संस्मरण

मेरी कहानी 107

दुसरे दिन हम तीनो दोस्त वुल्वरहैम्पटन बस स्टेशन पर पहुँच गए और 529 नंबर बस जो वुल्वरहैम्पटन से वालसाल को जाती थी में बैठ गए और बातें करने लगे। हम सब को यही आशा थी कि हमें इंडिया से वापस आने पर अपनी गैरेज में ही काम मिल जाएगा लेकिन यह सब की सोच के विपरीत हो गिया। एक घंटे में हम वालसाल गैरेज में पहुँच गए। ऑफिस से हमें अपने अपने बॉक्स मिल गए जिन में मशीन और टिकटें थीं और हमें सेंट पौल्ज़ बस स्टेशन पर इंस्पैक्टर को मिलने के लिए कह दिया गिया । सेंट पौल्ज़ बस स्टेशन काफी बड़ा बस स्टेशन था ( 2008 में इस को बहुत बड़ीआ बना दिया गिया था). इस के इलावा कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा और बस स्टेशन भी था जो ब्रैडफोर्ड प्लेस के नाम से जाना जाता था और इस को भी 2011 में नया बना दिया गिया था। हम तीनों सेंट पौल्ज़ बस स्टेशन पर पहुँच गए जिस पर ऑफिस, मैस रूम और कैंटीन थी और यह बहुत पुरानी विक्टोरियन बिल्डिंग थी । इंस्पैक्टर हमें देखते ही हमारी तरफ आ गिया और एक एक करके हम सब को एक एक कंडक्टर के साथ भेज दिया। जिस के साथ मैं जाना था वोह बस कंडक्टर एक गोरा ही था। रुट नंबर मुझे याद नहीं लेकिन मैं बस पर टिकटें काटने लगा। कुछ ही टिकट मैंने काटे थे और यह मशीन मुझे आसान लगने लगी ,हाँ एक बात की तकलीफ महसूस हो रही थी कि वालसाल की सड़कों से मैं अनजान था और जब कोई पूछता कि उसे किसी ख़ास स्ट्रीट पर उतरना है तो मुझे बेचैनी होती थी और लोगों से पूछना पड़ता था। यूं तो गोरा मुझे सब कुछ बता रहा था लेकिन एक बात और थी कि हर दो तीन स्टॉप के बाद मशीन नंबर लिखने पड़ते थे जो रश आवर में लिखने एक मुसीबत थी . सारा दिन काम करके हमें बहुत कुछ गियात हो गिया और जब हम ने काम खत्म किया तो तीनों दोस्त वापस अपने शहर के लिए बस 529 में बैठ गए। मिस्टर खान अचानक हंस पड़ा और बोला ,( bloody RLI !) . हम तीनों हंसने लगे। यह एक रुट पर स्टेजों के नाम थे जो हम को पहले ही अपनी शीट पर लिखने होते थे और हर स्टेज पर मशीन नंबर लिखने होते थे , जैसे एक स्टॉप का नाम था red lion inn और इस की एब्रीवीएशन थी RLI ,इसी तरह एक स्टॉप था profit street और इस को ps लिखते थे। पहले पहल हमें यह काम बहुत स्ट्रैस्फुल लगा था और इस से तंग आ गए थे। बातें करते करते हम अपने टाऊन में आ गए और अपने अपने घरों के लिए बस पकड़ ली। इसी तरह छै दिन तक हम ट्रेनिंग लेते रहे। इन छै दिनों में हम ने काफी रुट देख लिए और काफी तज़ुर्बा हो गिया।
