कविता

अप्प दीपो भव

अप्प दीपो भव
तो… क्या… मात्र
अपनी आत्मा से संवाद करें
उसे ही सहज, सरल है..
याद दिलाएं?
अपना दीपक खुद ही बन जाएँ
अपनी राह आलोकित करें
अपना लक्ष्य पा जाएँ???
अपने लिए..
जिए तो क्या जिए?
आत्म मंथन करें
आत्मरूप से साक्षात्कार
आत्मस्थित हो जाएँ
आत्मा से परिचय कर
अन्य का पथ प्रशस्त करें
जनमानस को
देह अभिमान से
मुक्त कराते जाएँ
वक्त व्यर्थ न गवाएँ
उन्नति का संकल्प
हर आत्मा में भरते जाएँ
संगमयुग में आगमन
स्वारथ करते जाएँ
सबको सचेत करें माया से
भगवान से परिचय कराएँ
काम महाशत्रु क्रोध का अग्रज
दोनों को योग से मार भगाएँ
अपना जीवन सँवार कर
औरों को भी हम राह दिखाएँ
“अप्प दीपो भव ”
अरू
औरन की नइया पार लगाएं।।।।

#निवेदिता

3 thoughts on “अप्प दीपो भव

  • बहुत खूब .

  • बहुत खूब .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुन्दर रचना

Comments are closed.