संस्मरण

मेरी कहानी 123

सुरिंदर की शादी के दौरान मेरी नाभि के नीचे दाईं ओर दर्द होना शुरू हो गया था लेकिन मैंने कोई ख़ास धियान नहीं दिया था , सोचा शायद सारा  दिन खड़ा रहने के कारण होगा, दूसरे मेरा काम भी बैठने का ही था। बात गई आई हो गई। एक दिन कुलवंत को किसी ने अलसी की पिनयां दीं। जब वह घर लाई तो उस ने मुझे भी दीं। खा कर मुझे इतना मज़ा आया कि गाँव के दिन याद आ गए, जब हमारी माँ बनाया करती थी और हर सुबह को एक एक पिन्नी सभी खाते थे, शुद घर के घी की बनी  पिन्नी और जिस में बादाम पिस्ता मगज़  और किशमिश होती थी, बाद में भैंस के दूध की गुड़ वाली गाह्डी चाय पी कर मज़ा ही आ जाता था। मैंने कुलवंत को कहा कि ऐसी पिनयां हम खुद किओं नहीं बनाते ! कुलवंत बोली, ” इस में कौन सी बड़ी बात है ” और उसी शाम को वह दूकान पर गई और पिनयां बनाने के लिए सारी सामग्री ले आई और रविवार को उस ने पिनयां बना  दी। क्योंकि  मेवे तो यहां इंडिया से ज़्यादा सस्ते मिलते हैं, इस लिए उस ने खूब बहुत से मेवे डाल दिए। कुछ हफ्ते यह पिनयां मैं खाता रहा और फिर मेरा सर दर्द करने लगा, दर्द भी इतना, सर जैसे फट जाएगा। मैं अपने डाक्टर मिस्टर राम की सर्जरी में जा पहुंचा और उस को सर दर्द  के बारे में बताया और फिर मैंने पुछा कि कहीं मुझे ब्लड प्रैशर तो नहीं था। मिस्टर राम बोला,” अरे तुझे कैसे हो सकता है ,तू तो रोज योगा करता है ?”. मैंने कहा, डाक्टर साहब, फिर भी चैक तो कर लो। जब डाक्टर ने चैक किया तो बोला, “अरे तुझे तो है “. फिर बोला, ” ऐसे करो, तुम अगले हफ्ते आना, फिर मैं देखूंगा “. और मैं वापस आ गया।

