स्वास्थ्य

हँसिये और हँसाइये

हँसने की क्रिया को आप मजाक में मत लीजिए। यह एक बहुत गम्भीर मामला है। हममें से बहुत से लोग इसलिए बीमार पड़ जाते हें कि वे कभी खुलकर हँसते ही नहीं। ठहाका लगाने की बात पर भी वे मुस्कराकर रह जाते हें। इस तरह की अनावश्यक गम्भीरता बनाये रखना मुसीबतों को न्यौता देना है। इसलिए हमें खुलकर हँसना चाहिए। कम से कम हँसने की बात पर तो अवश्य ही हँसना चाहिए और आवश्यक होने पर ठहाका मारकर भी हँसना चाहिए। खुलकर हँसने से हमारे हृदय के वाल्व खुल जाते हैं और नस-नाड़ियाँ स्वस्थ होती हैं।

कई प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों और योग केन्द्रों में हँसना सिखाया जाता है और यह योग-चिकित्सा का एक आवश्यक अंग है। हँसना कई प्रकार से होता है- मुस्कराना, मुँह बन्द करके अन्दर ही अन्दर हँसना, बिना आवाज किये हँसना, मुँह खोलकर हँसना और ठहाके मारते हुए हँसना। इन सबका अपना-अपना प्रभाव होता है। इनमें से मुस्कराना ऐसी क्रिया है जो हर समय की जा सकती है। यह हमारे प्रसन्नचित्त होने और रहने का प्रमाण ही नहीं उपाय भी है। इसलिए हमें सदा प्रसन्नचित्त रहना और मुस्कराना चाहिए।

दिन में एक-दो बार ठहाका मारकर हँसना भी आवश्यक है। इसके लिए चुटकुले सुनने-सुनाने चाहिए और टीवी पर हँसी के चैनल या कार्टून चैनल देखने चाहिए। यदि किसी दिन इसका मौका न मिले तो आप अपने घर में बाथरूम बन्द करके भी ठहाके लगा सकते हैं। लोग आपको पागल समझें, तो समझने दीजिए।

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

3 thoughts on “हँसिये और हँसाइये

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपने हंसी व स्वास्थ्य का जो समीकरण प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है। प्रकृति में ईश्वर ने हंसने की सुविधा केवल मनुष्यों को ही दी है। पशु व अन्य योनियों के प्राणी हंस नहीं सकते। हंसना भी योग का आवश्यक अंग है। हंसने का अर्थ है प्रसन्न चित्त रहना। यह प्रसन्न चित्तता ईश्वर की उपासना एवं वैदिक कर्मों से अन्य कार्यों की अपेक्षा से अधिक प्राप्त होती है। इस संछिप्त किन्तु महत्वपूर्ण लेख के लिए हार्दिक चान्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , लेख छोटा लेकिन बहुत अच्छा है , मैं भी कोशिश करूँगा .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भ्राता जी। अवश्य कीजिए। रोज़ एक दो बार हंसिए। संभव है इसी से आपकी आवाज़ खुल जाये।

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