कविता

कविता : कैसे कह दोगे

कैसे कह दोगे
कैसे कह दोगे कि खुद को मैं इतना भी समझ पाया
अशको को अपनी आँखो मे यूं चुपके से छुपा पाया
यादों के हँसी पलो को कभी ज़िन्दगी मे भुला पाया
कैसे कह दोगे ……..
याद ना करूंगा उन पलों को जिनमे खुद को ना आज़मा पाया
रूह तक हो गई थी घायल जिन अल्फाज़ो से उनको कभी झुठला पाया
कैसे कह दोगे… . .
अरमानो की कहीं मायुमियत कहीं ज़िम्मेदारियों का सिलसिला था समाया
ज़िन्दगी कितनी अपनी थी कितनी औरों के लिए जीता आया
कैसे कह दोगे……
पूछेगी सवाल फिर अकेले मे खुद की परछाई भी जो कभी वक्त ऐसा आया
क्यों अधूरी अधूरी सी लगी ज़िन्दगी जब लगा कि खत्म अब दास्तां कर आया
कैसे कह दोगे…….

कामनी गुप्ता, जम्मू 

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

2 thoughts on “कविता : कैसे कह दोगे

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता लगी .

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