तिरुक्कुरल व धर्मचिंतन विचार : ईश्वर वंदना
प्रस्तावना
तिरुक्कुरल एक सार्वभौम ग्रंथ है। करीब 2500 वर्षों के पहले रचित है। इसके रचयिता की जीवनी के बारे में बहुत-सी लोक कथाएँ चलती है। प्रत्येक उन्हें अपनी-अपनी जाति, वर्ण या धर्म के मानते हैं। असल में वे धर्म-वर्ण-जाति के संकुचित दायरे में बंधे नहीं दीखते हैं। उनके कुछ विचार सबके अपने अपने लगते हैं। नेक जीवन के लिए पावन व पवित्र-जीवन बिताने का मार्गदर्शन उनके ग्रंथों में मिलते हैं।
मनुष्य के चार पुरुषार्थ माने जाते हैं। वे हैं धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। तिरुवल्लुवर ने प्रथम तीन पुरुषार्थ संबंधी विचार ही प्रस्तुत किये हैं। शायद उनका दृष्टिकोण यह था कि धर्मार्थ काम के त्रि विध पुरुषार्थ कोई साधे तो उसे मोक्ष अपने आप मिलेगा। मोक्ष के बारे में बोलने के कई धर्म व संत, व अवतार पुरुष हैं, पर तिरुवल्लुवर ऐसे संत थे जो किसी भी पचडे में नहीं पडे।
प्रस्तुत रचना के वर्ण्य विषय पर विचार करने के पहले उसके गठन पर विचार करें। तिरुवल्लुवर का तिरुक्कुरल 133 अधिकारों में विभक्त है और प्रत्येक के दस-दस द्विपद हैं। इसके चरणों की विशेषता यह है कि प्रत्येक चरण के सात पद हैं।
पहल चरण में चार पद है और दूसरे में तीन। हम कह सकते हैं कि ऐसी छंद शैली हिन्दी में या संस्कृत में नहीं है। अक्षरों के हिसाब से तीन चरणों का जापानी हैकू है। पर तिरुक्कुरल के दो चरण या सप्तपद योजना निराली है। इस तरह के लघु छंद योजना के कारणही बिहारी के दोहे के समान यह कहा जाता है। तिरुक्कुरल में गागर में सागर भरा है और बिंदु में सिंधु।
प्रस्तुत ग्रंथ तीन पुरुषाथों के नाम से तीन विभागों में विभाजित है। पहला है धर्म जिसके 38 अधिकार व 380 लघुपद्य है। दूसरा भाग अर्थ पुरुषार्थ का है जिसके 70 अधिकार हैं और 700 पद हैं और तीसरा है काम पुरुषार्थ है जिसके 25 अधिकार व 250 पद हैं।
संसार में धर्म विचार अतिमुख्य हैं। उनपर प्रथमत: विचार करना है। इसलिए तिरुवल्लुवर ने उक्त धर्म के बारे में विचार करते हैं। धर्म का अर्थ आजकल हिन्दूधर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, बौद्धधर्म, श्रमण धर्म, सिख धर्म, जोरास्ट्रेयनिसम आदि माने जाते हैं। पर यहाँ धर्म, तिरुक्कुरल के अनुसार मानवधर्म है। इसके कारण सब धर्म के लोग तिरुक्कुरल के विचारों को अपनाने के लिए नहीं हिचकते। हम प्रत्येक अधिकार का विचार ग्रंथ में प्रदत्त क्रम से देखेंगे और प्रत्येक अधिकार के प्रतिनिधि पद्य का विवेचन करेंगे।
यह ग्रंथ भगवद् विचार से शुरू होता है जो भगवद् स्तुति कहा जा सकता है। प्रस्तुत अधिकार की विशेषता है कि इसमें किसी देवी या देवता का संकेत नहीं मिलता। पर दैवी विचार के लोगों का गुणगान किया गया है।
