कविता

कविता

आज उठे हम सुबह सवेरे
पति देव को उठाया
बङे प्यार से बाते करके
उन्हें जब दूध पिलाया
झट से आक्रोषित होकर
समझा हू मैँ अब
इतने प्रेम से दूध पिला रही हो
नाग पंचमी है कब
मैने मुस्कराते हुऐ बोला
शब्दों का अपना
पिटारा खोला
भले आज है नागपंचमी
मगर मेरे सरताज
मेरे प्रेम को आपने
क्यूं व्यंग्य बनाया आज
अब अगर बोल ही दिया है
तो ये बात भी सुन लो
सांप सरीखा प्रेम निभाना
अपने व्यक्तित्व मेँ भी चुन लो

— एकता सारदा

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com