कवितापद्य साहित्य

बिछड़ गये …

कल तक तो हम साथ-साथ थे ,
आज बिछड गए घर परिवार से,
कल तक तो हम स्वतंत्र. थे,
आज बंध गए दुसरो के बंधन मे,
अकेली विरान सी बैठी यहॉ ,
यादो मे खोइ- खोइ सी ,
कोइ नही साथ यहॉ नही कोइ संगी,
घन वन मे बैठी जैसे ,
चितवन चंद चकोरी ,
अब तो बस एक याद ही ,
बार -बार मन मे आती ,
चारो तरफ अंधियारी छाई ,
नही कही उजाला दिखती !
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४