लघुकथा

चॉकलेट और मेरी माँ ….

कल मातृदिवस था और बच्चे अपनी माँ को कुछ देना चाहते थे लेकिन कहाँ से देते पैसे तो नहीं थे उनके पास … किसी से माँगकर देते तो सरप्राईज खत्म होने का डर और माँ को पता लगता तो माँ कहती रहने दो कुछ देने की जरुरत नहीं कुछ देना ही चाहते हो तो परीक्षा में प्रथम स्थान लाकर दो … जो कि अभी बहुत दूर है ! बच्चों को तो मातृदिवस पर ही कुछ देना है ! बच्चों ने अपनी पॉकेट मनी से कुछ रुपये बचा रखे थे जो कि कुछ ७५ रुपये थे पर इतने कम पैसों में तो कुछ भी नहीं आयेगा …. तभी उनके दिमाग में आया कि मम्मी पापा लगभग रोज उन्हें एक एक चॉकलेट देते हैं तो आज हम ही मम्मी को चॉकलेट क्यूँ न दे दें वो भी कोई अच्छी वाली … तो बस गिफ्ट फाईनल हो गया और खेलने के बहाने बच्चे चॉकलेट लेकर आ गये !

जब बच्चों ने माँ को मातृदिवस की शुभकामना देते हुये अपने हाथ से बनाये हुये कार्डस और चॉकलेट दी तो माँ बहुत ही भावुक हो गयी और बच्चों को गले से लगा लिया ! माँ ने कार्ड पर लिखी प्रत्येक पंक्ति को कई-कई बार पढ़ा और पढ़कर गदगद् हो गई ! जब माँ ने कार्ड से नजर हटाई तो देखा साथ में एक चॉकलेट भी है बड़ी सी मंहगीं वाली टेम्पटेशन कैश्यू नट वाली … चॉकलेट देखते ही माँ ने उसका रेट देखा जो की ८० रुपये था और माँ ने सवाल दागा .. इतने पैसे कहाँ से आये तुम्हारे पास … बच्चे डर से गये और कोई जवाब न मिलने पर माँ और भी ज्यादा डर गई और प्रश्नों की झड़ी लगा दी … बताओ किसने दिये पैसे ? … कहाँ से लिये पैसे ? क्या तुम उधार तो नहीं लाये ?? या फिर क्या तुमने चोरी ? … नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता .. चोरी .. चोरी तो कभी नहीं कर सकते … बोलो .. बोलते क्यीँ नहीं हो कहाँ से लाये हो चॉकलेट के पैसे ….

बच्चे इतने सवाल एकसाथ सुनकर घबरा गये और फिर धीमी सी आवाज में कहा– हमारे पास थे पैसे .. हमने चोरी नहीं किये कहीं से .. हमें जो पैसे मिले थे पॉकेट मनी के उसमें से बचाकर रखे हुये थे और हमारे पास पचहत्तर रुपये ही थे ! हम राणा अंकल की दुकान से चॉकलेट लाये तो अँकल बोले कि ये अस्सी रुपये की है तो हम बोले कि हमारे पास तो पचहत्तर रुपये ही हैं . अँकल बोले कोई नहीं तुम चॉकलेट ले जाओ और पैसे मैं तुम्हारे पापा से ले लूंगा ! पर हमने कह दिया कि ये हम अपनी माँ के लिए ले रहे हैं कल मातृदिवस है और हमें उनको सरप्राईज गिफ्ट देना है आप पापा से नहीं लेना ये रुपये रख लो बाकी पाँच रुपये हम बाद में दे देगें … राणा अँकल बोले अरे बेटा — तुम अपनी माँ के लिये ले रहे हो वो भी मातृदिवस पर ये तो बहुत अच्छी बात है …. तो मेरी तरफ से तुम दोनों बच्चों के लिए एक-एक चॉकलेट इनाम में .. पर माँ हमने ईनाम वाली चॉकलेट नहीं ली और कहा बाकी पाँच रुपये भी हम जल्दी लौटा देगें बस अँकल आप मम्मी-पापा को ये न बताईयेगा ! बस माँ यही सब … और हमने चोरी नहीं की माँ अपने पैसे से चॉकलेट ली …

माँ की आँखें भर आयी ये सब सुनकर …. अरे पगलो तुम्हें इतना सब करने की क्या जरुरत थी डरा ही दिया था मुझे .. बस तुम खूब पढ़ लिखकर अच्छे इंसान बन जाओ यही मेरा तौहफा होगा … बच्चे भी मुस्कराकर बोले आप रोज हमारे लिये कितना कुछ करते हो एक दिन हमने छोटी सी खुशी देने की सोची उसमें भी आपने डर को जगह दे दी … हम पर नहीं तो माँ खुद पर यकीन करती कि क्या हम चोरी कर सकते हैं … बच्चों की बात सुनकर माँ मुस्कराई … हाँ बच्चे सच में बड़े हो गये हैं और समझदार भी . खैर माँ ऐसी ही होती हैं हर बात में उनको चिंता करने की आदत होती है ! इन सबके बाद चॉकलेट का स्वाद कुछ ज्यादा ही बढ़ गया और बच्चे माँ को खिला रहे और माँ बच्चों को ….

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

One thought on “चॉकलेट और मेरी माँ ….

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर लघु कथा !

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