संस्मरण

उपलब्धियां दबे पांव आती हैं

अब तक तो हमने सुना था, बिल्लियां दबे पांव आती हैं, लेकिन हमारा अनुभव कहता है, कि ”उपलब्धियां दबे पांव आती हैं.” जी हां, ज़्यादा भूमिका न बांधते हुए हम सीधे-सीधे विषय पर ही आ जाते हैं.

अब देखिए न! हम गुरमैल भाई को जानते तक नहीं थे. यह तो भला हो अपना ब्लॉग का, जिस पर एक दिन एक ज़ोरदार कामेंट के साथ गुरमैल भाई नमूदार हुए, तब से दो साल आने को हुए हैं, प्रतिदिन उनके कामेंट-दर्शन और कलम-दर्शन (ये दोनों शब्द गुरमैल भाई के अपने गढ़े हुए हैं) होते ही रहते हैं. फेसबुक पर चैटिंग भी होती ही रहती है और कभी-कभी फोन पर बात भी हो जाती है. मार्च 12, 2014 को ‘आज का श्रवणकुमार’ ब्लॉग में उनके उस कामेंट के तुरंत बाद उनकी जो उपलब्धियां हमें दिखाई दीं, हमने किसी भी व्यक्ति के जीवन में इतनी उपलब्धियां जल्दी-जल्दी आती देखी नहीं हैं, भले ही पढ़ी-सुनी बातें बहुत हैं, जिन्हें हम अपने ब्लॉग्स में उजागर भी करते रहते हैं. मार्च 17, 2014 से ही ‘गुरमैल-गौरव-गाथा’ नामक ब्लॉग से उन पर ब्लॉग आने शुरु हुए, जो सिलसिला अभी तक बराबर जारी है.

बच्चों के विदेश में होने के कारण विदेश में अक्सर हमारा आना-जाना लगा ही रहता है. हमने देखा, कि वे ई.बुक्स पढ़ते हैं. उन्होंने हमें भी ई.बुक्स डाउनलोड करके पढ़ना सिखाया. ई.बुक्स पढ़ने में बहुत आनंद आया. तभी हमारे मन में विचार आया, कि क्यों न गुरमैल भाई पर आए ब्लॉग्स की एक ई.बुक बनाई जाए. इसी विचार के साथ उन पर ई.बुक भी आ गई, जिसका लिंक है- http://issuu.com/shiprajan/docs/gurmail_bhai_ebook

इसके साथ ही वे जय विजय पत्रिका में वे ब्लॉगर बन गए और अपने साहस और जज़्बे के कारण अपना ब्लॉग के चहेते लेखक व कामेंटेटर गुरमैल भाई, जय विजय पत्रिका के भी चहेते लेखक व कामेंटेटर बन गए. उनके लेखन के अगले सफर में शुरु हुई उनकी आत्मकथा, जो आप ”मेरी कहानी” के रूप में पढ़ रहे हैं. अब उसके 100 एपीसोड्स आप पढ़ चुके हैं. ”मेरी कहानी” के 21-21 एपीसोड्स की दो ई.बुक्स भी तैयार हो चुकी हैं, जिनका लिंक है- http://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_1-21_gurmail_singh
तथा


दो और भी ई.बुक्स पाईपलाइन में हैं, जिनके आते ही हम उसका लिंक भी आपके सामने प्रस्तुत करेंगे.

अभी कुछ समय पहले ही उनके पास सूचना आई, कि जय विजय पत्रिका 2015 के लिए उन्हें ”जय विजय रचनाकार सम्मान” से सम्मानित कर रही है और उनको सम्मानित कर, बहुत खूबसूरत सम्मान पत्र भी भेज दिया गया, जो उनकी अर्द्धांगिनी ने तुरंत फ्रेम करके उसका फोटो हमें भी भेज दिया. एक और उपलब्धि दबे पांव आ गई. अब आप ही बताइए, कि क्या आपने एक व्यक्ति के जीवन में इतनी जल्दी-जल्दी इतनी उपलब्धियों को दबे पांव आते हुए देखा है क्या? इसलिए ही हमने लिखा है- ”उपलब्धियां दबे पांव आती हैं.”

हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है, कि आपके जीवन में भी अनेक उपलब्धियां दबे पांव आई होंगी. हम तो अपने अनुभव कामेंट्स में साझा करेंगे ही, आप भी अपने अनुभव इस अनुपम मंच पर शेयर करेंगे, तो हमें बहुत खुशी होगी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

9 thoughts on “उपलब्धियां दबे पांव आती हैं

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आज मार्च 17 है. आप पर पहला ब्लॉग गुरमैल-गौरव-गाथा-17 मार्च 2014 को प्रकाशित हुआ था और हमें अच्छी तरह याद है, कि जिस दिन यह ब्लॉग प्रकाशित हुआ था, उस दिन आपकी खुशी छिपाए नहीं छिपती थी. दो साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. आपको संपूर्ण अपना ब्लॉग जगत के ब्लॉगर्स और पाठकों की ओर से कोटिशः प्रणाम और अन्य उपलब्धियों के लिए ढेरों शुभकामनाएं. पहले ब्लॉग की दूसरी वर्षगांठ की बधाइयां. ऐसे ही उपलब्धियां दबे पांव आती रहें.