दूसरे हफ्ते हम ने बहुत सुबह जाना था और अपनी अपनी गाडिओं में चले गए। अब हमारा तीनों दोस्तों का समय इलग्ग इलग्ग हो गिया था । सड़कों और दूर के टाऊनों की वाकफियत होने लगी। नए नए दोस्त बनने लगे। इस गैरेज में गोरे ज़्यादा थे और बहुत मज़े से काम करते थे। उस समय लोगों के पास कारें इतनी नहीं होती थीं जितनी आज हैं ,इस लिए एक बस भर के चले जाती ,दुसरी अभी खड़ी ही होती तो एक दो मिनट में ही फिर भर जाती। जब हम वुल्वरहैम्पटन में काम किया करते थे तो बस खड़ी होते ही टिकटें काटने लगते थे और जब तक बस चलने लगती हम टिकटें काट कर प्लैटफॉर्म पर खड़े हो जाते थे और रास्ते में कुछ लोग उत्तर जाते और कुछ नए चढ़ जाते जिन को आसानी से टिकट दे देते लेकिन यहां तो अजीब बात थी। जब तक बस भर कर इस में लोग खड़े ना हो जाते तब तक बस कंडक्टर टिकट काटना शुरू करते ही नहीं थे ,कैंटीन में आ कर ड्राइवर कंडक्टर स्नूकर खेलते रहते और बहुत दफा तो इंस्पैक्टर कैंटीन में आ कर ड्राइवर कंडक्टर को बस ले जाने के लिए कहते । हम तीनो दोस्त वुल्वरहैम्पटन में सख्त काम करने के आदी थे। एक बात थी कि वुल्वरहैम्पटन में कोई गोरा ओवरटाइम नहीं करता था ,सिर्फ इंडियन पाकिस्तानी ही करते थे लेकिन यहां तो गोरे इंडियन पाकिस्तानी और वैस्ट इंडियन सभी जितना भी ओवरटाइम मिल सके करते थे। ट्रांसपोर्ट के दफ्तर के बाहर एक बोर्ड पर इंस्पैक्टर ओवरटाइम के कार्ड लिख कर चिपका देते थे ,कोई तीन घंटे का ओवरटाइम होता कोई चार घंटे का ,कोई दो घंटे का। सभी ड्राइवर कंडक्टर बस को छोड़ कर दफ्तर की ओर भागे आते और जो ओवर टाइम किसी को सूट करता वोह उठा कर क्लर्क को बता देता। वुल्वरहैम्पटन में ऐसा नहीं था बल्कि अपनी ड्यूटी के साथ ही ओवरटाइम पहले से ही लगा हुआ होता था। अब हमें भी पैसों की बहुत जरुरत थी ,इस लिए मैं भी जितना मिल सके ओवरटाइम करता। एक दफा तो मैंने इतने घंटे काम किया की मेरी तन्खुआह डब्बल हो गई। जब मुझे तन्खुआह का लफाफा मिला तो मैंने उस में से पैसे निकाल कर वेज्ज़ सलिप्प फाड़ कर कूड़े वाले ड्रम में फैंक दी। दूसरे दिन मेरा एक दोस्त मेरे पास आया और बोला ,” इस तरह अपनी वेज्ज़ सलिप्प न फेंका कर ,एक गोरा तुम्हारी वेज्ज़ सलिप्प सब को दिखा कर पूछ रहा था कि यह नया चैम्पियन बामरा कौन है ” . मैं बड़ा हैरान हुआ कि लोग डस्ट बिन की फोला फाली भी करते हैं। .