- पहला पद ही उल्लेखनीय है।
அகர முதல, எழுத்து எல்லாம்;-ஆதி-
பகவன் முதற்றே உலகு.(1)
प्रस्तुत पद में कहा गया है संसार की सब भाषाएँ ‘अ’ कार से शुरू होती है, इसी तरह सारी सृष्टि भगवान से शुरू हुई है। इसमें भगवान की महिमा गायी है। वह अपेक्षा-उपेक्षा रहित है। आदमी जितना भी पढा-लिखा क्यों न हो अगर वह अद्वितीय भगवान के चरणों की वंदना न करे तो वह बेकार साबित होगा।
- वर्षा की महिमा
वर्षा जीवन दायिनी है। उसी के कारण भूमि में सब धान्य उगते हैं। वर्षा न हो तो संसार का जीवन समाप्त होगा। जल के बिना भूमि जीवित नहीं रह सकती। उसे वर्षा ही देती है। अगर वर्षा न हो अकाल व अभावग्रस्त होकर मनुष्य जिएगा। फलत: उसका आचरण भी बिगड़ सकता है।
நீர் இன்று அமையாது உலகுஎனின், யார்யார்க்கும்
வான் இன்று அமையாது ஒழுக்கு. (20)
- वीतरागी या वैराग्य गुण संपन्न लोगों पंचेंद्रिय को जो काबू में लाकर निर्लिप्त जीवन बिताता है वही मुक्ति या मोक्ष का अधिकारी होता है। वही महान होता है जो ऐसा काम करता है जो दूसरों से हो नहीं पाता। छोटे लोग छोटे-छोटे काम ही कर पाएँगे।
செயற்கரிய செய்வார் பெரியர்; சிறியர்
செயற்கரிய செய்கலாதார் (26)
उन्हीं को श्रेष्ठ मानना है जो सब जीवराशियों से प्यार बरतते हैं।
- धर्म की श्रेष्ठता धर्म की परिभाषा देते हुए यह कहा गया है कि ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, क्रोध व कठोर वचन मन की कमज़ोरियाँ हैं। उन्हें दूर करके जीना ही धर्म है। धर्मके रास्ते पर जीना ही सुखद है। धर्म ही श्रेष्ठ संपत्तिदाता है। यह सोचकर धर्म का पालन न करना अवांछित है कि बुढापे में ही धर्म कार्य करेंगे।
அந்தணர் என்போர் அறவோர்-மற்று எவ் உயிர்க்கும்
செந் தண்மை பூண்டு ஒழுகலான். (30)
- गृहस्थी
गृहस्थ को माता-पिता, पत्नी व संतानों का पालन ढंग से करना चाहिए। गृहस्थी के फलस्वरूप प्रेम व धर्म का पालन न होना चाहिए। गृहस्थी ही धर्म कही जाती है। अगर वह दूसरों की निंदा से बचे तो समझना है कि गृहस्थी ही श्रेष्ठ है।
ढंग से जो जीवन बिताएंगे वे देवों से भी प्रशंसित होंगे।
வையத்துள் வாழ்வாங்கு வாழ்பவன் வான் உறையும்
தெய்வத்துள் வைக்கப்படும். (50)
- सुपत्नी के लक्षण वर्णित है। अगर पत्नी गुणवती न हो तो जीवन कभी वांछनीय नहीं होगा। पतिव्रता धर्म का पालन जो करती है वही स्तुत्य है। पत्नी के सद्गुण ही गृहस्थी के मंगलमय होगी। सुसंतानें ही गृहस्थी के श्रृंगार होंगे।
மங்கலம் என்ப, மனைமாட்சி; மற்று அதன்
நன்கலம் நன் மக்கட் பேறு.(60)
7.श्रेष्ठ संपत्ति संतान
अच्छी संतानों की प्राप्ति ही श्रेष्ठ महिमा है। शेष सब फीके हैं। जो अपनी संतान की तुतली नहीं सुनते उसका रसास्वादन नहीं करते वे ही कहेंगे याऴ व वीणा का नाद सुमधुर है। माना पुत्र को जनाने से अधिक तब सुखी होगे जब वह सुनती है कि मेरा बेटा सज्जन है।
