कविता

ये कहाँ जा रहे हम ?

कितनी माताएँ बिलखी होंगी एक माँ की इस नादानी पर
दिल दहल उठा सबका सुनकर इस अनसुनी कहानी पर
एक माँ पटरी पर लेट गयी लेकर के जिगर के टुकड़े को
मरने को छोड़ दिया यूँ ही उस चाँद से प्यारे मुखड़े को
इक जननी ही अपने बच्चे की कातिल खुद ही बन जाये
ईश्वर को भी मंजूर नहीं कोई माँ हत्यारन कहलाये
आ रही ट्रेन वो सोयी रही सीने में रख कर के पत्थर
घोंट गला माँ की ममता का बना लिया खुद को पत्थर
गुजर गयी जब रेल तभी ईश्वर का देखो न्याय हुआ
कई टुकड़े हो गये माँ के पर बच्चे के साथ न अन्याय हुआ
वो बिलख रहा था पटरी पर नन्ही सी जान वो क्या जाने
दुनिया में नहीं रही वो माँ, जो लिटा गयी उसे मर जाने
एक अनजानी माँ ने ले सीने से उसको चिपकाया
पिला के अपना दूध उसे अहसास माँ का करवाया
क्यों ऐसी लाचारी है, क्यों इतना गिर गया समाज
क्यों होती ऐसी घटनाएँ क्या नहीं बचा कोई और इलाज
इतनी असहनशीलता क्यों है, क्यों नहीं शक्ति है सहने की
करो विचार जा रहे कहाँ हम जहाँ राह नहीं है जीने की

— पुरुषोत्तम जाजु

पुरुषोत्तम जाजू

पुरुषोत्तम जाजु c/304,गार्डन कोर्ट अमृत वाणी रोड भायंदर (वेस्ट)जिला _ठाणे महाराष्ट्र मोबाइल 9321426507 सम्प्रति =स्वतंत्र लेखन

One thought on “ये कहाँ जा रहे हम ?

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दुखद घटना .

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