गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब वो रूठा हुआ सा लगता है,
दिल में तूफां उठा सा लगता है।

मैं उसे वो मुझे समझता है,
इसलिए वो जुदा सा लगता है।

हैं सभी दूर मेरी नज़रों से,
मुझमे बस वो बसा सा लगता है।

कौन कहता है वो बुरा सबसे,
मुझको तो वो भला सा लगता है।

उसकी खुशबू है मेरी साँसों में,

मुझको तो वो खुदा सा लगता है।

— शुभदा बाजपेयी

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह बहुत खूब !

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