संस्मरण

मेरी कहानी 79

दुसरे दिन हम फिर विक्टोरिया स्क्वायर चले गए। लाली हमारी इंतज़ार कर रहा था। लाली ने एक लड़के के गले में टिकटों वाली मशीन डाल दी और गले की दुसरी तरफ एक चमड़े का बैग डाल दिया जिस में कुछ पैसे डाले हुए थे। अब टिकट काटने की प्रैक्टिस होने लगी। लाली कभी कोई टिकट मांगता कभी कोई और उस लड़के को एक पाऊंड पकड़ा देता। लड़का टिकट के हिसाब से बाकी चेंज वापस करता। यह काम पहले धीरे धीरे, फिर तेजी से होने लगा ताकि जल्दी से पैसे वापस किये जा सकें । हमें बताया गिया था कि जब तकरीबन बीस टिकट मशीन में रह जाएँ तो नया रोल मशीन में डाल लें। नया रोल डालना भी कुछ मुश्किल था किओंकि नए रोल को खोल कर, उस के सिरे पर लगी टेप को, जिस को गोंद लगा होता था ख़तम हो रही टेप से जोड़ना पड़ता था। काम तो यह मुश्किल नहीं था लेकिन रश आवर में जब अचानक टिकट ख़तम हो जाएँ तो जल्दी जल्दी टेपों को आपस में जोड़ कर मशीन फिर से चालु करना एक फुर्ती का काम होता था।

सब से ज़िआदा मुश्किल था टिकटों का हिसाब करना किओंकि जल्दी जल्दी सब यात्रीओं से पैसे कुलैक्ट करने थे। इस में एक खतरा यह होता था कि अगर हम ने किसी को ज़िआदा चेंज के पैसे वापस कर दिए तो बहुत लोग पैसे वापस देते नहीं थे क्योंकि इंगलैंड में आम लोगों की आदत यह ही होती थी कि बगैर गिने ही लोग जेब में डाल लेते थे जो बहुत हद तक यह आदत आज भी है क्योंकि हेरा फेरी कोई करता ही नहीं है ख़ास कर चेंज वापस देने के मुआमले में , कुछ लोग गिण कर वापस दे भी देते थे। आठ नौ घंटे सारा दिन काम करके हिसाब कैशिअर को देना होता था। अगर पैसे कम हुए तो हिसाब में लिख लिए जाते थे और हफ्ते बाद तन्खुआह में से काट लिए जाते थे। आधा आधा घंटा सब ने मशीन पर प्रैक्टिस की। एक बजे हम को फिर खाने के लिए टोकन दे दिए गए और हम ने कैंटीन में मज़े का खाना खाया। खाना खाने के बाद फिर मशीन की प्रैक्टिस शुरू हो गई।

आज सभी का सख्त दिन था। लाली ने हमें बताया कि चमड़े के बैग में तीन खाने थे। बड़े खाने में हम ने पैनी के सिक्के डालने थे जो अक्सर लोग ज़्यादा देते थे ,एक में तीन पैनी के , छै पैनी और एक शिलिंग के सिक्के तीसरे खाने में , दो शिलिंग और अढ़ाई शिलिंग के सिक्के जिन को हाफ कराऊन भी बोलते थे उन को कोट की जेब में डालना था (यह जेबें बहुत बड़ी होती थीं ). नोट किओंकि कभी कभी ही कोई देता था ,उन को ऊपर की छोटी जेब में डालना होता था। बस में जब यात्री कम हों तो पैसे गिन गिन कर पेपर के बैगों में डालने होते थे। यह पेपर बैग तीन रंगों के होते थे। एक ब्राऊन बैग होता था जिस में 240 पैनी डाली जाती थी किओंकि 240 पैनी से एक पाऊंड हो जाता था(आज तो पाउंड में 100 पैनी होती हैं )। एक ब्लू बैग होता था जिस में तीन पैनी के 80 सिक्के डाले जाते थे और इस से भी एक पाऊंड हो जाता था। सिल्वर बैग में सभी मिक्स सिक्के यानी छै पैनी ,एक शिलिंग ,दो शिलिंग और अढ़ाई शिलिंग के सिक्के डाले जाते थे और यह पांच पाऊंड हो जाते थे। जब पैसे जमा कराने होते थे तो यह सभी सिक्के मशीन पर तोल लिए जाते थे। अगर एक भी सिक्का कम होता तो मशीन बता देती थी, ज़िआदा होता तो भी।