एक दिन मैं एक स्कॉटिश बस ड्राइवर के साथ काम कर रहा था जिस के साथ मैंने एक हफ्ता काम करना था। कभी कभी ज़्यादा बिज़ी ना होता तो मैं लोगों के साथ हंसी की बातें भी कर लेता था। उस समय vat जिस को वैलयु ऐडड टैक्स कहते हैं अभी नया नया शुरू हुआ था। एक पैसेंजर ने पुछा ,” how much to leamore lane ?” .मेरे मुंह से निकल गिया टैन पैंस इन्क्लूडिंग वी ए टी मैडम । सभी हंस पड़े और स्कॉटिश ड्राइवर तो इतना हंसा कि जब भी वोह मुझे देखता ,बोलता ” हैलो मिस्टर वी ए टी “. अब कभी कभी मुझे ड्राइविंग पर भी भेज दिया करते थे ,इस तरह मेरा एक्स्पीरिऐंस बढ़ रहा था। एक दिन वोह स्कॉटिश ड्राइवर मुझे बोला ,” मिस्टर बामरा यू विल डाई सून ,कैसे काम कर रहे हो तुम ,अप्प ऐंड डाऊन अप्प ऐंड डाऊन औन दी बस ,ऐंड औल डे लौंग !,रिलैक्स मिस्टर बामरा ,टेक इट ईज़ी ऐंड मेक सम मनी “. उस की बात सुन कर मैं बहुत हैरान हुआ। फिर वोह बोलने लगा कि यहां सभी कंडक्टर पैसे बनाते हैं और ड्यूटी के आखर में ड्राइवर कंडक्टर आपस में पैसे बाँट लेते हैं। फिर बोला ,तुम ऐसे करो कि कल को तुम ड्राइविंग कर लो और मैं कंडक्टिंग करूँगा और तुझे दिखाऊंगा कि कैसे काम किया जाता है। एक बात उस ने और बताई कि बहुत देर पहले टिकट मशीन को कुछ कंडक्टर टॉयलेट में जा कर स्क्रीऊ ड्राइवर से मशीन की सैटिंग चेंज कर देते थे ,जिस से जब भी किसी को टिकट इशू करना होता था तो टिकट की वैलयु डाल कर हैंडल को आधा घुमाना होता था और फिर डायल को ज़ीरो पर वापस ला कर हैंडल का चकर कम्प्लीट कर दिया जाता था ,जिस से टिकट पर टिकट वैलयु सही होती थी लेकिन अकाउंट में पैसे ज़ीरो शो करते थे ,इस लिए सारे दिन में सौ टिकटें भी ऐसी इशू की तो पैसे जमा कराते वक्त बहुत पैसे बन जाते थे। फिर इस बात का पता मैनेजमेंट को चल गिया और उन्होंने इस के सिस्टम को बदल दिया लेकिन फिर भी एक मशीन रह गई ,जिस का नंबर 54 था ,जिस किसी को यह मशीन मिल जाती उस दिन वोह बहुत पैसे बना लेता। दूसरे दिन सुबह जब हम बुक औन हुए तो वोह स्कॉटिश,बुकिंग क्लर्क को बोला कि उस के पेट में कुछ गड़बड़ है और वोह कंडक्टिंग कर लेगा और मिस्टर बामरा ड्राइविंग कर लेगा।
मैं ड्राइविंग करने लगा और वोह स्कॉटिश कंडक्टिंग करने लगा ,मैं ड्राइविंग कैब में बैठा शीशे में देख देख कर हैरान हो रहा था कि वोह किसी को टिकट देता किसी को नहीं और पैसे हर किसी से पकडे जाता। इसी तरह सारे दिन में उस ने चार पाउंड के करीब बना लिए जो उस समय बहुत हुआ करते थे और ड्यूटी के आखर में उस ने मुझे दो पाउंड दे दिए ,और फिर मुझे बोला,” कल को तुम ऐसा करना” .