पिता का कर्तव्य है कि वह अपने पुत्र का पालन ऐसा करे। जिससे वह शिसितों की सभा में श्रेष्ठ निकले। उसी तरह पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह समाज में ऐसा स्थान पावे कि सब लोग कहें इसे जन्म देने को लिए इसके पिता ने कितनी बडी तपस्या की होगी।
- प्रेम की महिमा
तिरुवल्लुवर के अनुसार जो प्रेम करता है उसी को मनुष्य मानना है। अगर वह गुण हो तो मानना है कि वह हड्डियों का ढाँचा मात्र है जिसके ऊपर चमडा आवृत है। देखे जा घट प्रेम न संचरै (कबीर का दोहा।)
அன்பின் வழியது உயிர்நிலை; அஃது இலார்க்கு
என்பு தோல் போர்த்த உடம்பு. (80)
- अतिथेय या अतिथि सत्कार
जो अतिथि का स्वागत प्रसन्न मुख से करता है और उनकी सेवा करता है उसी के गृह में संपत्ति की देवी लक्ष्मी निवास करेगी।
स्पर्श करते ही एक विशेष फूल अनिच्छा मुरझा जाएगी। अगर मुख से कठोरता प्रकट हो तो अतिथि ऊब जाएगा गृहस्थी आतिथेय करने के लिए ही है। उसी के कारण कृषि की जाती है।
இருந்து ஓம்பி இல் வாழ்வது எல்லாம் விருந்து ஓம்பி
வேளாண்மை செய்தற்பொருட்டு. (81)
- मीठी बातें
अच्छे शब्द कहने पर ज़ोर डालता है। इसमें समझाया गया है कि मीठी बातें बोले बिना कटुवचन बोलना मीठा फल छोड़कर कडवा फल खाने के समान है।
இனிய உளவாக இன்னாத கூறல்-
கனி இருப்ப, காய் கவர்ந்தற்று. (100)
- कृतज्ञता
ज़रा-सी सहायता कोई करे तो उसे भूलना नहीं चाहिए। कृतघ्नों का उद्वार कभी नहीं होगा।
எந் நன்றி கொன்றார்க்கும் உய்வு உண்டாம்; உய்வு இல்லை,
செய்ந்நன்றி கொன்ற மகற்கு. (110)
- तटस्थता
तराजु के पलटों के ऊपर का काँटा किसी एक पक्ष की ओर नहीं झुकना है तभी तौलना ठीक होगा। इसी तरह निष्पक्ष रहना सज्जनों का लक्षण है।
சமன் செய்து சீர் தூக்கும் கோல்போல் அமைந்து, ஒருபால்
கோடாமை சான்றோர்க்கு அணி.(118)
संतान देखने पर पता चलेगा कि उसका पिता नेक है या नहीं।
அடக்கம் அமரருள் உய்க்கும்; அடங்காமை
ஆர் இருள் உய்த்துவிடும். (121)
13वाँ अध्याय साबित करता है कि विनय आदमी को देव बनाएगी। अविनयी अंधकार में फँसेगा। आदमी को अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना है। नहीं तो वह उसकी निंदा होगी।
யா காவார் ஆயினும் நா காக்க; காவாக்கால்,
சோகாப்பர் சொல் இழுக்குப் பட்டு. (127)
- विनय
विनय व्यक्ति का उद्धार करेगा। जो अविनयी है वह अंधकार में दब जाएगा।
विनय एक श्रेष्ठ गुण है खासकर धनवान विनयी है तो वह इतोअधिक यशस्वी बनेगा।
அடக்கம் அமரருள் உய்க்கும்; அடங்காமை
ஆர் இருள் உய்த்துவிடும். (121)
எல்லார்க்கும் நன்று ஆம் பணிதல்; அவருள்ளும்
செல்வர்க்கே செல்வம் தகைத்து. (125)
