गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उलझाती ये बेचैनियां जाने क्या अंजाम लिखेंगी
टूटी उम्मीदें भला कैसे मुकम्मल पैगाम लिखेंगी

ख्वाबों में भी परदापोशी ही किया करते है पसंद
कैसे हथेलियां सुर्ख मेंहदी से उनका नाम लिखेंगी

रोशनी मे दीदार गंवारा नहीं उन नम निगाहों को
आफताबी किरणें भला कैसे धुंधली शाम लिखेंगी

इतना अदम भर डाला है जुदाई ने दिल के अंदर
उखङी धङकने भला कैसे बिना रूके आराम लिखेंगी

निकले ना इब्तिसाम तहजीबों से भी बचा करते है
खुश्कियां भला कैसे भीगी दास्तां तमाम लिखेंगी

मिलके भी मिलने की ख्वाहिशें आदाब कहती नहीं
ऐसी मुलाकातें भला कैसे अलविदा-ए-सलाम लिखेंगी

मीनू झा 

मीनू झा

शैक्षिक योग्यता स्नातक (अंग्रेजी) स्नातकोत्तर (एम.बी.ए) (वित्त व मार्केटिंग में विशेषज्ञता) लेखन-रूझान कई भाषण व वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में विजेता-उपविजेता तीन सालों से ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय संपर्क निवेदित कुमार झा,एम एच-309,सी आई एस एफ कॉलोनी,पानीपत रिफाईनरी के निकट,पानीपत,हरियाणा फोन नंबर 9034163857/9570473537

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    बहुत सुंदर

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया ग़ज़ल !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत बढ़िया
    वाह

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