दूसरे दिन मैंने भी उस की तरह काम करना शुरू कर दिया लेकिन अंदर से मैं डरा हुआ था। सारे दिन में मैंने बहुत मुश्किल से दो पाउंड बनाये। जब मैंने उस स्कॉटिश को बताया कि मैंने सिर्फ दो पाउंड बनाये हैं तो वोह मुझे बोला ,” नौट बैड फौर ए स्टार्ट मिस्टर बामरा ” . मैंने उस को एक पाउंड दे दिया लेकिन जब मैं घर पहुंचा तो लगा जैसे मैंने अपना सब कुछ हार दिया है ,सारी रात मुझे नींद नहीं आई। मैं अपने आप को धिक्कार रहा था कि यह मैंने किया कर दिया ,ज़िंदगी में कभी एक पैसे की भी हेरा फेरी नहीं की लेकिन आज मैंने यह किया कर दिया। मेरी ज़मीर मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी। यूं तो मैं नॉर्मल दिखाई दे रहा था लेकिन मेरे भीतर की आत्मा मुझ को लाहनते दे रही थी कि यह लोग तो गोरे थे ,अगर उन को काम से निकाल भी दिया जाता तो वोह आसानी से कहीं और काम ढून्ढ लेंगे लेकिन मुझ इंडियन को कौन काम देगा, मेरा तो रिकॉर्ड खराब हो जाता ?मेरी कितनी बदनामी हो जाती , बस जो हो गिया सो हो गिया अब और नहीं, सोच कर दूसरे दिन मैंने सीधे ही उस स्कॉटिश को बोल दिया ,” मेट ! अब और नहीं no more fidling ” . ” ऐज़ यू विष ” उस ने कहा और सब कुछ नॉर्मल हो गिया। एक दिन हम कैंटीन में चाय बगैरा पी रहे थे और मेरे टेबल पर एक पंजाबी ड्राइवर बैठा था ,जिस का नाम था सिंह D 3 . क्योंकि अंग्रेज़ों को नाम लेने नहीं आते थे ,इस लिए जितने भी सिंह ड्राइवर या कंडक्टर होते थे ,उन को नंबर दिए जाते थे ,जैसे सिंह नंबर 10 11 या 12 . इसी तरह जो राम होते थे उन को भी राम नंबर 1 या 2 कह कर बुलाया जाता था ,सिर्फ जिन के नामों के साथ गोतर होता था ,उन को गोतर से ही बुलाते थे ,जैसे मुझे मिस्टर बामरा कह कर बुलाते थे क्योंकि भमरा उन के लिए प्रोनाउंस करना कठिन होता था। मैंने सिंह D 3 जिस का नाम दर्शन होगा या दिलबाग ,मुझे याद नहीं ,उसे उस स्कॉटिश की बात सुनाई कि उस ने मुझ से ऐसा कराया और मुझे उस ने बताया था कि सभी कंडकर पैसे बनाते थे। D 3 एक दम बोल पड़ा और बोला ,” साला झूठ बोलता है ,कोई पैसा नहीं बनाता था ,यही एक खराब और चालाक है और तू बच गिया वरना पकड़ा जाता ,तू ने बहुत अच्छा किया कि मुझे बता दिया , यहां आने से पहले यह जेल भी जा चुक्का है ,पता नहीं इस को यह जॉब कैसे मिल गई “. उस की बात सुन कर मैं हैरान हो गिया और अपनी भूल पे पछताने लगा।
अब इस गैरेज में मेरा दिल नहीं लगता था। एक बात और भी थी कि जब आफ्टरनून की शिफ्ट होती थी तो मैं घर बहुत लेट पहुँचता था और कुलवंत सोई हुई होती थी ,यह मुझे अच्छा नहीं लगता था। इसी तरह तकरीबन चार महीने हो गए। एक रोज़ रात की शिफ्ट थी। काम खत्म करके मैं गाड़ी लेकर घर की ओर चलने लगा। गाड़ी में गाने सुन रहा था ,जब ब्लॉक्सविच पास करके निऊ इनवेंशन के नज़दीक मोटर वे के करीब पहुंचा तो मेरी नज़र कार के स्पीडोमीटर पर पढ़ी और देखा कि इंजिन की सूई H के ऐंड पर थी, यानी इंजिन बहुत