कविता

मत मारों

क्यों मार रही हों मुझें
कौन सी गलती हुई हमसे
मेरे प्यार में कहीं
कमी तो नही दिखी
मैं तुम्हे इज्जत दुँगीं
सार भी दुँगीं ,संसार भी दुँगी
हर कामों मे हाथ बटाऊगीं
जब-जब काम आए तेरी
एक पैर पर खडा रहुँगीं
तेरे हर सपना को मैं
हकिकत कर दिखलाऊगीं
तुम्हारे आगे शिष मेरा
सदा नतमस्तक रहेगी
तुम्हारे इस घर को
स्वर्ग मै बनाऊगी
जो भी तुम कहो , मै
शीघ्र पूरा कर दिखाऊगीं
अब भी विनती सुन लो मेरी
मत मारो दहेज के खातीर मुझे
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४