कविता

गरमी से बचें ऐसे

आसमां से बरस रहे हैं आग,
आया बेरहम मौसम का राज।

गरमी में करें हल्का भोजन,
बिमारी का कोई रहे न गम।

इस मौसम में पियें खूब पानी,
इससे नहीं कोई होगी हानि।

तरबूज,खीरा,ककड़ी खूब खायें,
गरमी के हैं ये बेजोड़ दवायें।

ठंडी चीजें ही करें जलपान,
कभी न खायें तले पकवान।

धूप में बाहर कभी न निकलें,
जायें बाहर तो छाता ले लें।

कुछ खाकर ही जायें बाहर,
खाली पेट लू लगने का डर।

अपना ख्याल रखें अच्छे से,
जलती गरमी से बचें हम ऐसे।

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

3 thoughts on “गरमी से बचें ऐसे

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    बहुत खूब

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बेरहम मौसम और उस से बचने का इलाज ,अच्छा लगा.

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