वक्त के साथ गुजरते हुये हम !
दौड़ रहा है वक्त
और हम
हम भी तो दौड़ रहे हैं
बेहताश होकर
कदम ताल मिलाने को
कहीं छूट न जायें पीछे हम !
पर इस भागम-भाग में
कितना कुछ पीछे छूट जाता है
जब तक हिसाब लगाते हैं
तब तक बहुत कुछ छूट चुका होता है !
और फिर समय का फेर समझ
या नियति मानकर बढ़ जाते हैं
दौड़ जारी कर देते हैं जीवन की
छूटने का मलाल दिल में लिये ..!
पर जब मंजिल मालूम ही है तो
इतनी भागम-भाग क्यूँ है ?
मंजिल तो अटल है स्थिर है
फिर हम अस्थिर क्यों हैं
क्यूँ नहीं है संतोष, धैर्य, ठहराव
क्यूँ नहीं साथ लेकर चल पाते हैं
पीछे छूट जाने वाले रिश्तों को ..!
हर क्यूँ का जवाब मिलता है
पर वक्त की जरुरत के हिसाब से
रेस लगी है वक्त के साथ
जीतने की चाह में कितना कुछ हारकर
बढ़ते जा रहै हैं अनवरत …..!
हम कहाँ चल रहे हैं ये तो वक्त चल रहा है
बस हम तो उसके साथ तालमेल
बिठाते-२ खर्च हो रहे हैं रफ्ता-रफ्ता …!!
— प्रवीन मलिक
तेज रफ़्तार और जिंदगी की हकीकत पर नायाब रचना आदरणीया