गर्म हो गिया था। मैंने उसी वक्त गाड़ी खड़ी कर दी और बौनेट खोल दिया। देखा ,रेडिएटर से तुप्का तुप्का पानी लीक हो रहा था और नीचे भाप निकल रही थी। गाड़ी में टूल बौक्स तो हमेशा होता था लेकिन रेडिएटर का करूँ ,सोच कर इर्द गिर्द देखने लगा। न्यू इन्वैंशन मोटर वे के नज़दीक एक घर के फ्रंट रूम में टीवी चल रहा था और घर के लोग बैठे टीवी देख रहे थे। मैं हौसला करके घर के फ्रंट गार्डन में चला गिया और देखा टीवी पर घर के लोग अमेरीकन प्रैज़िडैंट निक्सन की इंटरवीऊ देख सुन रहे थे। यहां मैं यह भी बता दूँ कि उस दिन 9 अगस्त 1974 की रात थी और प्रैज़िडैंट निक्सन ने अस्तीफा दे दिया था क्योंकि उस पर वाटरगेट स्कैंडल के दोष थे। यह बहुत बड़ा स्कैंडल था। मैंने डोर बैल कर दी और घर में एक कुत्ता भौंकने लगा। एक अँगरेज़ ने दरवाज़ा खोला और अपने कुत्ते को दबक दिया। what do you want ? उस ने बोला और मैंने उस को अपनी प्राब्लम बताई कि कार के रेडिएटर से पानी लीक कर रहा था और मुझे कुछ पानी चाहिए था। वेट ए मिनट कह कर गोरा भीतर चला गिया और कुछ देर बाद एक वाटर कैन ले कर आ गिया और मुझे कहा कि मैं रेडिएटर भर लूँ। रेडिएटर जब भर गिया तो मैंने उसे कैन वापस करते हुए थैंक्स बोला तो वोह कहने लगा ,” ऐसा करो ,मैं तुम को एक और पानी का कैन देता हूँ और तुम इसे गाड़ी में रख लो ,ताकि रास्ते में तकलीफ हो तो पानी तुम्हारे पास होगा ,कल को जब काम पर जाओ तो यहां फ्रंट गार्डन में रख जाना “. मैंने थैंक्स कहते हुए कैन गाड़ी में रख लिया और घर को चल पड़ा। रास्ते में कोई तकलीफ नहीं हुई। सुबह उठ कर मैंने सपेअर पार्ट्स की एक दूकान से रेडिएटर खरीदा और खुद ही रेडिएटर बदल लिया।
प्राब्लम सॉल्व हो गई थी और दो वजे के करीब मैं काम पर चल पड़ा। जब निऊ इन्वेंशन पहुंचा तो गाड़ी खड़ी करके गोरे के घर की ओर चला गिया। बैल की लेकिन घर में कोई नहीं था ,इस लिए मैंने दरवाज़े के बाहर ही कैन रख दिया और काम पर चल पड़ा। वालसाल गैरेज से मेरा मन उचाट हो गिया था। गैरेज पहुँचते ही मैंने एक ऐप्लिकेशन लिखी कि मैं वुल्वरहैम्पटन ट्रांसफर हो जाना चाहता था। ऐप्लिकेशन में मैंने अपनी मजबूरी लिखी थी और यह ऐप्लिकेशन ले कर मैं यूनियन के ऑफिस में चला गिया और यूनियन के चेयरमैन को ऐप्लिकेशन पकड़ा दी कि यह मैनेजर को फॉरवर्ड कर दे। चेयरमैन अच्छा शख्स था और बोला ,” मिस्टर बामरा ,मैं आप का काम करवा दूंगा” एक हफ्ते बाद मुझे मैनेजर डिकिंसन का लैटर मिल गिया कि कल को मैं वुल्वरहैम्पटन रिपोर्ट करूँ। मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं रहा ,मन से एक बड़ा बोझ उत्तर गिया। दूसरे दिन मैं वुल्वरहैम्पटन की पार्क लेन गैरेज की कैंटीन में दोस्तों से गप्पें हाँक रहा था। चलता. . . . . . . . . . .

