लेख

लेख-नियंत्रण साँसों का

प्राण ब्रह्म है ।’साँसों को थोड़ा अनुशासित करने का प्रयास किया जाए तो ऊर्जा, स्मृति , बुद्धि ,चेतना आदि में भारी बदलाव लाया जा सकता है क्योंकि मन की पतंग साँस की डोर से नियंत्रित होती है।

अद्भुत मानव शरीर के फेफड़े भी अद्भुत हैं । उनमें सात आठ करोड़ कोष्ठक होते हैं जिनकी रचना स्पंज की तरह होती है । शहद की मक्खी के छत्ते को देखने से फेफड़ों की संरचना समझी जा सकती है । साँस लेने से इन छिद्रों में प्राणवायु प्रवेश करती है और वे फैलते हैं और साँस छोड़ने से दूषित वायु अर्थात् कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलती है और फेफड़े सिकुड़ते हैं ।नवजात शिशु बहुत जल्दी साँस लेता और छोड़ता है।आगे जाकर हम सामान्यतः प्रति मिनट 12-15 बार साँस लेते हैं और छोड़ते हैं । दिन -रात के चौबीस घण्टों में यह क्रिया लगभग सत्रह हजार से लेकर साढ़े इक्कीस हजार बार तक होती है । उथली और सतही साँसों से फेफड़ों का लगभग एक चौथाई हिस्सा ही कार्यशील रहता है । कम भरे फेफड़े ,कमजोर प्राणशक्ति ,उपद्रवी मन और अस्वस्थ शरीर ये दुष्परिणाम हमें भुगतने पड़ते हैं । लम्बी गहरी साँसे इनसे हमें बचाती हैं । उनसे हृदय शक्तिशाली बनता है ,क्रोध कम होता है ,मन नियन्त्रित रहता है और आत्म विकास की सार्थक दिशा में हमारे चरण बढ़ते हैं । बहुत संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जीवन ऊर्जा बढ़ाने और शरीर तथा मन को मलरहित बनाने के लिए श्वसन तंत्र का पूरा उपयोग अपरिहार्य है । जीवन में बदलाव लाना है तो साँस में बदलाव लाना पड़ेगा ।
मनुष्य को गिनी हुई साँसें मिलती हैं । इसका अर्थ यह है कि लम्बी साँसें आयु बढ़ाती हैं और छोटी -उथली साँसें उतनी ही आयु घटाती है । लम्बी गहरी साँसें मनुष्य को आत्मशान्ति प्रदान करती है । उसकी एकाग्रता ,स्मरण शक्ति और मानसिक दक्षता को बढ़ाती हैं उथली -हल्की साँसें सामान्य जीवन जीने देती हैं और बहुत जल्दी -जल्दी साँस लेने छोड़ने पर तनाव बढ़ने लगता है और मन अशान्त हो जाता है ।
यह भी सामान्य अनुभव की बात है कि उत्तेजना ,क्रोध ,प्रतिशोध ,घृणा ,कड़वाहट आदि के वशीभूत होकर हमारी साँसें अनियंत्रित हो जाती हैं और बहुत जल्दी -जल्दी आती -जाती हैं ।इसके विपरीत क्षमा ,शांति और नम्रता के समय साँसें लयबद्ध होकर हमारी शालीनता एवं तेजस्विता को बढ़ाती हैं । इससे यह स्पष्ट है कि क्रोध ,उद्वेग , चिन्ता, भय ,निराशा ,अवसाद आदि से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता साँस साधना में से होकर गुजरता है ।
साधनों की बहुतायत के बीच निराशा और नकारात्मकता का साम्राज्य फैलता जा रहा है । साँस -साधना की दिव्य ज्योति यदि छुटपन से प्रकाशित की जाए तो आगे जाकर वह महान प्रकाश स्तंभ बन सकती है । आप धीरे -धीरे लम्बी गहरी साँस पेट फुलाते हुए फेफड़ों के प्रत्येक छिद्र में शान्ति से भर दें और मस्तिष्क तक उसका अनुभव करें ।थोड़ी देर तक साँस रोकें और फिर अपान वायु को धीरे -धीरे छोड़ते हुए पेट को अन्दर ले जाएँ । ज्यादा से ज्यादा ताकि शरीर और मन के विकार निकल जाएँ ; यदि साँस भरने का समय 5 सेकंड हो तो छोड़ने का समय प्रयास पूर्वक उससे अधिक रहे ।
सर्वाधिक प्यारी हमारी काया नगरी में प्राण वायु का शासन चलता है । उसी के सहारे मन का मन्त्री मण्डल ठीक तरह से काम करता है । प्राण को वैश्विक ऊर्जा से जोड़ने की भावना रखने पर व्यक्ति विश्वामित्र बन जाता है । रास्ता लम्बा है लेकिन पहला चरण तो बढ़ाएँ । अपनी साँस से अनुशासन शुरु हो और पूरी सृष्टि तक फैले ,यही भावना हमारी होनी चाहिए |
“छाया”

छाया शुक्ला

छाया शुक्ला "छाया" प्रकाशित पुस्तक "छाया का उज़ास"

2 thoughts on “लेख-नियंत्रण साँसों का

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख अच्छा लगा ,मुझे वर्षों से यह आदत बनी हुई है ,पन्दरा मिनट रोज़ लम्बी साँसें लेता हूँ और ज़िआदा से ज़िआदा देर तक होल्ड करता हूँ .मेरे सारे शरीर में हवा फैलती हुई मुझे महसूस होती है ,सर में और नीचे क्लाइओं में सरकूलेट करती महसूस होती है .मुझे इतना मज़ा आता है कि इस को छोड़ नहीं सकता .

    • छाया शुक्ला

      हार्दिक स्वागत है आपका आद.गुमेल सिंह भमरा जी आपको लेख अच्छा लगा मेरा श्रम सार्थक हुआ | आपने अनुभाव साँझा करके आलेख का मान बढाया है | उम्मीद है यह आलेख और सभी के लिए भी हितकारी सिद्ध होगा |
      बहुत बहुत धन्यवाद !
      सादर नमन !

Comments are closed.