जीभ को जो नियंत्रित नहीं करता वाणी में संयम जो नहीं बरतता वह निंदा का पात्र बनेगा।
யா காவார் ஆயினும் நா காக்க; காவாக்கால்,
சோகாப்பர் சொல் இழுக்குப் பட்டு. (127)
कटुवचन कहा जाय तो तद जनित घाव कभी नहीं भरेगा। आग के घाव भर जाएगा।
தீயினால் சுட்ட புண் உள் ஆறும்;- ஆறாதே
நாவினால் சுட்ட வடு. (129)
- सदाचार प्राणों से बढकर मूल्यवान उससे यश मिलेगा।
ஒழுக்கம் விழுப்பம் தரலான், ஒழுக்கம்
உயிரினும் ஓம்பப்படும். (131)
मूल्यवान उससे यश मिलेगा।
कृतज्ञता का बीज बोएगा सदाचार
कष्ट ही कष्ट देगा कटुवचन
जो संसार की नियति के अनुसार आचरण नहीं करेगा वह जितना ही पढ़ा-लिखा क्यों न हो वह मूर्ख ही माना जाएगा।
கதம் காத்து, கற்று, அடங்கல் ஆற்றுவான் செவ்வி
அறம் பார்க்கும் ஆற்றின் நுழைந்து. (130)
- परस्त्री को न देखना
दूसरों की पत्नी के पीछे जो पड़ता है उसमें दुश्मनी, पाप व भय व दोष की बुराइयाँ घेर लेंगी।
பகை, பாவம், அச்சம், பழி என நான்கும்
இகவா ஆம்-இல் இறப்பான்கண் (146)
दूसरों की पत्नी पर जिसकी नज़र नहीं जाती वही सज्जनों की सज्जनता से विभूषित होगा। वह धर्म मात्र ही नहीं है सदाचार थी।
பிறன் மனை நோக்காத பேர் ஆண்மை, சான்றோர்க்கு
அறன் ஒன்றோ? ஆன்ற ஒழுக்கு. (148)
- सहिष्णुता
सहिष्णुता भूमि के समान है। जो गड़ढा खोदता है उसका पालन-पोषण भी भूमि ही करेगी। इसलिए ही भूमादेवी सहिष्णुता की साकार मूर्ति मानी जाती है।
அகழ்வாரைத் தாங்கும் நிலம் போல, தம்மை
இகழ்வார்ப் பொறுத்தல் தலை. (151)
दूसरों का सताना सहने के बदले उसे एकदम भूलजाना श्रेष्ठ है।
பொறுத்தல் இறப்பினை என்றும்; அதனை
மறத்தல் அதனினும் நன்று. (152)
- ईर्ष्या से बचना है
जो ईर्ष्यालु है वह उसके पास संपत्ति की अधिष्ठाती लक्ष्मी नहीं रहेगी। वह उसे ज्येष्ठा देवी को पहुँचकर नष्ट कर देगी।
அவ்வித்து அழுக்காறு உடையானைச் செய்யவள்
தவ்வையைக் காட்டி விடும். (167)
- लोभ
लोभ वर्ज्य है। दूसरों की संपत्ति के प्रति लोभ हो तो वह लोभी को ही नष्ट नहीं करेगा। जो पंचेंद्रियों को काबू में रखता है जितैंद्रिय है वह कंगाल ही क्यों न बनी फिर भी दूसरों की वस्तु या संपत्ति नहीं चाहना।
இலம் என்று வெஃகுதல் செய்யார்-புலம் வென்ற
புன்மை இல் காட்சியவர். (174)
- कान भरना
दूसरों के कान भरना वर्ज्य है। दूसरों का दोष देखने के पहले व्यक्ति को अपने दोषों को देखने का साहसी होना है। अगर सब कोई उक्त गुण से रहे तो किसी भी जीव को दुखी नहीं सताएगा।
ஏதிலார் குற்றம்போல் தம் குற்றம் காண்கிற்பின்,
தீது உண்டோ, மன்னும் உயிர்க்கு. (190)
- निरर्थक बातें
व्यर्थ बातें नहीं करनी है। निष्फल व गुणहीन बातें जो करता है उसका भला कभी नहीं होगा। उसका अनादर ही होगा।
சீர்மை சிறப்பொடு நீங்கும்-பயன் இல
நீர்மை உடையார் சொலின். (195)