मेरे दिमाग में भी आया कि जब इंडिया में भी मैं यह पिनयां खाया करता था तो मेरा सर दुख्ने लगता था और माँ कह देती थी,” तुझे गर्मी हो गई है, इस लिए एक दो दिन पिनी  बंद कर दे “. जब मैं पिनीओं को खाना  बंद कर देता तो सर ठीक हो जाता। मैंने अब ऐसा ही किया और पिन्नी खानी बंद कर दी और कुछ दिन बाद मेरा सर बिलकुल ठीक हो गया। दूसरे हफ्ते जब मैं मिस्टर राम की सर्जरी में गया तो उस ने बीपी चैक किया तो बिलकुल नॉर्मल था। ” यह बीपी सीज़नल ही होगा ” कह कर डाक्टर राम ने ऑल क्लीयर कह दीआ और मैं वापस घर आ गया। कुछ महीने बाद दीवाली आ गई, पकौड़े समोसे बगैरा घर बना लिए और ढेर सी मठाई हलवाई की दूकान से ले आये। अब खूब मठाई पकौड़े समोसे कई दिन तक खाते रहे। कुछ हफ्ते बाद मेरा सर फिर दर्द करने लगा, कुछ दिन सर दर्द की गोलीआं लेता रहा लेकिन दर्द कम नहीं हुआ तो मैं फिर डाक्टर की सर्जरी में जा पहुंचा। डाक्टर राम ने मेरा ब्लड प्रैशर चैक किया तो बोला,” भमरा साहब प्रैशर तो बहुत हाई  है, मैं तुझे दुआई देता हूँ और दो हफ्ते बाद मेरे पास आना, बिलकुल ठीक हो जाओगे “. फिर उस ने मुझे फैमिली हिस्टरी के बारे में पुछा तो मैंने अपनी माँ के बारे में बताया कि उस को  स्ट्रोक हो गया था। डाक्टर राम बोला,” बहुत दफा ऐसा होता है कि हाई बीपी सारी फैमिली में रन करता है, इस लिए सारी फैमिली को धियान रखने की जरुरत होती है, लेकिन खाने पीने का धियान रखने से और सही मेडिकेशन लेने से इस को कंट्रोल में रखा जा सकता है, अगर कंट्रोल में ना हो तो हार्ट किडनी और सर पर सीधा असर पड़ता है और फिर बीमारी बहुत कॉम्पलिकेटेड हो जाती है “.
सोचता हुआ मैं डाक्टर की सर्जरी से बाहर आ गया। मैंने सोचा कि मैं अब से एक्सरसाइज बड़ा दूंगा और योगा दिन में दो दफा कर दूंगा। इस के इलावा मैंने उसी वक्त मन में रोज़ाना दो  मील दौड़ने का प्रोग्राम बना  लिया। गाड़ी इस्तेमाल करनी मैंने बहुत कम कर दी और काम पर तेज पैदल चल के जाता, खुराक में बहुत बदलाव शुरू कर दिया, सलाद फ्रूट और उबली हुई सब्जिआं खानी शुरू कर दी, नमक बहुत कम  कर दिया और मठाई भी बहुत कम कर दी, फ्राइड फ़ूड मिनिमम कर दी। डाक्टर की दवाई मैंने खाई ही नहीं और सर्जरी में जाना ही बंद कर दिया। जैसे कि हमारे लोगों में एक बात परचलत थी कि यह अंग्रेजी दवाइयाँ बहुत बुरी हैं, इन के साइड इफैक्ट बहुत बुरे हैं, इस के भय से मैं होमिओपेथी और देसी दवाइयां लेने लगा। दौड़ दौड़ कर और रोज़ एक्सरसाइज करने से मैं बहुत हल्का हो गया, मेरा वज़न बहुत कम हो गया लेकिन मेरा सर दर्द कम नहीं हुआ और मैंने ब्लड प्रैशर चैक भी नहीं कराया। कई महीने ऐसे ही गुज़र गए लेकिन मैं पहले वाला नहीं था, हर दम सर दर्द करता रहता लेकिन मैं किसी को बताता नहीं था।
जब मुझे चक्क्र आने शुरू हो गए तो अब डाक्टर के पास जाने की वजाए और कोई चारा नहीं रहा। जब मैं डाक्टर की सर्जरी में पहुंचा तो डाक्टर ने मेरा रिकार्ड देखा। मिस्टर राम की जगह अब नया डाक्टर मिस्टर रिखी था। उस ने मेरा बीपी चैक किया तो उस ने कुछ गुस्से से मुझे कहा ,” तुझे अपने आप पर इतना भरोसा हो गया है कि तुम खुद इस को ठीक कर लोगे और तुम इतने महीने बाद सर्जरी में आये हो ,तुम ने दवाई ली थी किया ?”. मैंने सच सच सब कुछ बता दिया। अब डाक्टर रिखी  ने मुझे लैक्चर देना शुरू कर दिया, उस ने सब कुछ मुझे समझाया और कहा कि एक्सरसाइज करना और खुराक अच्छी खाना बहुत अच्छी बात है लेकिन दवाई एक दिन भी छोड़नी नहीं चाहिए, अगर एक्सरसाइज और अच्छी खुराक से बीपी कम हो जाता है तो हम खुद ही दवाई की डोज़ कम कर देंगे।
