गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : इस शहर में रक्खा क्या है!

 

इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली चौराहे पर
ईंट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है

इक नक़ली मुस्कान ही चिपकी है हर चेहरे पर
दोस्ती प्रेम ज़ज्बात की शहर में कीमत क्या है

मुकद्दर है सिकंदर तो सहारे बहुत हैं शहर में
यहां जो गिर चुका, उसे बचाने में रक्खा क्या है

शहर में बस भीड़ है, बदहबासी है अजीब सी
घर में केवल दीवारों के सिवा रक्खा क्या है

मौसम से बदलते हैं रिश्ते शहर में आजकल
इसमें फर्क अपनों और गैरों में रक्खा क्या है

— मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: [email protected] ,[email protected]

4 thoughts on “ग़ज़ल : इस शहर में रक्खा क्या है!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल बहुत बढिया लगी .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

    • आपकी सराहना मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं है…..तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ, हार्दिक आभार

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