लघुकथा

चिलक

“ये कैसा संकल्प ले रहे हो रघुवीर बेटा ! गंगाजल अंजुली में भर इस तरह संकल्प का मतलब भी पता !!”

“पिताजी, आप अन्दर ही अंदर घुलते जा रहे हैं। कितनी व्याधियों ने आपको घेर लिया हैं। नाती-पोतों से भरा घर, फिर भी मुस्कराहट आपके चेहरे पर मैंने आज तक ना देखी।”

“बेटा मैं भूलना चाहता हूँ पर ये समाज मेरे नासूर को कुरेदता रहता है। अपने नन्हें-मुन्हें बच्चों को यूँ ही बिलखता छोड़ कोई माँ कैसे जा सकती है, यह कैसे-क्यों का प्रश्न मुझे अपने जख्म भरने नहीं देता। फिर भी बेटा मैंने संतोष कर लिया। तीस सालों में परिजनों के कटाक्ष को भी दिल में दफ़न करना सीख गया। हो सकता हैं उसका प्यार मेरे प्यार से ज्यादा हो इस लिए वो मेरा साथ छोड़ चली गयीं हो।”

“इसी समाज के कटाक्ष की ज्वाला में जल के तो मैं आज संकल्प ले रहा हूँ। मैं उनका मस्तक आपके चरणों में ले आके रख दूँगा पिता जी ‘परशुराम’ की तरह!”

“बेटा गिरा दो अंजुली का जल। तुम परशुराम भले बन जाओ पर मैं जन्मदग्नी नहीं बन सकता।”

— सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “चिलक

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा बहिन जी !

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी सविता जी, सार्थक अत्यंत सुंदर संदेश के लिए शुक्रिया.

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