जो भी शब्द कहें उसे फलदायक होना है। ऐसे शब्द नहीं बोलना है जो काम का नहीं हो।
சொல்லுக, சொல்லில் பயன் உடைய, சொல்லற்க,
சொல்லில் பயன் இலாச் சொல். (200)
- बुराई
बुराई करने से आदमी को डरना चाहिए।
भूलकर भी दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए। अगर कोई बुरा कहें तो उसको धर्मदेव भी क्षमा नहीं करेगा।
மறந்தும் பிறன் கேடு சூழற்க! சூழின்,
அறம் சூழும், சூழ்ந்தவன் கேடு. (204)
कटुवचन/बुरेवचन बुराई करेंगे। वह आग से भी जलाने वाले हैं। इसिलए उन्हें कहने पर डरना चाहिए।
தீவினையார் அஞ்சார்; விழுமியார் அஞ்சுவர்-
தீவினை என்னும் செருக்கு. (201)
- समंजन
दूसरों के साथ मिलकर रहना है। शहर का जलाशय पानी से भरा है तो उसका लाभ सभी जनों को मिलेगा। इसी तरह किसी बुद्धिमान के पास धन संपत्ति हो उससे दूसरों की भलाई अवश्य होगी।
ஊருணி நீர் நிறைந்தற்றே-உலகு அவாம்
பேர் அறிவாளன் திரு. (215)
लोगों के उपकार के लिए किसी के पास संपत्ति रहे तो वह फले पेड के समान है जो सबका काम आता है।
பயன் மரம் உள்ளூர்ப் பழுத்தற்றால்-செல்வம்
நயன் உடையான்கண் படின். (216)
- दान
जो अभावग्रस्त है उसको दान देना चाहिए। पर यह प्रतीक्षा नहीं करनी है, उसका प्रतिफल मिलेगा।
வறியார்க்கு ஒன்று ஈவதே ஈகை; மற்று எல்லாம்
குறியெதிர்ப்பை நீரது உடைத்து. (221)
भीख या याचना करना बुरा है। पर ऐसे याचकों को ‘ना’ कहना उससे भी निम्न है।
சாதலின் இன்னாதது இல்லை; இனிது, அதூஉம்
ஈதல் இயையாக் கடை. (230)
- अमर कीर्ति
जो अभाव से पीडित हैं और जो गरीब है उनकी सहायता करनी चाहिए। उसी से अपार यश मिलेगा। वह मन उनके जीवित रहने के पारिश्रमिक के रूप में मिलता है।
ஈதல்! இசைபட வாழ்தல்! அது அல்லது
ஊதியம் இல்லை, உயிர்க்கு. (231)
कलंक रहित जो जीवन बिताता है उसीका जीवन, जीवन कहलाने योग्य है। अगर यशस्वी हुए बिना कोई जिए तो वह निष्प्राण के जीवन के समान माना जाएगा। यश सहित जीवन ही मान्य जीवन है। यश रहित जीवन मरे हुए के जीवन के समान है।
வசை ஒழிய வாழ்வாரே வாழ்வார்; இசை ஒழிய
வாழ்வாரே வாழாதவர். (240)
- सहानुभूति
दया करना, व सहानुभूति दर्शाना ही श्रेष्ठजीवन का लक्ष्य है। जो श्रेष्ठ हैं उन्हीं के पास दूसरों पर दया करने की अमूल्य प्रकृति होती है। नीच लोगों के पास दान दिये बिना संपत्ति रहे वह निम्न से निम्न है।
அருட் செல்வம், செல்வத்துள் செல்வம்; பொருட் செல்வம்
பூரியார்கண்ணும் உள. (241)
अर्थ या संपत्ति के बिना कोई रहे तो उसे लौकिक सुख नहीं मिलेगा। जो दयालू होकर दूसरों की सहायता नहीं करेगा उसको अलौकिक सुख या पारमार्थिक सुख नहीं मिलेगा।
- माँसाहार – वर्जन
अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट बना लेने के लिए दूसरे जीव के शरीर का माँस कोई खावे तो वह कैसे कृपा का पात्र होगा?