यह प्रैक्टिस हम दो दिन और करते रहे ,जिस से हम को कुछ यकीन हो गिया कि अब हम काम कर सकते हैं। शुक्रवार को लाली के साथ हमारा आख़री दिन था और इस के बाद एक हफ्ता हम ने दूसरे कंडक्टरों के साथ काम करना था जो हमने ही करना था और ड्यूटी वाले बस कंडक्टर ने हमारी गलतिओं को दरुस्त करके ठीक ढंग से काम करना सिखाना था। शुकरवार के दिन लाली ने सिर्फ लैक्चर ही दिया। लाली बोला ,” फ्रैन्ड्ज़ ! मैंने सब कुछ आप को बता दिया है कि कैसे काम करना है लेकिन आज मैं तुम को वोह बातें बताऊंगा जिसकी वजह से आप की और मेरी रोज़ी रोटी चलती है। यह जो बस पर पैसेंजर चढ़ते हैं यह पैसेंजर नहीं हैं बल्कि आप के कस्टमरज़ हैं और इन की वजह से ही आप को तन्खुआह मिलती है और आप का और मेरा घर चलता है ,इस लिए आप का फ़र्ज़ बनता है कि कस्टमरज़ को अच्छी से अच्छी सर्विस दें।

कस्टमरज़ आप के लौर्ड हैं , customer is always right के प्रिंसीपल पर हम काम करते हैं। वोह आप को आप की दी हुई सर्विस के पैसे देते हैं। आप उन पर कोई अहसान नहीं कर रहे बल्कि वोह आप पर अहसान कर रहे हैं। अगर आप उन को उन के पैसों की सही कीमत नहीं देते हैं तो उन का आप के खिलाफ शकायत करने का हक़ है। इसी लिए जब आप काम करने लगेंगे तो जान जाएंगे कि कुछ लोग आप की गलती से नाराज़ हो कर डैपो जा कर मैनेजर से आप की शकायत करेंगे और आप को मैनेजर के सामने ऐसे पेश होना पड़ेगा जैसे कोर्ट में जा कर जज के सामने। वहां मैनेजर है मिस्टर बटलर। बटलर बहुत शख्त है ,वोह आप को कस्टमर की रिपोर्ट पड़ कर सुनाएगा और आप को उस का जवाब देना होगा। आप की ट्रांसपोर्ट यूनियन का रीप्रीज़ेंटेटिव भी आप के साथ बैठा होगा जो आप को डिफेंड करेगा लेकिन मिस्टर बटलर आप की सुनेगा नहीं और आप को शाऊट करेगा, टेबल पर जोर जोर से हाथ मारेगा। आप की, की हुई गलती और उस का फैसला मैनेजर बटलर के रिकार्ड में लिख लिया जाएगा और ऐसा ही तुम्हारे यूनियन के रिकार्ड में भी लिख हो जाएगा। जब आप की शकायत फिर कोई करता है तो बटलर के साथ पेशी के दौरान पहले आप की पहली की हुई गल्तीआं पड़ कर सुनाई जाएंगी। इस के बाद फिर से आप का ओवर हाल किया जाएगा” (इस पर सभी हंस पड़े ).

लाली फिर बोला ,” आप को गिआत ही है कि सभी बसें ज़्यादा तर डब्बल डैकर यानी दो छतों वाली हैं लेकिन चार बसें डैपो में सिंगल डैकर भी हैं जो कंट्री रुट यानी छोटे छोटे फ़ार्म में वसे गाँवों को जाती है यहां लो ब्रिज होते हैं और डब्बल डैकर बसें उन के नीचे से पास नहीं हो सकतीं। डब्बल डैकर बस में जब लोग बस पर चढ़ते हैं तो कोई नीचे बैठ जाता है और कोई ऊपर चले जाता है। आप को टिकट ऊपर जा कर जल्दी जल्दी काटने होंगे और साथ ही मशीन पर लगे लीवर को घुमा कर टिकट पर सही स्टेज प्रिंट करनी होगी ताकि टिकट से इंस्पैक्टर को पता चल सके कि कोई कस्टमर कहाँ से बस में बैठा था ,कोई तीन पैनी का टिकट ले कर दूर तो नहीं जा रहा ,यहां किराया ज़्यादा लगता है ! ड्राइवर ने तो बस चलानी है लेकिन कंडक्टर ने उस को सही घंटी बजा कर दर्शाना होता है कि उस ने किया करना है।

