कविता

कविता

अपने जो लगते अब पराए …

आज भी इन्तज़ार मे वो आँगण तुम्हारा है |

याद तुम्हारे बचपन को अब भी वो यूंही करता है |

तुम व्यस्त हो खबर यह गांव की मिट्टी को भी है |

जिसकी सौंधी  खुशबू ने तुमको गिर- गिरकर चलना सिखाया था |

उन बूढ़ी आँखों का इन्तज़ार हो गया अब के और भी लम्बा |

इन छुट्टियों मे अब ना कोई बहाना नया करना |

हैं आँखें सूर्ख पर होंठो पे इक चुपी सी है |

शिकायते शायद मन के किसी कौने मे बस दफन हैं |||

कामनी गुप्ता जम्मू ***

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

3 thoughts on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    भावपूर्ण !

    • कामनी गुप्ता

      thanks ji

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