10 thoughts on “मेरी कहानी 107

  • विजय कुमार सिंघल

    भाईसाहब, देरी से प्रतिक्रिया देने के लिए क्षमा करें। मुझे पितृ शोक हुआ है। मेरे पिताजी 91 वर्ष कि आयु में दिनांक 25 फ़रवरी को हमें छोड गये हैं। इसलिये हम सब आगरा आये हुए हैं।
    आपकी यह कडी भी बहुत रोचक है।

    • Man Mohan Kumar Arya

      यह दुखद समाचार पढ़कर वेदना हुई। पूज्य पिता जी की दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि एवं सादर नमन। मृत्यु नए जन्म का आधार है। ईश्वर पूज्य पिताश्री को उन्नत जीवन प्रदान करें। आप विज्ञ है, अतः आप सब जानते ही हैं। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विजय भाई , देरी के लिए क्षमा करें .आप का कॉमेंट मैंने अभी अभी देखा है और आप के पिता जी के बारे में पड़ा और बहुत दुःख हुआ . कुलवंत को भी मैंने अभी बताया है और सुन कर वोह भी अफ़सोस जाहर करती है . माता पिता चाहे कितनी भी उम्र भोग कर किओं ना इस संसार को छोड़ें ,उन का हम से बिछुड़ना दुखदाई तो होता ही है ,आप के मन की स्थिति को मैं भली भाँती समझ सकता हूँ किओंकि मैं भी इस से गुज़र चुक्का हूँ . भगवान् उन को अपने चरणों में जगह दें ,यही कामना हम कर सकते हैं और आप सारे परिवार को भी भगवान् इस शोक से बाहर आने का बल बख्शे .

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आत्मकथा का यह अंक आरम्भ से अंत तक पढ़ा। आपने अपनी स्मृति से जिस प्रकार पुरानी भूली बिसरी यादों को प्रस्तुत किया है वह आश्चर्यजनक होने से प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। आपने एक बार गलती कर उसका तुरंत ही सुधार कर लिया यह पढ़कर और उससे जुड़ी आपकी मानसिक द्वन्द की स्थिति को पढ़कर भी इससे जुड़े एक सिद्धांत की पुष्टि होती है। सिद्धांत यह है कि मनुष्य जब पहली बार कोई बुरा या गलत काम करता है तो उसकी आत्मा में भय, शंका और लज्जा उत्पन्न होते है और जब वह कोई अच्छा, भलाई व परोपकार का काम करता है तो उसकी आत्मा में प्रसन्नता, सुकून, आनंद व उत्साह उत्पन्न होते हैं। आत्मा में यह दो भिन्न व विरोधी विचारों वा स्थितियों का उत्पन्न होना शाश्वत है। यह आत्मा में ईश्वर की प्रेरणा से होता है और इससे यह सिद्ध होता है कि सभी मनुष्यों की आत्मा में ईश्वर विद्यमान है और वह उन्हें गलत काम करने से रोकने के साथ अच्छे काम करने में प्रेरित और उत्साहित करता है। आज कि बढ़िया किश्त के द्वारा अपनी खट्टी मीठी यादों को शेयर करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई , आप ने सही लिखा है . मैंने अपनी गलती तो तुरंत सुधार ली लेकिन मुझे अश्चार्ज्य इस बात पर होता है कि मैंने यह कैसे कर लिया किओंकि यह हेराफेरी मेरे सुभाव में थी ही नहीं ,शाएद उस वक्त मैं उस स्कॉटिश की बातों में आ गिया किओंकि वोह बातें करने में बहुत दिलचस्प लगता था और उस का परभाव मुझ पर पढ़ गिया . एक बात इस में यह भी है कि हर इंसान की अपनी अपनी एक शखसीअत होती है .कई लोग चोरिआं डाके और खून करके भी दलेर होते हैं और कई मेरे जैसे छोटी सी बात को ले कर सो नहीं पाते .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    हमेशा प्रतीक्षा रहती है आपके लिखे सस्मरण की
    बहुत सी नई बातें जान पाते हैं उस ज़माने की

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      बहन जी , आप का बहुत बहुत धन्यवाद .आप पढ़ रहे हैं और इस बात से मुझे बहुत हौसला होता है और आगे लिखने की प्रेरणा मिल जाती है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी इतनी सच्ची और अच्छी आत्मकथा को पढ़कर हमारी ख़ुशी का भी कोई पारावार नहीं. लिखते रहिए, चलते रहिए.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन ,बहुत बहुत धन्यवाद .आप मेरी कथा पड़ते रहें और मैं लिखता रहूँ ,यही मेरा इनाम है .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन ,बहुत बहुत धन्यवाद .आप मेरी कथा पड़ते रहें और मैं लिखता रहूँ ,यही मेरा इनाम है .

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