जब किसी बस स्टॉप पर से लोग चढ़ गए तो चलने के लिए कंडक्टर को दो दफा घंटी बजानी है ,डिंग डिंग !और ड्राइवर बस को चला देगा। अगर किसी ने अगले बस स्टॉप पर उतरना हो तो एक दफा घंटी बजाना है। अगर बस भर गई है और इस में पांच लोग खड़े भी हैं तो कंडक्टर को तीन घंटी बजानी होगी ,जिस से ड्राइवर समझ लेगा कि बस भरी हुई है और वोह बस को कहीं खड़ी नहीं करेगा जब तक कि किसी ने उतरना ना हो। इस को कहते हैं थ्री बैल लोड यानी भरी हुई बस । अगर अचानक कोई एमरजैंसी जैसी बात हो जाए जैसे कोई अचानक बीमार हो गिया या गिर पड़ा हो या बस पर लड़ाई शुरू हो गई हो तो कंडक्टर को चार घंटीआं बजानी होगी,यह एमरजैंसी स्टॉप होगा और ड्राइवर एक दम बस खड़ी कर देगा और ड्राइवर अपनी कैब में से बाहर निकल कर आप के पास आ जाएगा और हालात से निपटने के लिए आप की मदद करेगा”.

लाली ने हम को मील टोकन दे दिए और हम कैंटीन में खाने के लिए चले गए। मुफ्त का खाना, हमने प्लेटें भर कर खाईं। एक घंटा हम बातें करते रहे। इस के बाद हम फिर लाली के पास आ गए। लाली बोला ,” वुल्वरहैम्पटन के तीन बस डैपो हैं। इन को मिऊंसीपल कार्पोरेशन चलाती है। एक बस डैपो पार्क लेन पर सथित है ,दूसरा बिल्सटन माउंट प्लैज़ैंट रोड पर सथित है और तीसरा यह क्लीवलैंड रोड गैरेज है। यूं तो आप इस गैरेज से ही काम करेंगे लेकिन आप को इन तीन गैरजों में कहीं भी भेजा जा सकता है। वैसे दुसरी गैरेज में काम करने के लिए आप को आधा घंटा ट्रैवलिंग टाइम मिलेगा यानी आधे घंटे के पैसे और मिलेंगे । काम शुरू करने से पहले यह आप की ज़िमेदारी बनती है कि आप के मशीन बौकस में काफी टिकट रोल रखे हों ताकि ड्यूटी के दौरान खत्म ना हो जाएँ ,अगर टिकट रोल कम हों तो ऑफस से और ले लें।

कई दफा बस में लोग चढ़ते हैं तो अपने पैसे घर भूल आते हैं। बस में बैठने पर उन को अपनी जेब में हाथ डालने पर पता चलता है। ऐसे में अगर कोई आप को कहे कि उन के पास पैसे नहीं हैं तो आप को फिर भी उसे टिकट देना होगा ,आप को कुछ कार्ड दिए जाएंगे जिस को कहते हैं अन पेड फेयर कार्ड। इस पर उस शख्स का नाम और पता आप को लिखना होगा और एक कापी उस शख्स को देनी होगी और दुसरी कापी आप को अपने पास रखनी होगी जो आप ने ड्यूटी खत्म होने पर पैसों के साथ जमा करा देनी होगी। वोह शख्स 48 घंटे के भीतर डैपो आ कर किराए के पैसे दे देगा। अगर वोह नहीं देने आता तो हमारा इंस्पैक्टर उस शख्स के घर जाएगा और आप का इस से कोई लेना देना नहीं होगा।

