ग़ज़ल लिखने के लिए
ग़ज़ल लिखने के लिए ,साथियो
न कोई जूलियट,न हीर चाहिए
दिल में बस ज़रा-सी जागी
दर्द की अनूठी तासीर चाहिए |
ग़ज़ल तो एक जज़्बा है
धड़कनें गाती हैं जिस पर
वह दिल एक साज़ है खुशनुमा
लम्हा-लम्हा जुड़ने को,प्यार की जागीर चाहिए |
प्यार में दर्द का एहसास कुछ नहीं
फाँसी लगे तो भी ,उसका आभास कुछ नहीं
घाव को ही काटे जो बार -बार
ऐसी धारदार एक शमशीर चाहिए |
प्यार के किस्से-कहानियों से
दिल को चैन बहुत मिलता है
प्यार तो एक जज़्बा है प्यारा-सा
उसे पाने के लिए तो ,बुलंद तक़दीर चाहिए |
कशिश जगाती है,प्यार की प्यारी ग़ज़ल
सुन-सुन जिसे जागता आभास मृदुल
दिल में उठे बार-बार विरह में
ऐसी सँजोई हुई गहरी पीर चाहिए |
आज अरमानों में मचा हुआ शोर है
आत्मिक संबंधों की बात कुछ और है
आत्मा–परमात्मा के मिलन का कुछ दौर है
ज़िन्दगी पूरी तरह होनी शरीक चाहिए |
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