उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-4: बिरजू कालिया

बिरजू कालिया,रंग काला, उम्र पच्चीस के आसपास, लम्बाई लगभग साड़े पाॅच फुट, घुंघराले बाल, अपने बैडरूम में सोया हुआ था।बैडरूम में इधर-उधर फैला हुआ सामान, न्यूजपेपर, मैगजीन्स, व्हीस्की की खाली बोतलें मैगजीन्स के कवर पर ज्यादातर लड़कियों की तस्वीर और दीवारें उसकी चहेती हिरोइनों की फोटोओ से भरी पड़ी थी मानो उसका बैडरूम एक कबाड़खाना हो।
बिरजू के बैडरूम में दो खिड़किया थीं और वह भी अंदर से बंद बिरजू अपने जाड़े रेशम मुलायम गद्दे पर रेशमी तकिया को सीने से लगाकर बार-बार करवट बदल रहा था।शायद उसे नींद नहीं आ रही थी काफी समय से वह डिस्टर्व था वह सोने की कोशिश कर रहा था पर उसे नींद अब भी नहीं आ रही थी इसलिए वह बैड से नीचे उतर गया पैर पर स्लिपर चढ़ाई और किचन की तरफ चला गया किचन में जाकर फ्रिज से पानी की बोटल निकालकर वहीं खड़े-खड़े पानी पीने लगा उसने एक ही बार में पूरी बोटल पानी खत्म कर दिया और फिर वह खाली बोतल लेकर हाॅल में जाने लगा।

हाॅल में अंधेरा छाया हुआ था उसने सोचा चलो टीवी देख ली जाये उसने सोफे पे पड़े रिमोट से जैसे ही टीवी ऑन की अचानक से उसकी चीख निकल पड़ी और उसके हाथ-पैर कांपने लगे उसकी टीवी की स्क्रीन पर खून की धार वह रही थी उसने कपकपाते हाथों से बल्व ऑन किया तो देखा कि उसकी टीवी के ऊपर एक माॅस का टुकड़ा रखा है जिसमें से अभी भी खून वह रहा है वह दौड़ते हुए टेलीफोन के पास गया और एक नम्बर डायल किया।

दयाल कुशवाह

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