बस में गिर कर चोट लगना या अचानक बीमार हो जाना आम बात है ,ऐसे में बस को एमरजैंसी घंटी बजा कर खड़ी कराना आप का फ़र्ज़ है। जिस शख्स के चोट लगी है या बीमार हो गिया है ,आप को उस से पूछना होगा कि अगर उस को एम्बुलैंस की जरूरत है या नहीं। अगर वोह हस्पताल जाना चाहता है तो किसी भी टेलीफून बूथ से हस्पताल को एम्बुलेंस के लिए टेलीफून करना होगा और आप को एम्बूलैंस के लिए इंतज़ार करना होगा। इसी वक्त आप की बस में बैठे सभी यात्रिओं को पीछे से आ रही बसों में चढ़ाना होगा और उन की बसों के कंडक्टरों को भी बताना होगा कि सभी यात्रिओं ने टिकट लिए हुए हैं ताकि लोगों को दुबारा टिकट ना लेने पढ़ें ।

जब एम्बूलैंस आ जायेगी तो उस के साथ पुलिस की कार भी आ जायेगी जो सारी तफ्तीश करेगी कि यह चोट कैसे लगी या किया बीमारी है । बस में बैठे आप को दो तीन गवाह भी लेने होंगे और उन का नाम और पता अपनी डायरी में लिख लेना होगा। यह सब कुछ इस लिए है कि अगर वोह शख्स कोर्ट में जाना चाहता है और बस कम्पनी पर मुआवज़े का क्लेम करना चाहता है तो गवाह बता सकें कि किस का कसूर था। इस के इलावा अगर कोई आप के पास आता है कि बस में कहीं उसकी ड्रैस बस में पड़ी किसी पर्कार की गंदगी के कारण या किसी कील से लग कर खराब हो गई है या फट गई है तो उस का नाम और पता लिख लीजिये और बस डैपो आ कर रिपोर्ट फ़ार्म भर कर दीजिये क्योंकि वोह शख्स अपनी ड्रैस के मुआवज़े का क्लेम करेगा।

हमेशा सड़क पर रहने के कारण कार एक्सीडेंट होते ही रहते हैं। ऐसे में भी अगर कुछ लोग जख्मी हो गए हों तो एम्बुलेंस को फोन करना होगा और गवाह भी लेने होंगे ,पुलिस अपने आप आ जायेगी। आखर में ड्यूटी खत्म करके डैपो में आ कर आप को एक्सीडेंट रिपोर्ट फ़ार्म भरना होगा कि कैसे एक्सीडेंट हुआ था , एक्सीडेंट की जगह का छोटा सा नक्शा भी बनाना होगा। जख्मी हुए और गवाहों के नाम और पते रीपोेर्ट में लिखने होंगे। बहुत दफा ऐसा होता है कि कुछ लोग अपनी चीज़ें बस में भूल जाते हैं। डेस्टिनेशन पर पहुँच कर बस को चैक करें और अगर कोई चीज़ सीट पर पड़ी दिखती है तो उस को उठा लें और डैपो आ कर फ़ार्म भर कर जमा करा दें। जिस शख्स की वोह चीज़ गुआची हुई है ,अगर वोह डैपो में आ कर पूछता है तो डैपो वाले उस को उस की आइडेंटिफिकेशन पूछ कर उस की वोह चीज़ उस को दे देंगे और उस से कुछ पैसे भी चार्ज करेंगे और उस का कुछ पर्सेंटेज आप को भी दिया जाएगा।

छोटी छोटी चीज़ें कुछ और हैं जैसे कभी कभी बस स्टॉप पर खड़े बस इंस्पैक्टर आप की बस में चढ़ जाएंगे और आप की बस को चैक करेंगे। अगर आप किसी स्टॉप से टाइम टेबल से पहले आ गए या गलत टिकट काट दिए गए तो वोह आप को बुक कर देगा ,जिसके लिए आप को मिस्टर बटलर के आफिस में जाना होगा। इसके इलावा अगर पता चल गिया कि अगर आप ने अपने किसी दोसत या रिश्तेदार को टिकट नहीं दिया या पैसे की हेराफेरी की तो काम से उसी वक्त छुटी हो जायेगी, कोई अपील नहीं हो सकेगी। मेरी इन बातों को सुन कर आप जरूर पज़ल्ड हो गए होंगे लेकिन धीरे धीरे आप सब सीख जाएंगे।

