ग़ज़ल
सियासत वो पहेली है कि जिसका हल नहीं कोई, यहां जो आज साथी है वो अपना कल नहीं कोई बस
Read Moreबेटा जो उम्मीदो पर खरा उतर जाए तो झुर्रिया अपने आप कम हो जाए और चेहरे पर बेसाख्ता हँसी आ
Read More(आरएसएस और आईएसएस की एक समान तुलना करने पर गुलाम नबी आज़ाद को जवाब देती मेरी नई कविता) केसर की
Read Moreचहकित चकित चेतन चलत, चैतन्य की चितवन चुरा; जग चमक पर हो कर फ़िदा, उन्मना हो हर्षित घना ! शिशु
Read Moreकबहू उझकि कबहू उलटि, ग्रीवा घुमा जग कूँ निरखि; रोकर विहँसि तुतला कभी, जिह्वा कछुक बोलन चही ! पहचानना आया
Read More“बसंत जगा रहा है” शायद वो बसंत है, जो पेड़ों को जगा रहा है मंजरी आम्र का है, कुच महुआ
Read Moreबड़ी मुश्किल से सभाला है खुद को पैमाने तक लाकर! तू जो आ जाए तो कसम की लाज रह जाए!
Read Moreरंग- रंग में रंगा है मन बरसाए अँखियों -अँखियों से चहुँ ओर सतरंगी बौछार मचाए होली का हुड़दंग।बचपन में खेली थी होली मिली
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