गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : आख़िर उसकी मर्जी क्या है

आज नहीं तो कल नदिया को जाकर सागर से मिलना है.

फिर भी इतने नाज़ो-नखरे आख़िर उसकी   मर्जी क्या है.

कितने पैसेवाले आये लेकिन खाली हाथ गये सब,

दिलवाले के हाथों ये दिल बिलकुल माटी मोल बिका है.

मेरे ख़त को दिल से पढ़ना तुमको पता चल जायेगा ये-

क्या-क्या ख़त में लिख पाया हूँ क्या-क्या दिल में शेष बचा है.

मेरे दिल का हाल न पूछो तुम अचरज में पड़ जाओगे,

कितनी-कितनी बार ये टूटा कितनी-कितनी बार जुड़ा है.

कौन है अपना कौन पराया मैं न बता पाऊँगा तुमको,

अपनों में भी ग़ैर मिले हैं ग़ैरों में पाया अपना है.

कोई समझ ना पाया अब तक मैं इस जग को क्या समझूँगा,

इक पल लगता है सच्चा है अगले पल लगता झूठा है. डाॅ.

— कमलेश द्विवेदी

मो.09415474674