डाक्टर रिखी ने पहले मुझे दो स्ट्रॉन्ग गोळ्यां दो रोज़ की खाने के लिए दी और एक हफ्ते बाद आने को कहा। जब एक हफ्ते बाद मैं डाक्टर से मिला तो उस ने बीपी चैक करके एक गोली रोज़ खाने को कहा और एक हफ्ते बाद आने को कहा। तीसरे हफ्ते जब मैं गया तो उस ने चैक करके आधी गोली रोज़ प्रेस्क्राइब कर दी और मैं उस गोली पर टिक गया और साथ ही मेरी सर की समस्या भी खत्म हो गई और मैं नॉर्मल हो गया, पहले की तरह एक्सरसाइज और खाने का रूटीन बना लिया। यह समस्य तो खत्म हो गई लेकिन जो नाभि के नीचे दर्द होती थी, वह अब ऐसी हो गई थी कि यूं तो मुझे कोई ख़ास तकलीफ नहीं थी लेकिन जब मैं आधा घंटा चलता तो उस के बाद अजीब सी खींच महसूस होती और मुझे बैठना पड़ता। धीरे धीरे मुझे महसूस होने लगा कि नाभि के नीचे कुछ सूजन सी हो रही थी जिस को जब मैं हाथ से दबाता तो गुड़ गुड़ सी आवाज़ आती। पहले तो मुझे डाक्टर को बताने से शर्म महसूस होती थी लेकिन फिर हौसला करके मैं एक दिन डाक्टर के पास चले ही गया और उस को बताया। उस ने मेरा ट्राउज़र नीचे करके अपना हाथ उस जगह पर रखा और मुझे खांसने को कहा, जब मैं खाँसा तो डाक्टर ने उसी वक्त कह दिया,” यह हरनिआं है और इस का ऑपरेशन  करवाना  पड़ेगा, मैं हसपताल को चिठ्ठी लिख देता हूँ “.
मैंने कभी हरनिआं का नाम सुना नहीं था, घबराया हुआ मैं घर आ गया और कुलवंत को बताया तो वह कहने लगी,” इस में घबराने की कौन सी बात है, यह तो अच्छा ही हुआ कि पता चल गया “. दिन बीतने लगे और तकरीबन दो महीने बाद रॉयल हसपताल से अपायंटमेंट आ गई। जब मैं हसपताल पहुँच कर सर्जन के ऑफिस में गया तो उस ने भी डाक्टर रिखी की तरह चैक किया और बहुत से फ़ार्म भरने शुरू कर दिए और आखर में उस ने कहा कि मेरा ऑपरेशन नीऊ क्रौस हसपताल में किया जाएगा और ऑपरेशन की डेट मुझे भेज दी जायेगी। दो हफ्ते बाद मुझे नीऊ क्रॉस से खत आ गया और मैं ने  अपने कपडे बैग में डाल  कर बस पकड़ी और हसपताल जा पहुंचा। रिसैप्शन डेस्क पे मैंने रिपोर्ट की और कुछ देर बाद एक नर्स मुझे वार्ड में ले गई, एक बैड जो पहले ही मेरे लिए रिसर्व थी मुझे दे दी गई। बैड के पास एक बॉक्स और एक चेअर थी, मैंने अपना सारा सामान बॉक्स में रखा और पजामा सूट पहन कर चेअर पर बैठ गया और एक मैगज़ीन पड़ने लगा जो बॉक्स के ऊपर पड़े थे।
अभी मैंने पड़ना शुरू ही किया था कि मेरे काम का ही एक दोस्त जो वेस्ट इंडियन था, मेरी तरफ आया और मुझे हैलो बोला। उस ने भी पाजामा सूट पहना हुआ था। उस को देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई और उस को ” हैलो रोज़ी” बोला।  ऐलन रोज़  उस का नाम था लेकिन सभी उसे रोज़ी कह कर ही बुलाते थे। उस ने मुझे बताया कि वह भी हरनिआं ऑपरेशन के लिए ही आया हुआ था। रोज़ी से मिल कर मुझे कुछ हौसला हो गया कि जिस बात को ले कर मैं शर्माता था, उस में मैं अकेला नहीं था। उस ने एक गोरे के बारे में बताया जो इसी वार्ड में था और उस का हरनिआं ऑपरेशन अब चौथी दफा हो रहा था, सुन कर मैं हैरान हो गया। फिर  रोज़ी मुझे बोला,” भमरा, मुझे बहुत डर लग रहा है, ऑपरेशन से नहीं, किसी कॉम्प्लिकेशन से डर लगता है”. ” घबराने की कोई बात नहीं”, मैंने उस को कह तो दिया लेकिन मैं खुद भी डर गया था । ऐसे कुछ देर बाद बातें करने के बाद रोज़ी अपनी बैड की तरफ चले गया।
दूसरे दिन हमारे बलड टेस्ट होने शुरू हो गए और तकरीबन बारह वजे रोज़ी को दो नर्सें ट्रॉली पर लिटा के ऑपरेशन थिएटर की और ले गईं। एक घंटे बाद जब नर्सें ट्रॉली ले कर आईं तो रोज़ी बेहोश था. उस को देख कर मुझे कुछ झटका सा लगा क़्योंकि ऐसा हसपताल का सीन मैंने कभी देखा नहीं था बल्कि मैं कभी ऐसे हसपताल में आया ही नहीं था । कुछ देर बाद नर्सें मुझे भी ट्रॉली पर लिटा कर ऑपरेशन थीएटर की और ले गईं। जब मैं थिएटर में पहुंचा तो वहां दो सर्जन और दो नर्सें थी। पहले सर्जन ने मुझे पुछा की मैं ठीक हूँ। जब मैंने हाँ कहा तो एक डाक्टर ने मेरी कलाई पर इंजैक्शन लगाना शुरू कर दिया और मुझे दस तक गिनने को कहा। मुझे याद है मैंने पांच तक ही गिना था कि बाद में मुझे कुछ नहीं पता। मुझे इतना ही याद है कि मैं वार्ड में अपनी बैड पर पड़ा हूँ एक नर्स मुझे ” गुरमेल गुरमेल”  बोल रही थी और मुझे भी होश आ गई और मैंने अपने इर्द गिर्द देखा तो समझ गया कि मेरा ऑपरेशन हो गया था। मैंने नीचे की तरफ हाथ किया तो मुझे एक बड़ी सी पट्टी महसूस हुई।
