कविता

पारिवारिक यथार्त हास्य[कविता]

[पारिवारिक यथार्त हास्य ]

पति बोला
पत्नी से
बड़ी उम्र है तेरी /
याद अभी मै
कर रहा
मिस काल मे
न की देरी,//
मेरे बच्चों की
प्यारी मम्मी
हो कितनी
अलबेली ///
सूरज चंदा
और सितारे
गुणगान
करत हैं तेरी,,////
गुलशन के
गुल-गुल मे
बसता प्यारा
नाम तुम्हारा ,///
संभल कर
रहना गोरी तुम
जब गुल-गुल
हुआ तुम्हारा/////
तरु की
पत्ती-पत्ती झूमे ,
झूमे
बाग-बगीचा ///////
मेरे दिल मे
तूही झूमे
यादों का
वह दरीचा,,/
उपवन का
माली जब तोड़े
गुलशन
फूल फुलाईया
कलियाँ भी
पथ भूल गयी हैं
कैसी
भूल भूल्लाईया
राज किशोर मिश्र ‘राज’

27/05/2015

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

4 thoughts on “पारिवारिक यथार्त हास्य[कविता]

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा बढ़िया

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी पसंद एवम् हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार

  • अरुण निषाद

    wah

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      अरुण निषाद जी आपकी पसंद एवम् हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार

Comments are closed.