यों को देंगे। विद्वान आचार्य ने ब्रह्मचर्य आश्रम को शुद्ध व पवित्र बनाने के लिए भी बल दिया और कहा कि इसे इसके यथार्थ रूप में स्थापित करना हमारा धर्म है। उन्होंने 1 जून से 7 जून तक होने वाले आगामी गुरूकुल पौंधा देहरादून के वार्षिक महोत्सव की सूचना भी दी।

आयोजन में प्रवचन करते हुए डा. वीरपाल वेदालंकार ने कहा कि उन्होंने एक व्यक्ति को क्रोध न करने की सलाह दी थी। एक बार उनके घर के सामने उनके एक पड़ोसी ने अपने घर का कूड़ा डाल दिया। इसे देखकर वह व्यक्ति आग बबूला हो गये। उन्हें क्रोध न करने का पाठ याद हो आया। उन्होंने उस कूड़े को उठाकर डस्टबीन में डाला और उस पड़ोसी के घर जाकर कहा कि मैंने आपका कूड़ा जो आपने मेरे घर के सामने डाला था, डस्टबीन में डाल दिया है। आपको केवल सूचना देने आया हूं। यदि हो सके तो आगे से ऐसा न करें। यह देखकर पड़ोसी दंग रह गया और उसने अपनी आदत को सुधार लिया। विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज ने सदैव कूड़ा उठाने या सफाई करने का ही काम किया है। हमारे प्रधानमंत्री भी यही काम कर रहे हैं और उन्होंने बड़े-बड़े नौकरशाहों के हाथों में भी झाडू पकड़ा दी है। डा. वीर पाल ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने भी मार्जन मन्त्रों का सन्ध्या में प्रयोग इन्द्रियों आदि की स्वच्छता के लिए किया है। उन्होंने कहा कि प्रार्थना का पहला मन्त्र ही बुराईयों को दूर करने की प्रेरणा व प्रार्थना करने का मन्त्र है। उन्होंने कहा कि दुनिया में आर्य समाज का कोई मुकाबला नहीं है। उनके अनुसार आर्यसमाज ने समाज में प्रचलित हर बुराई व कुरीति का खण्डन व परिमार्जन करने का काम किया है। विद्वान वक्ता ने कहा कि आपका आज के सत्संग में आना सफल हो जायेगा यदि आप अपने जीवन से किसी एक बुराई को छोड़ने का संकल्प लेंगे और उस पर जीवन भर आचरण करेंगे। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि बुराईयों को दूर करने का संकल्प लेकर आर्य समाज को सफल बनायें। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत, संस्कृति, संस्कार व सद्व्यवहार तथा सुखी संसार बनाने तथा राष्ट्र का उपकार करना आर्य समाज का कार्य है।