शाम को शाम का खाना आ गया। एक ट्रॉली पर खाने की बहुत सी प्लेटें पड़े थीं और बडी सुन्दर खुशबू आ रही थी। कुछ मुश्किल से उठ कर मैं खाने के लिए बैठ गया। क़्योंकि बहुत घंटे मुझे भूखा रखा गया था, इस लिए भूख भी बहुत लगी हुई थी। मज़े से खाना खा कर मैं बैड पे फिर लेट गया। सात वजे से ले कर आठ वजे तक विजटिंग टाइम था और कुलवंत और तीनों बच्चे आये हुए थे। कुलवंत की आँखों में आंसू थे लेकिन मैंने उसे बता दिया कि घबराने की कोई जरुरत नहीं सब ठीक ठाक है। इस के बाद महौल सुखमयी हो गया। बातें करते करते पता ही नहीं चला कि कब आठ वज गए और टाइम खत्म होने की घंटी वज गई। सभी वार्ड से बाहर हो गए और मैं भी एक मैगज़ीन पड़ने लगा। पड़ते पड़ते मैं सो गया और जब सुबह जाग आई तो दो नर्सें बैड के दोनों तरफ खड़ी थीं और मुझे बोलीं ,” गुरमेल ! आप को उठना होगा ” और दोनों ने मेरी दोनों क्लाइओं  में अपनी क्लाइआं डाली और यूं ही मैं हिला तो इतनी दर्द हुई कि मैं उन को ठैहरो ठैहरो बोलने लगा। नर्स बोली, ” तुम को उठ कर चलना ही होगा, यह डाक्टर का हुकम है”. बड़ी मुश्किल से खड़ा हुआ लेकिन एक कदम भी चलना मुश्किल हो रहा था। दोनों नर्सों ने मुझे पकड़ कर रखा हुआ था। चार पांच स्टैप मुश्किल से मैं चला और बैठना पड़ा। नर्सों ने मुझे कहा कि ऐसे ही कुछ स्टैप सारा दिन मुझे चलना चाहिए ताकि ऑपरेशन का ज़ख़्म सैट हो जाये।
आज तो छोटे से ऑपरेशन के लिए डिस्पोजेबल स्टिच्ज ही लगाते हैं लेकिन उस समय ऑपरेशन के ज़ख्म ऐसे सीते थे जैसे किसी कपडे को सूई के साथ सीआ गया हो और एक बात और भी थी कि उस समय कोई पेन किलर भी नहीं देते थे। यही वजह थी कि हर स्टैप चलना हम को पहाड़ चढ़ने के बराबर दिखाई देता था। रोज़ी और मेरी बैड साथ साथ हो गई थी और हम कुछ मिनट बाद अपनी बैड से उठते है और कुछ स्टैप चलते, फिर बैठ जाते। स्टिच्ज इतने दर्द करते थे कि हम हाय हाय करने लगते और कभी हम एक दूसरे को देख कर हंस पड़ते। दिनबदिन दर्द कम होने लगा। आज तो ऐसे ऑपरेशन के बाद उसी दिन घर भेज देते हैं, ज़्यादा से ज़्यादा दूसरे दिन तो जरूर ही भेज देते हैं लेकिन उस समय एक हफ्ता और कभी दस दिन बाद ही घर भेजते थे। एक हफ्ते बाद हमें घर जाने की छुटी मिल गई और एक हफ्ते बाद हमें दुबारा हसपताल आ कर स्टिच्ज काटने के लिए बता दिया गया।
अब मैं धीरे धीरे चलने लगा था और दूसरे हफ्ते मैं स्टिच्ज कटवाने के लिए हसपताल जा पहुंचा। एक वैस्ट इंडियन नर्स ने एक ब्लेड से सभी स्टिच्ज काट दिए। स्टिच्ज काटने के बाद मुझे ऐसा मालूम हुआ जैसे किसी ने मुझे एक रस्से से बाँध रखा था और अब रस्सा खोल दिया गया हो। अब कुछ आसान हो गया था। कुछ दिन बाद मैं अपने डाक्टर मिस्टर रिखी के पास गया और उस ने मुझे तीन महीने का सिक नोटिस दे दिया कि मैं तीन महीने बाद ही काम पर जाऊं किओंकी बस चलाने से कम्प्लिकेशनज हो सकती थी। अब रोज रोज मैं पार्क में चले जाता, घूमता फिर्ता लोगों से बातें करता, फूलों को निहारता और कुछ देर बाद घर आ जाता। गाड़ी मैं अभी चला नहीं सकता था, इस लिए कहीं जा भी नहीं सकता था और अब बोरियत महसूस होने लगी थी लेकिन क्या करता, यह भी तो ज़िंदगी का एक  हिस्सा ही था।
चलता.  . . . .

