कविता

अच्छा लगता है ।

तेरे बिना चुप-चुप रहना अच्छा लगता है
खामोशी से इक दर्द को सहना अच्छा लगता है ।

जिस हस्ती की याद में ऑसू बरसते हैं
जिनसे बातें करने को तरसते हैं
जिससे हर पल मिली को तरसते है
सामने उसके कुछ न कहना अच्छा लगता है
उसे और सिर्फ उसे ही देखते रहना अच्छा लगता है ।

हर वक्त बस उसे याद करते रहते है
उसके बिना पल-पल मरते रहते हैं
मिलकर उससे बिछड न जाये डरते रहते हैं, इसलिए
उससे बस दूर ही रहना अच्छा लगता है
उसके ख्वाब में हसींन दर्द सहना अच्छा लगता है ।

जी चाहता है सारी खुशियाँ लाकर उसे दे दूं
अपना सब कुछ उस पर लुटा दूं
उसके लिये अपनी हस्ती तक मिटा दूं
उसके प्यार में सबकुछ खोना अच्छा लगता है
उसकी याद में हर पल रोना अच्छा लगता है ।

हमारे लिये तो उसकी बस सपनों में मुलाकात है
खुदा से उसके लिये रहमत की आस है
उसका मिलना न मिलना मेरी किस्मत की बात है
हर रात उसकी याद में सोना अच्छा लगता है
मेरे हर इक सपने में उसका होना अच्छा लगता है ।

उसके बिना सारी खुशियाँ आज़ बीरान है
उस पर मेरा सारा जहां कुर्बान है
उसकी खुशियों पर लुट जाना अच्छा लगता है
उसकी सांसो पर मर-मिट जाना अच्छा लगता है ।

दयाल कुशवाह

पता-ज्ञानखेडा, टनकपुर- 262309 जिला-चंपावन, राज्य-उत्तराखंड संपर्क-9084824513 ईमेल आईडी-dndyl.kushwaha@gmail.com

One thought on “अच्छा लगता है ।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

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