कविता

दो कवितायेँ

1

वन प्रदेशों का यह देश
हरा भरा उपवन सब खेत
कही आम साल पीपल है तो,
कही गोंद बरगद का पेड.
कही लाताएँ एकजुट होकर
अपने को करकस बॉधें
कही बागो मे फुल खिले हैं
कही सरोवर मे कमल खिलें
कही नदियॉ कल- कल करती
बहती धार नदीं मे बनकर
कही पहाड़ो से झरना
झर-झर करके गिरती हैं
प्रात: सूर्य की पहली किरण
जब धरा पर आती हैं
पूरे सृष्टी का सवेरा
मानो सुर्य से होता हैं
धन्य धन्य हे धरती मॉ
जिस धरा पर हम जन्म लिए|
(बिजया लक्ष्मी)

2

लड़की होना कोई जुर्म नही|
लड़की होना अपराध नही|
ये दुनिया वालो गौर करो|
कुछ समझ करो कुछ रहम करो|
क्या कसुर उस नन्ही कली की|
जिसको तुमने हलाल किया|
लड़की की ये भोली सूरत|
जिस दिन ज्वाला बन जाएगी|
उस लपेट के इस भय से |
दुनिया बच नही पायेगी|
(बिजया लक्ष्मी)

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।