कविता

मैं जा रही……

मैं जा रही अब
उस मोड पे
जहॉ वर्षो से विरान पडी
उस प्यारी जिंदगी कें साथ
कुछ अनमोल पल बितानें
न जाने कितने
दुःख सहे होगें
कितने कष्ट झेले होगें
मेरे गैरहाजिरी में
वो कोई और नही
अपने ही हैं जो आश लगा
अपनें से दूर भेज देते हैं
दुनियॉ को
कुछ कर दिखाने को
और आज उसे ही
हम भूल जाते हैं
अपने ऐशो आराम की जिंदगीं में
लेकिन मैं भूली नही
जल्दी ही आ रही
बहुत ही जल्दी तेरे पास|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४