कविता

वो दिल

वो सदा कहते थे
दिल में रखेंगे तुमको
तुम भूलना भी चाहो
तो भी न जुदा करेंगे तुमको
आज भी सिर्फ तुमको चाहते हैं
कल भी चाहते रहेंगे तुमको
न छाने देंगे अंधेरा कभी
जिंदगी में तुम्हारी
दिन का उजाला ही
बने रहने देंगे तुमको

वो यह भी कहते थे
चले आँधियाँ कितनी भी वक़्त की
रखेंगे थामकर बाहों में
न कहीं और जाने देंगे तुमको
उड़ जाए चाहे ख्वाब सारे
पंछी बन कर
पर जो अहसास पिरोये थे
यादों के भँवर में
न टूटने देंगे उनको

वो यह भी कहते थे
वो वो भी कहते थे
जो हम कहते थे
वो हस कर सहते थे
फिर क्या हुआ
क्यों बदल गए वो इतना
हम न रहे जब
तो औरों में इतना खो गए
की भूल गए वो सब कुछ
जो वो हमेशा
रो रो कर कहते थे

आज पता चला
वो दिल तो
उनके पास था ही नही
जिसमे हम रहते थे
जिसमे हम रहते थे

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com

One thought on “वो दिल

  • महातम मिश्र

    अति सुन्दर भाव व्यंजना आदरणीय, वाह

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