कविता

जागो भोर हुई…

पंछी मधुरस घोल रहे हैं
चहचाहट कर बोल रहे हैं
जागो भोर हुई।

मंदिर के घंटों बजते हैं
दीप आरती स्वर सजते है
जागो  भोर हुई।

पूरब लाली ले मुस्काया
सूरज ने तम दूर भगाया
जागो भोर हुई।

हरियाली पर बिखरे मोती
जागी आशाओं की ज्योति
जागो भोर हुई।

फूलों ने खुशबू घोली हैप्पी
कलियों ने अंगडाई ली है
जागो भोर हुई।

नव किरणें लेकर आयी है
धूप ने बाँहें फैलाईं हैं
जागो भोर हुई।

करता है नव दिन अभिनंदन
आओ करे ईश का वंदन
जागो भोर हुई।

— सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.