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आईना बोलता है

दो मिनट मैगी के

खयाले-सेहत पर बवाले-मैगी ! ये तो ‘गुड़ खाएँ और गुलगुले से परहेज’ वाली कहावत याद आ गयी। मोनो सोडियम ग्लूटामेट जिसे एक जापानी  कंपनी अजीनोमोटो के नाम से निर्मित करती है और जो दुनिया भर में बने बनाए खाद्य पदार्थों में, खास कर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के व्यंजनों में स्वाद संवर्धन के लिये एक अर्से से प्रयुक्त होता आ रहा है, को हमारे नवाबी लखनऊ की एक सरकारी प्रयोगशाला ने घातक बता दिया है। लखनऊ अर्थात उत्तर प्रदेश, जहाँ पोस्टमार्टम तक ठीक से नहीं होता, वहाँ की, वो भी सरकारी प्रयोगशाला खाद्य गुणवत्ता जाँचती है और विसंगति पाती है, वो भी एक विश्व प्रसिद्ध कंपनी के खाद्य पदार्थ में, जिसके उत्पाद दुनिया भर में बिकते हैं और जिसे अमरीका, योरोप और आॅस्ट्रेलिया आदि की दिग्गज मानकों वाली प्रयोगशालाएँ लाइसेंस दे चुकी हैं। हमारी सरकारी प्रयोगशालाएँ इतनी अद्वितीय होंगी, सहसा विश्वास नहीं होता ।

एक हंगामा खड़ा हो गया है। एक तरफ मौकापरस्त, टीवी चैनलों पर अपना थोबड़ा मढ़ने के लिये मैगी के पैकेट जला रहे हैं या लतिया रहे हैं, माएँ बच्चों के पेट दर्द का कारण बताने लगी हैं, मीडिया ‘आप बताइए आप को कैसा लग रहा है’ के सुर अलापता सड़क किनारे के भिखारी को भी मैगी एक्सपर्ट की तरह दिखाने में लगा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ बाराबंकी के खाद्य निरीक्षक और खाद्य अधिकारी इस पूरे हंगामे के जनक होने का अपना अपना दावा पेश करने के लिये एक दूसरे का सर फोड़ने पर लगे हुए हैं।

हम बाकी तमाम बातों को अगर दरकिनार कर, अपना ध्यान अपनी प्रयोगशालाओं, खासकर सरकारी संस्थानों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर दें तो इस हंगामे के पीछे का सत्य मालूम हो जाएगा । सभी बड़ी औद्योगिक इकाइयों और कंपनियों को हमारे देश में काम करने के लिये ‘हफ्ता’ अर्थात पार्टी फंड में कुछ देते रहना होता है। कोई भी पार्टी इसको नहीं स्वीकारेगी पर, स्थिति कुछ ऐसी ही है। अब जो इस व्यवस्था में व्यवधान बनेगा उसका उत्पाद मैगी घोषित कर दिया जाएगा । मामला समाजवादियों से शुरू हुआ तो कीचड़ के पोखरे में बाकी राजनीतिक दल भी कूद पड़े । मीडिया को तो मसाला मिलना चाहिये, अगर मैगी जैसा हो तो क्या कहना ।

मैं तो अपने सीमित बी.एससी. के ज्ञान से बस इस विस्मय में हूँ कि मैगी में लेड यानी सीसा धातु कहाँ से आयी, क्योंकि अजीनोमोटो के फार्मूला में तो होती नहीं।

एक बात और है हैरान करने वाली । वो है MSG, अर्थात मोनो सोडियम ग्लूटामेट यानी रगे-बवाल। डेरा सच्चा सौदा के बाबा गुरमीत राम रहीम की इसी नाम की फिल्म ने भी बहुत बवेला खड़ा किया था। कहीं इन तीन अक्षरों में तो कोई खोट नहीं है !

इसे अगर यों सोचिये कि ऐसे दो-चार किस्से और हो गये तो,  ‘मेक इन इण्डिया’ के ‘अच्छे दिन’ तो गये !

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “आईना बोलता है

  • विजय कुमार सिंघल

    व्यंग्य अच्छा है, लेकिन मैगी में लैड कई राज्यों की लैब में मिला है।

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