प्राकृतिक एवं योग चिकित्सक डा. विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि मनुष्य का प्रथम सुख निरोगी काया का होना है। हम काया को छोड़ कर माया के पीछे चल दिये हैं। यदि हमारा शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो हम भोग्य पदार्थों का उपभोग नहीं कर सकेंगे। आजकल हम ऐसे लोगों को देखते हैं जिनके पास सम्पत्ति बहुत है परन्तु रोग उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। दूसरे वे लेाग हैं जिनके पास सम्पति नहीं है परन्तु वह स्वस्थ हैं और आनन्द से रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमें स्वस्थ रहते हुए जीवन जीना चाहिये था। हमारी विचार शक्ति भी समाप्ति की ओर आ गई है। ऋषियों ने अपने समय में अपना जीवन स्वस्थ रखा व ज्ञान रूपी सौन्दर्य से इसे सुसज्जित किया। पहले हमारे भवन कच्चे होते होते थे परन्तु लोग बड़े पक्के होते थे। अब भवन तो पक्के हो गये हैं परन्तु लोग कच्चे हो गये हैं। उन्होंने कहा कि चूल्हे का भोजन स्वादिष्ट एवं बलवर्धक होता था। वर्तमान में चूल्हे का युग समाप्त होकर किचन का युग आ गया है। किचन में बहनों को खड़े होकर काम करना पड़ता है जिससे पैरों के रोग जन्म ले रहे हैं। किचन व घर में फर्श में लगे चिकने पत्थरों से भी स्वास्थ्य को हानि होती है। इसके बाद आपने 12 मई से 18 मई 2015 तक वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आयोजित प्राकृतिक चिकित्सा शिविर की जानकारियां दीं।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का उत्सव पांच दिन तक मनाया गया। प्रतिदिन प्रातः 5 बजे से स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी द्वारा योग प्रशिक्षण दिया जाता रहा। प्रातः 6:30 बजे से सामवेद परायण यज्ञ होता था जिसके ब्रह्मा स्वामी दिव्यानन्द जी ही थे। यज्ञ के बाद आधा घण्टे मथुरा से पधारे प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री उदयवीर आर्य के ईश्वर भक्ति, देशभक्ति तथा आर्य समाज से सम्बन्धित भजन होते थे। सभी दिवसों पर आगरा से पधारे आर्य विद्वान आचार्य श्री उमेश चन्द कुलश्रेष्ठ जी के प्रेरक एवं ओजस्वी प्रवचन होते रहे। इस अवधि में युवक-युवती सम्मेलन एवं महिला सम्मेलन भी सम्पन्न किये गये। एक दिन तपोवन की पहाडि़यों में भी सत्संग सम्पन्न हुआ। आर्य विद्वानों सहित आर्यनेता श्री गोविन्द सिंह भण्डारी प्रधान आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड एवं इसी सभा के मन्त्री दयाशंकर काण्डपाल जी तथा अन्य अनेक व्यक्तियों को सम्मानित किया गया। तपोवन विद्या निकेतन के निर्धन विद्यार्थियों की सहायतार्थ लगभग पचास हजार रूपये की धनराशि लोगों ने दान दी। अनेक व्यक्तियों ने विद्यालय में पढ़ने वाले कई निर्धन बच्चों की शिक्षा का व्यय स्वयं वहन करने के वचन दिये। द्रोणस्थली कन्या गुरूकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने भी रविवासरीय समारोह को सम्बोधित किया। अनेक पुस्तक विक्रेता, यज्ञ के पात्र, सीडी, ओषधि आदि के विक्रेता भी आयोजन में पधारे थे। देश भर से बड़ी संख्या में साधकों की उपस्थिति में यह आयोजन पूरी सफलता से सम्पन्न हुआ। पांचों दिन सभी आगन्तुकों के निवास व भोजन की व्यवस्था आश्रम की ओर से की गई थी। आश्रम के यशस्वी, दानी व स्वभाव से विनम्र प्रधान श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री एवं मंत्री यशस्वती इं. श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी के पुरूषार्थ, सत्यनिष्ठा व तत्परता से किये गये कार्यों से ग्रीष्मोत्सव पूरी सफलता से सम्पन्न हुआ।

मनमोहन कुमार आर्य

 

2 thoughts on “आर्यसमाज अन्धविश्वास व कुरीतियों को भस्म करने वाली आग हैः स्वामी आर्यवेश

  • विजय कुमार सिंघल

    इस समारोह के अंतिम दिन का विवरण पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. वैदिक विद्वानों ने अपने प्रवचनों में बहुत गहरी और उपयोगी बातें कही हैं. यदि उन पर अमल किया जाये तो जीवन बहुत सुखी हो जाये.
    डा. वीरपाल वेदालंकार द्वारा वैदिक संध्या के मार्जन मन्त्रों को प्रधानमंत्री मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान से जोड़कर समझाना आनंददायक रहा. यही श्रेष्ठ विद्वानों की पहचान है कि वे हमारी परमरागत बातों को भी आधुनिक जीवन से जोड़कर प्रेरणा उत्पन्न करते हैं.
    ऐसे समारोह होते रहने चाहिए. अगर मैं इसमें भाग लेता तो मेरा बहुत सौभाग्य होता. आपके द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्टें भी रोचक रहीं. इनके लिए आपको हार्दिक साधुवाद!

    • Man Mohan Kumar Arya

      आपके सभी वाक्यों एवं शब्दों के लिए धन्यवाद। यद्यपि कार्यक्रम मेरी पसंद का और बहुत अच्छा था परन्तु क्योंकि प्रवचन सुनते हुवे मेरी कलम चलती रहती है अतः मैं कार्यक्रम का पूरा आनंद नहीं ले पाता। मुझे वक्ता को सुनना, समझना, उसे शीघ्रता से नोट करना और बाद में उसे कंप्यूटर पर बैठ कर लिखना होता है, अतः मैं कार्य समाप्त होने पर थक जाता हूँ। समय भी बहुत लगता है। लेकिन आपने प्रतिक्रिया के जो शब्द दिए उससे मेरा श्रम सार्थक हो गया। हार्दिक धन्यवाद।

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