कविता

गीता और हम

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युग पुरुष बन जो है खड़ा,
गीता का ग्रंथ है हस्त रहा।
वन्दन उन्हें कर लीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥

स्व धर्म से खुद को उठा,
क्यों प्रश्न ये व्यापक बना ?
जाग्रत ये मन कर लीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥

हम तुम भी थे, थी गीता भी,
फिर सुप्त क्यों ये प्रश्न रहा ?
कुछ ध्यान ये भी धर लीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥

सत पे अडिग, सत पे चला,
है कौन जो निर्भय रहा ?
है कर्म क्या, सीख लीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥

फिर प्रश्न ज्ञान का है उठा,
निज निज की जिह्वा पे चढ़ा।
बात ज्ञान की ही रहने दीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥

व्यर्थ बातों से स्वयं को उठा,
कर्म पथ पे खुद को लगा।
गीता को माथे धर लीजिये,
आज फिर गीता पढ़ लीजिये॥