गीत/नवगीत

कविता: तिमिर (अन्धकार) का संसार से परिचय

सुनो तिमिर लो आज पुनः मैं कविता दीप जलाता हूँ
चलो तुम्हे इस सघन घनन में जीवन छंद सुनाता हूँ!!

चलो ले चलूँ पार तुम्हे मैं गीत अतीत के गाने को
या नवपथ पर जीवनरथ पर भविष्य नया सजाने को
चलो तिमिर फिर आज करा दूँ सैर तुम्हे वीरानों की
परिचय दे सूरत दिखला दूँ कुछ अपने अनजानों की
चलो घूमाकर ले आऊँ मैं तुम्हे चांदनी रातों से
और मिला दूँ कहीं चलो फिर बीती बिखरी बातों से
चलो तिमिर मैं तुम्हे ले चलूँ उन स्वप्नों के आंचल में
और उलझा दूँ उन्ही घनेरे सपन सुनहरे बादल में
बना तुम्हारे साथ सदा पर जगमग ज्योत जलाता हूँ
चलो तुम्हे इस सघन घनन में जीवन छंद सुनाता हूँ!!

दूर तैरती नदियाँ देखो झरने देखो सागर देखो
सुख की खाली बंधी पोटली दुःख की रीति गागर देखो
अविरल बहते जल के जैसे संवेदन के भाव देख लो
छिलते रोज कंटीले पथ से उभरे जीवन घाव देख लो
करुना देखो ममता देखो मादकता के सब क्षण देखो
रोज बरसते नैना देखो स्मृति भीगे कण कण देखो
कहीं कहीं पर लोभ देख लो, स्वार्थ सघन की टोह देख लो
तुमसे काले हैं मन देखो माया प्लावित मोह देख लो
मैं भी गुजरा इसी राह से फिर भी ना जतलाता हूँ
चलो तुम्हे इस सघन घनन में जीवन छंद सुनाता हूँ!!

प्यारे कोमल हाथ देखना कोमल कुंजल गात देखना
प्यारे बच्चे के मुस्काते चेहरे पर तुम दांत देखना
चूजों के झुंडों में जाकर प्रेम टोंचती मात देखना
इंसानों से हरदम अच्छी पंछी की तुम जात देखना
पंख देखना हवा देखना और उड़ान का देख जूनून
निश्चित ही तुम सुख पाओगे मन को मिलता नया सुकून
जंगल सब मतवाले हैं और हैं स्वतंत्र सब हिस्सों से
मानव बस्ती बंटी हुयी है भरी पड़ी बस किस्सों से
इसीलिए हे तिमिर तुम्हे मैं स्वतंत्र जगत दिखलाता हूँ
चलो तुम्हे इस सघन घनन में जीवन छंद सुनाता हूँ!!

सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!