बह जाने दो ना दर्द को
तुम्हारा मौन
सालता है बहुत
शब्द न सही
आँखों से बोल
मौन की ये भाषा
मुश्किल नहीं यूँ तो पढ़ना
पर शब्द की बयानगी से
दर्द निकल जाता है
नफरत बह जाती है
तो तुम भी बह जाने दो ना दर्द को
मौन से तो ये
दर्द जमता चला जाता है
परत दर परत
और नफरत की बेल
आधिपत्य जमा लेती है
फिर भला कैसे उगेगा
प्रेम का अंकुर दिल में
नफरतों से हासिल भी क्या
ये तो सिर्फ और सिर्फ जलाती हैं
तन मन और आत्मा को
पर प्रेम .. प्रेम तो सँवारता है …. !!
— प्रवीन मलिक
वाह वाह ! बहुत सुंदर !!