தன் ஊன் பெருக்கற்குத் தான் பிறிது ஊன் உண்பான்
எங்ஙனம் ஆளும் அருள். (251)
हज़ारों याग-यज्ञ करने से एक जीव की हत्या किए बिना जीना पुण्य जीवन होगा।
அவி சொரிந்து ஆயிரம் வேட்டலின், ஒன்றன்
உயிர் செகுத்து உண்ணாமை நன்று. (259)
- तपस्या
अपना दुख दूर कर लेना और दूसरों का दुख दूर कर देना तपस्या के साकार है।
உற்ற நோய் நோன்றல், உயிர்க்கு உறுகண் செய்யாமை,
அற்றே-தவத்திற்கு உரு. (261)
जो सन्यासाश्रम के हैं उनको भोजन देकर अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की सहायता जो गृहस्थ करते हैं। उनमें बढ़कर कोई तपस्वी नहीं होते।
துறந்தார்க்குத் துப்புரவு வேண்டி, மறந்தார்கொல்-
மற்றையவர்கள், தவம். (263)
- मिथ्याचरण
कोई तपस्वी के रूप में हो पर कदाचरण के पीछे पडे तो वह उस शिकारी के समान देय होगा जो झाड़-झंकाडों में छिपकर पक्षियों का शिकार करता है।
தவம் மறைந்து, அல்லவை செய்தல்-புதல்மறைந்து
வேட்டுவன் புள் சிமிழ்த்தற்று. (274)
सच्चे तपस्वी को न अपने सिर का मुंडन करना है न – मूँछ-दाड़ी बनाना। अगर वह ऐसा काम न करे जो उसे लोकनिंदा का पात्र बनाएगा तो सचमुच वह महान तपस्वी माना जाएगा।
மழித்தலும் நீட்டலும் வேண்டா- உலகம்
பழித்தது ஒழித்துவிடின். (280)
- चोरी न करना
दूसरों की संपत्ति की चोरी करके जमा कर लेते समय वह आनंद दायी लगेगा। तब वह सुख का अनुभव कराएगा। बाद वही बहुत तंग करेगा।
களவின்கண் கன்றிய காதல் விளைவின்கண்
வீயா விழுமம் தரும். (284)
सीमा जानकर तदनुसार जो खर्च करते हैं उनका मन भरा रहेगा, शांत रहेगा। जो चोरी करते हैं उनके मन में छल-कपट ही भरा रहेगा।
அளவு அறிந்தார் நெஞ்சத்து அறம்போல, நிற்கும்,
களவு அறிந்தார் நெஞ்சில் கரவு. (288)
- सत्य
मन सचेत करेगा कि झूठ न बोलना। अगर वह मन की चेतावनी न मानकर झूल बोलेगा तो उसे उसका मन ही तंग करेगा।
தன் நெஞ்சு அறிவது பொய்யற்க; பொய்த்தபின்,
தன் நெஞ்சே தன்னைச் சுடும். (293)
जल से बाह्य शरीर शुद्ध बनेगा याने स्नान करने पर देह शुद्ध होगी। पर मन साफ़ होना है तो वह सत्य कथन से ही संभव होगा।
புறம் தூய்மை நீரால் அமையும்;- அகம் தூய்மை
வாய்மையால் காணப்படும். (298)
- क्रोध न करना
आत्म रक्षा क्रोध करने से बचना चाहिए। अगर वह वैसा न करे तो वह क्रोध उसका घातक सिद्ध होगा।
தன்னைத் தான் காக்கின், சினம் காக்க! காவாக்கால்,
தன்னையே கொல்லும், சினம். (305)
