राजनीति

भारत की सहिष्णुता अक्षुण्ण है –अफवाहों और साजिशों से सावधान

बात कुछ पुरानी है. एक प्राचीन राज्य में एक बड़ा प्रसिद्ध क़स्बा था. वहां एक बड़ा ही सुन्दर जलाशय था. उसके पानी में गजब की मिठास थी और बड़े औषधीय गुण भी थे. दूरदराज के लोग उसका पानी अपने – अपने शहरों और राज्यों में ले जाया करते थे. कहते हैं कि उस जलाशय की रक्षा स्वयं वरुण देवता और भगवान धन्वन्तरि करते हैं. वैज्ञानिकों द्वारा उसके जल में रोगाणुओं को डाला गया परन्तु वे निष्प्रभावी हो गए. कई बार गन्दगी डाली गई, पर वह भी जल में अपना अस्तित्व खो देती थी. सभी सुखी थे. उसमें न जाने कहाँ से निरन्तर जल आता रहता था, किसी भी मौसम में पानी कम नहीं होता था. वहां के लोग भी दिन – रात उसकी रक्षा करते थे. उस क़स्बे और आसपास के इलाके में जलजनित रोग कभी नहीं हुए.

एक बार एक बदमाश किस्म के मुनाफाखोर विदेशी व्यापारी ने जलजनित रोगों की दवा के अपने बेपनाह स्टॉक को ख़त्म करने के लिए स्थानीय डॉक्टरों को लालच दिया परन्तु जलाशय के अमृत जल के चलते सभी ने हाथ ऊंचे कर दिए. व्यापारी ने कस्बे के एक गुण्डा किस्म के जुगाडू नेता से सम्पर्क किया, उसने सबसे कमजोर इच्छा शक्ति वाले एक असफल और अपने पेशे में बेहद कमजोर डॉक्टर को अपना शिकार बनाया. इसके अलावा दवाइयां बेचने वालों और जांच करने वालों को भी अपने षड्यंत्र में शामिल कर लिया. फिर डॉक्टर की छद्म प्रसिद्धि के लिए उसकी क्लीनिक के बाहर नकली रोगियों की लाइनें खड़ी की गई और यह प्रचारित करवा दिया गया कि डॉक्टर बड़ा काबिल और सफल है. सालों से आजमाया जा रहा यह फार्मूला काम आया, डॉक्टर की तो चल निकली. उसे नेताजी ने कई संस्थाओं से सम्मान भी दिलवा दिया, ताकि किसी को शक नहीं हो और षड्यंत्र का पता भी नहीं चले. उस गधे की तो मानो लाटरी ही लग गई. रातोंरात अखबारों और टीवी चैनलों में छा गया.

योजना के तहत उसने जलाशय के पानी के बारे में तरह तरह की अफवाह फैलाई कि इसका पानी पीने से उसके अपने कई मरीजों को जानलेवा बीमारियां हो गई और कुछ तो अकाल मौत को प्राप्त हो गए हैं. जो जलाशय की पवित्रता पर विश्वास करते थे, उन्होंने अफवाहों से सावधान करने की बहुत कोशिशें की और स्वयं भी उसका पानी पीते रहे. अन्य कस्बों, राज्यों और विदेशों के विश्वासी लोगों ने अफवाहों को गलत माना और उस जलाशय के अमृत जल की सार्वजनिक प्रशंसा करते रहे. इनमें सभी धर्म मजहब के लोग थे. परन्तु उस कस्बे और आसपास के कस्बे के ही अनेक कमजोर किस्म के लोगों ने कथित सम्मानप्राप्त डॉक्टर की बात पर विश्वास कर लिया. वे दूसरे जलाशयों का पानी पीने लगे, और बीमार पड़ने लगे. दवाइयां, बीमारी के जांच किट्स धडल्ले से बिकने लगे. व्यापारी खुश हुआ और उसने नेताजी को भी खुश कर दिया.
धीरे – धीरे जलाशय का पवित्र और औषधीय पानी ले जाने के लिए आने वाले अधिकांश विदेशियों और अन्य राज्यों के लोगों को नेताजी के समर्थक डरा कर जबरिया लौटाने लगे और ख़बरें बनने लगी कि लोग डरकर वापस लौट रहे हैं. धीरे धीरे लोग उस जलाशय के प्रति शंकित भी रहने लगे और कभी कभी बिना निजी अनुभव के ही जलाशय के पानी के बारे में तरह तरह की गलत बातें स्वयं का अनुभव बताकर बताने लगे.

जलाशय के पक्षधर लोगों में कुछ गुस्साए युवा लोग जलाशय विरोधी अफवाहों से बेहद नाराज हुए और आक्रोश के साथ इसका विरोध करने लगे. इधर नेताजी के समर्थकों ने भी जलाशय से रोगों के होने की अफवाह को जोरशोर से हवा दी. कई बार आमने सामने की नौबत आने लगी परन्तु नेताजी का सुनियोजित और प्रायोजित प्रचार हमेशा भारी पड़ता रहा. नेताजी सभी को खरीदने की हैसियत रखते थे. इधर जलाशय के अधिकतर समर्थक शान्त स्वभाव के थे या नेता से पंगा लेने से कतराते (डरते) थे. फिर भी कुछ लोग सच्चाई बोलने की हिम्मत करने लगे, परन्तु उन्हें जानबूझकर अनसुना कर दिया गया. आक्रोशित जलाशय समर्थकों को गुण्डा तत्व करार दिया जाने लगा.

जलाशय आज भी पवित्र है और उसका पानी औषधीय है परन्तु अफवाहें बदमाश लोगों के रिमोट कंट्रोल से सीधे साधे लोगों की जीभ पर सवार होकर पूरे विश्व में पसर जाने की कोशिशों में कामयाबी की राह पर बढ़ती दिखाई दे रही है.

सच यह है कि उम्मीदें कभी दम नहीं तोड़ती हैं, जलाशय की सत्यता से सराबोर नैसर्गिक और शाश्वत पवित्रता अफवाहों के झूठे तूफ़ान को परास्त करने में कामयाब होगी, मुझे तो पूरा विश्वास है. क्या आपको भी है ?

इस कहानी में जलाशय को भारत और उसके पानी को सहिष्णुता समझने का कष्ट करें. बाकी पात्र खुद ब खुद प्रकट हो जाएंगे. वंदेमातरम्