  • लीला तिवानी

    गुरमैल भाई, आज मार्च 17 है. आप पर पहला ब्लॉग गुरमैल-गौरव-गाथा-17 मार्च 2014 को प्रकाशित हुआ था और हमें अच्छी तरह याद है, कि जिस दिन यह ब्लॉग प्रकाशित हुआ था, उस दिन आपकी खुशी छिपाए नहीं छिपती थी. दो साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. आपको संपूर्ण अपना ब्लॉग जगत के ब्लॉगर्स और पाठकों की ओर से कोटिशः प्रणाम और अन्य उपलब्धियों के लिए ढेरों शुभकामनाएं. पहले ब्लॉग की दूसरी वर्षगांठ की बधाइयां. ऐसे ही उपलब्धियां दबे पांव आती रहें.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लिखा है आपने बहिन जी ! भाईसाहब गुरमेल जी क़लम से नहीं एकदम दिल स् लिखते हैं। इससे उनकी हर कडी रोचक होती है उन्होंने जो संघर्ष किया है वह प्रेरणादायी है।
    अच्छा हुआ कि आपने उनकी १०० कड़ियों की ईबुक बना दी। अब जय विजय में ईबुक शुरू करने की योजना है। इसका शुभारंभ भाईसाहब की कहानी से ही किया जाएगा।

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, सचमुच गुरमैल जी क़लम से नहीं, एकदम दिल से लिखते हैं. आपकी उपलब्धियां भी कम नहीं हैं. आप अपनी उपल्ब्धियों के बारे में कुछ बताएं, तो हमें और अधिक प्रेरणा मिलेगी. ई.बुक बनाना आपकी एक और उपलब्धि होगी.

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी,आपकी आत्मकथा और स्वास्थ्य-पुस्तिका हम पढ़ चुके हैं. आपने शान से अपना ब्लॉग पर लिखते हुए, सीधे जय विजय पत्रिका पर छलांग लगाई, जो आज अपनी बुलंदी के निखार पर है. कृपया आप अपनी अन्य उपलब्धियों पर भी प्रकाश डालें, इससे हम लोग भी प्रेरणा ले सकेंगे.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन, आप ने जो लिखा है ,बिलकुल सही लिखा है लेकिन कहते हैं ना कि अछे लोगों की संगत से इंसान अच्छा फल ही पाता है . मार्च २०१४ में जब मैंने नव भारत टाइम्ज़ में आप का ब्लॉग आज का श्रवण पड़ा तो मैंने तुरंत कॉमेंट लिख दिया .उस समय मैं ७१ का होने वाला था और अपनी मैडीकल कंडीशन के कारण जिंदगी से उदासीन हो चुक्का था . वैसे तो मैं कुछ और लेखकों के ब्लॉग में भी शिरकत करता था लेकिन जो मेरी बचपन से आदत थी सवाल जवाब करने की ,ऐसा किसी भी ब्लोगर से हासल हो नहीं सका . आप के ब्लोग्स पर लिखते लिखते लिखने में रुची बड गई ,आप ने उत्साहात किया और विजय जी के युवासंघोश में भी लिखने के लिए प्रेरत किया . विजय भाई भी मेरी हर कहानी में अपने कॉमेंट देते रहे ,जिस से हौसला और बढ़ गिया . अपनी जीवन कहानी लिखने की इच्छा मुझे बहुत देर से थी लेकिन कैसे लिखूं इस का कोई तजुर्बा नहीं था .जब पहला एपिसोड लिखा तो लगा मैं लिख सकता हूँ और आज सौ एपिसोड तक पहुँच गिया हूँ और आगे भी चलेगा .एबुक्स बनने से और भी अच्छा लगने लगा .
    इस बात से मुझे एक बात की समझ आई है कि हर लेखक चाहता है कि उस की रचना को लोग पड़ें और उस पर कॉमेंट करें . लेख पर प्रतिक्रिया से लेखक को हौसला मिलता है . इसी लिए मैं कोशिश करता रहता हूँ कि जयविजय में लेख पड़ कर कॉमेंट दूँ ,इसी से मेरे जैसे लोगों की हौसलाफजाई होती है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, हम तो अब भी बस यही कहेंगे, कि उपलब्धियां उन साहसियों के पास दबे पांव आती हैं, जो उपलब्धियों की दस्तक को सुन लेते हैं और किवाड़ खोलकर उनका दर्शन कर सम्मानपूर्वक स्वागत कर उनके साथ हो लेते हैं .

      • मनजीत कौर

        आदरणीय प्रिय सखी जी आप ने कितनी प्यारी बात कही ” उपलब्धियां उन साहसियों के पास दबे पांव आती हैं, जो उपलब्धियों की दस्तक को सुन लेते हैं और किवाड़ खोलकर उनका दर्शन कर सम्मानपूर्वक स्वागत कर उनके साथ हो लेते हैं ” हम भी यही मानते है क्योकि हमने तो अपनी आँखों से साक्षात ऐसा होते देखा है। आप के ब्लॉग पर, भाई साहब कॉमेंट के जरिए आप जैसी महान विद्वान से मिले फिर किया था उपलब्धिओं की दस्तक शुरू हो गयी और भाई साहब उस दस्तक को सुनते ही किवाड़ खोलते गए और अपनी लगन और मेहनत से सफलता की और बढ़ते गए। आज भाई साहब की आत्मकथा १०० एपिसोड पूरा कर गयी है जिसके लिए हम भाई साहब को बहुत बहुत बधाई देते है जी और प्रिय सखी जी भाई साहब की इस सफलता पर आप को भी बहुत बहुत बधाई |

        • लीला तिवानी

          प्रिय सखी मनजीत कौर जी, नायब प्रतिक्रिया के लिए आभार. थोड़े में सब कुछ कह देना आपकी महान उपलब्धि है.

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