अगर किसी के मन में क्रोध न रहे तो वह जो कुछ सोचता है वह होगा जो कुछ चाहता है वह सब प्राप्त होगा।
உள்ளிய எல்லாம் உடன் எய்தும்-உள்ளத்தால்
உள்ளான் வெகுளி எனின்.(309)
- बुरा न करना
अगर कोई हमारा बुरा करे तो उसके बदले उसका भला करो। ताकि वह शर्मिंदा हो। जो कष्ट देते हैं उनकी सज़ा देनी है तो उसे सुख पहुँचाओ।
இன்னா செய்தாரை ஒறுத்தல் அவர் நாண
நல் நயம் செய்து, விடல். (314)
दूसरों को तुम पहले दुखाओ तो तुम्हें बाद को दुख ही दुख भोगना पडेगा।
நோய் எல்லாம் நோய் செய்தார் மேலவாம்; நோய் செய்யார்,
நோய் இன்மை வேண்டுபவர். (320)
- हत्या न करना
किसी का आदर्श हत्या न करना है और उसका पालन वह करता रहे उसके जीवन भर कालदेव याने यमदेव भी नहीं सताएगा।
கொல்லாமை மேற்கொண்டு ஒழுகுவான் வாழ்நாள்மேல்
செல்லாது, உயிர் உண்ணும் கூற்று. (326)
भले ही प्राण जावे पर अपनी रक्षा कर लेने के लिए दूसरे के शरीरसे प्राण नहीं निकालना है याने दूसरे किसी भी जीवन का वध नहीं करना है।
தன் உயிர் நீப்பினும் செய்யற்க-தான் பிறிது
இன் உயிர் நீக்கும் வினை. (327)
- क्षणभंगुरता
संपत्ति स्थायी नहीं होती। पता ही नहीं लगेगा कि वह कैसे खर्च हो गयी! इसलिए संपत्ति के जमा होते-होते उसका व्यय धर्म मार्ग में कर देना चाहिए।
அற்கா இயல்பிற்றுச் செல்வம்; அது பெற்றால்,
அற்குப ஆங்கே செயல். (333)
संसार में स्वाभाविक रूप से यह कहा जाता है कि फलाना कल तक (जीवित) था। आज वह (जीवित) नहीं है। उसे समझकर जीना बुद्धि मानी है।
நெருநல் உளன், ஒருவன்; இன்று இல்லை! என்னும்
பெருமை உடைத்து, இவ் உலகு. (336)
नींद समान है मृत्यु। सोकर जाग उठने के समान है जन्म। जन्म-मरण जीवन की अस्थिरता के घोषक है।
உறங்குவது போலும், சாக்காடு; உறங்கி
விழிப்பது போலும், பிறப்பு. (339)
- मोह त्याग
अगर व्यक्ति का मोह किसी विषय का वस्तु के प्रति नहीं हो तो उससे उसको कोई दुख नहीं होगा। अनासक्त भगवान के प्रति भक्ति करनी है।
யாதனின் யாதனின் நீங்கியான், நோதல்
அதனின் அதனின் இலன். (341)
व्यामोह या आसक्ति से छूटने के लिए भगवद् भक्ति को तीव्रता से आत्मसात कर लेना है।
பற்றுக, பற்று அற்றான் பற்றினை! அப் பற்றைப்
பற்றுக, பற்று விடற்கு. (350)
- सत्य ज्ञान
विषय या वस्तु किसी भी तरह हो सकती है। उसके बाहरी रंग-ढंग को देखकर विचलित नहीं होना है। उसका सत्य या अर्थ को समझने में आदमी का ज्ञान काम आता है।
எப் பொருள் எத் தன்மைத்துஆயினும், அப் பொருள்
மெய்ப்பொருள் காண்பது அறிவு. (355)
