कविता

धाक

मैंने एक उद्योगपति से पूछा कि आप
अपने कर्मचारियों में बहुत प्रसिद्ध हैं
उन्हें बड़े प्यारे हैं
आपके तो वारे – न्यारे हैं |
सच-सच बताइए कि
आप यह सब कैसे कर पाते हैं
कैसे उन्हें वेतन देते हैं
कैसे उपहार दे पाते हैं
और कैसे आप उनमें
अपनी धाक और साख़ जमाते हैं ?
वे बोले — किस्सा सीधा –सादा है
अपना क्या जाता है
हम भी खुश,वर्कर्स भी खुश
हर कोई पूरा वेतन पाता है |
हम उन्हें भर्ती करते समय
उनका जो वेतनमान बताते हैं
उसमें से उनके पाँच सौ
घटाकर बताते हैं
बस,कर्मचारियों को पता नहीं चलता
वे उस वेतन मन में खुश हो जाते हैं
फिर उस बचाई रकम से उपहार खरीदे जाते हैं
हर वर्ष हर को दिए जाते हैं
सभी मालिक के प्रति कृतज्ञ हो जाते हैं
और मुक्त हृदय से वाहवाही लुटाते हैं
बस,इसी तरह हम अपनी धाक जमाते हैं
कर्मचारी हमेशा खुश नज़र आते हैं
वो अपना और हम अपना काम किये जाते हैं |

रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