मुक्तक/दोहा

आप सभी को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ…!!”

टिमटिमा दीपक गए, फैला दिया उजास।
दीवाली ले आ गई, आशा और उल्लास।।

जगमग किसने है किये, नभ के दीप हज़ार।
बिन बाती बिन तेल के, जलते हर इक बार।।

नैनों से नयना मिले, जले हज़ारों दीप।
सिंधु मन तूफ़ान उठा, भाव छुपे थे सीप।

दीप सज़ा रोशन किया, घर का हर इक द्वार।
छल-कपट को त्याग दे, हो रोशन त्यौहार।।

चकरी ने चकरा दिया, फुलझड़ी मुँह चिड़ाय।
दीवाली कैसे मने, महंगाई रुलाय।।

gunjan agrawal

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*