इच्छा, क्रोध, भ्रम- इन तीनों से परे होकर जो जीवनयापन करते हैं उन्हें दुख कभी नहीं भोगना पडेगा। उनसे दुख कोसों दूर भाग जाएगा।
காமம், வெகுளி, மயக்கம், இவை மூன்றன்
நாமம் கெட, கெடும் நோய். (360)
- इच्छा-त्याग
इच्छा या चाह ही सभी जीवों के जन्म। चाल व दुख का मूलाधार या बीज है। चाह जावे तो चिंता मिटेगी और सुख ही सुख मिलेगा।
அவா என்ப-‘எல்லா உயிர்க்கும், எஞ் ஞான்றும்,
தவாஅப் பிறப்பு ஈனும் வித்து’. (361)
इच्छा या आसक्ति असीम दुखद है। अगर उसका समूल नाश हो, याने पूर्णरूप से इच्छा छोडें तो दुख अविराम नष्ट हुए बिना मिलता रहेगा।
ஆரா இயற்கை அவா நீப்பின், அந் நிலையே
பேரா இயற்கை தரும். (370)
- विधि या किस्मत
बहुत ही सूक्ष्म व सारगर्भित ग्रंथों का अध्ययन कर कोई बडा विद्वान बने परंतु किस्मत या विधि के निर्दिष्ट मार्ग पर ही उनकी बुद्धि चलेगी।
நுண்ணிய நூல் பல கற்பினும், மற்றும் தன்
உண்மை அறிவே மிகும். (373)
विधि या कर्म फल से क्या होगा? कुछ भी नहीं होता। विधि या कर्मफल के अनुसार ही चलना पडेगा। वह हमारे आगे आकर धमकेगा। विधि ज़ोर डालकर हमें भला-बुरा करने पर मज़बूर करेगी। (वह असल में अविधि होती है।)
ஊழின் பெருவலி யா உள-மற்று ஒன்று
சூழினும், தான் முந்துறும். (380)
तिरुक्कुरल के प्रथम भाग ‘धर्म’ पढने के बाद यह स्पष्ट होता है कि वह मानव समुदाय का मार्गदर्शक ग्रंथ है। इसलिए तमिल वेद की संज्ञा दी गयी है।
पहले भाग का संदेश संपूर्ण ग्रंथ का ध्येय है। ईश्वर वंदना के अध्याय से यह स्पष्ट होता है कि वे किसी खास देवी-देवता के उपासक नहीं थे। सर्व धर्मों के स्वीकृत उनका भगवत् चिंतन ध्यातव्य है। वर्षा की महिमा, अनिवार्यता, वीतरागों के लक्षण और धर्म की महिमा गाकर तिरुवल्लुवर हमारे मन को मोहित करते हैं। शेष अध्यायों को पढे तो स्पष्ट होता है तिरुक्कुरल स्वस्थ चिंतन, लोक के निंद्य गुणों का वर्णन, सामाजिक दृष्टिकोण आदि से समृद्ध हुआ है। वह गृहस्थ जीवन का आदर्श दर्शाता है। अंत में विधि भाग्य या कर्म फल का चित्र खींचकर तिरुवल्लुवर समझाते हैं कि अच्छे कर्म कर दुख या कष्ट में पडें तो उसके लिए चिंतित न होवें।
तिरुक्कुरल एक अभाह विचार सागर है जितना पैलेंगे उतने मोती निकलेंगे।
‘जिन ढूँढा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ।‘
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नवीन जानकारी देने वाला अच्छा लेख.