कविता

छंद – बहका हुआ हृदेश है …….

सूना पड़ा अँगना यहाँ ,

सजना गए परदेश है ।

images (4)सोये हुए अरमान को ,

थपका रहे सन्देश है ।

यादें झरी बरसात में

भीगा हुआ परिवेश है ।

भेजा तुझे प्रियतम वहाँ,

बहका हुआ हृदेश है ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

6 thoughts on “छंद – बहका हुआ हृदेश है …….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • गुंजन अग्रवाल

      AABHAR AADARNIY

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा छंद !

    • गुंजन अग्रवाल

      HERTLY THNX BHAIYA

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    सुन्दर

    • गुंजन अग्रवाल

      AABHAR JI

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