6 thoughts on “मेरी कहानी 123

  • मनमोहन कुमार आर्य

    इस किश्त को पढ़कर दो बाते याद आईं। जिंदगी कैसी है पहेली कभी तो हसाये कभी ये रुलाय और नानक दुखिया सब संसार। आपको कई महीने तक कष्ट झेलने पड़े. पढ़कर यह भी लगा कि अज्ञानता ही दुखों का कारण होती है। अंत भला सो भला की कहावत के अनुसार आपरेशन सफर होकर दुःख दूर हुवे। मनुष्य के ऊपर जब शारीरिक कष्ट आता है तो वह डर वा आशंका आदि से हिल सा जाता है। अतः सबको आहार वा विहार पर ध्यान देना चाहिए। शुभकामनायें। हार्दिक धन्यवाद एवं नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी।

    • मनमोहन भाई ,धन्यवाद . दुःख सुख जिंदगी का एक हिस्सा ही है . दुःख आये और चले गए .अब जो है वोह भी कोई परवाह नहीं .१२ अप्रैल को मेरी अपने निओरोलोजिस्ट से अपौएन्त्मैन्त थी . बेटा साथ था . डाक्टर बोला कि इस बीमारी से ज़िआदा से ज़िआदा इंसान तीन से पांच साल सरवाइव कर सकता है और मैं ही उस का ऐसा पेशैंट हूँ जो दस साल में भी फ्रेम के साथ चल रहा हूँ . यह बीमारी ज्नैटिक है और इस का कोई कारण नहीं है औरे न ही इस का कोई इलाज है .बस सही खुराक और रेगुलर योग ऐक्सर्साइज़ से मैं ठीक से जा रहा हूँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत रोचक कहानी, भाईसाहब ! आपने स्वास्थ्य के बारे में जो लिखा है वह सबकी आँखें खोल देने वाला है. हम साद के वशीभूत होकर बहुत सी चीजें बहुत अधिक मात्र में खा जाते हैं और फिर उनका दुष्परिणाम भुगतते हैं.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी हिंदी-पंजाबी मिश्रित भाषा बहुत रोचक होती है, फिर हम तो आपके यादों के दरीचे की सुंदरता, आपकी भाषा-शैली और आपकी मानवीय संवेदनाओं की प्रस्तुति में ही इतने खो जाते हैं, कि बाकी किसी बात की ओर ध्यान ही नहीं जाता. अति सुंदर व रोचक एपीसोड के लिए आभार.

  • लीला बहन ,आप का बहुत बहुत धन्यवाद , हाँ, यहाँ यहाँ कोई गलती हो, कृपा जरुर इमेल कर दें, ताकि मैं उन को सुधार सकूँ .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, इस मार्मिक एपीसोड में आपकी भाषा-शैली और आपकी मानवीय संवेदनाओं की प्रस्तुति अद्भुत लगी. यों तो हम रोज़ बहुत कुछ पढ़ते-लिखते हैं, पर बहुत समय पश्चात इतनी साहित्यिक भाषा-शैली के दर्शन हुए हैं. एक अद्भुत एपीसोड के लिए शुक्रिया.

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