कुछ देर बाद आप को बस ड्राइविंग का चांस भी दिया जाएगा जिसके लिए हमारे बस इनस्ट्रर्क्टर आप को बस ड्राइविंग सिखाएंगे और आखर में मिनिस्ट्री ऑफ ट्रांसपोर्ट आप का टेस्ट लेगी। अगर पास हो गए तो आप को PSV यानी पब्लिक सर्विस वैहिकल ड्राइविंग लाइसैंस मिल जाएगा। इस का फायदा आप को और भी होगा ,आप इसी लाइसैंस से कार भी चला सकेंगे। यह कोर्स छै हफ्ते का होगा और चार हफ्ते खत्म होने पर और टेस्ट पास करने पर आप को सभी बस रुट दिखाए जाएंगे ताकि आप हर रुट को अच्छी तरह जान जाएँ। सोमवार को जब आप बस कंडक्टर के साथ मिल कर काम सीखेंगे तो कुछ और बातें भी जान जाएंगे। बस यह ही है आप की ट्रेनिंग। now good luck to you.”.
हम सभी उठ खड़े हुए और अपने अपने घर को जाने और बस पकड़ने के लिए बस स्टेशन की ओर चल पड़े।

चलता . . . . . . . .

 

5 thoughts on “मेरी कहानी 79

  • विजय कुमार सिंघल

    भाईसाहब, आज की किस्त पढकर मज़ा आ गया। बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने। इतने वर्ष बाद भी आपको सब याद है यह आश्चर्यजनक है।
    वन मैन ऑपरेटेड बसें सिंगापुर में भी चलती हैं। एक बार मैं एक बस में चढ़ा तो ड्राइवर ही किराया ले रहा था।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विजय भाई , मुझे लगता है जितना मुझे याद है उस से बहुत ही कम लिख रहा हूँ किओंकि कई दफा जो बातें मैंने लिखनी थीं ,बाद में याद आ जाती हैं और फिर वोह लेट हो जाता है लिखने के लिए .वन मैंन बस्सें तो यहाँ शाएद १९८० के करीब ही शुरू हो गई थीं .जब कोई बस में चड़ता है तो मशीन में पैसे डाल देता है और ड्राइवर टिकट की कीमत के हिसाब से बटन दबा देता है और टिकट उसी वकत कुछ दूरी पर लगी एक मशीन से बाहर निकल आता है .यह बहुत कुइक्क है ,लोग आई जाते हैं और टिकट ले कर जाई जाते हैं .अब तो कार्ड सिस्टम शुरू हो गिया है .लोग पहले से ही कार्ड ले लेते हैं और बस पर चढ़ कर स्वाइप कर देते हैं और ड्राइवर बटन दबा देता है .अब तो ड्राइवर को रूट लर्न करने की भी जरुरत नहीं है किओंकि बस्सों में सैट नैव लगे हुए हैं जो रूट फीड करने पर ड्राइवर को बता देता है कि किधर मुड़ना है .

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी. आज की क़िस्त पूरी पढ़ी। नई नई अनेक बातों का ज्ञान हुआ। लगता है कि बस कंडक्टर का काम तो बहुत ही कठिन है। अभी तक मैंने यह अनुभव नहीं किया था। आज की क़िस्त के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई , यों तो सारी दुनीआं में बस कंडक्टर काम करते हैं लेकिन मैं इस में इंग्लैण्ड और इंडिया का फर्क बताना चाहता था .इंग्लैण्ड में कंडक्टर ही नहीं सभी डीपार्टमेन्ट में कस्टमर सर्विस पे बहुत जोर दिया जाता है और कहीं भी कोई स्फार्ष के लिए गुन्जाएश नहीं है . हर एक का काम तट फट हो जाता है .इंडिया में तो कंडक्टर ड्राइवर ऊपर से पैसे बनाते हैं लेकिन यहाँ ऐसी कोई बात नहीं है .

      • Man Mohan Kumar Arya

        नमस्ते एवं धन्यवाद जी। इन्ही बातों को अपनाकर अर्थात कर्त्वपरायण, समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना तथा व्यवहार व आचरण में सच्चाई से ही देश महान बनता है। लूट खसूट करने वालें लोगो के देश के महान बनने की कोई संभावना संसार में नहीं है, यह असंभव है। आपका धन्यवाद, आभार एवं सादर।

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