जीवन इक रंगमंच है
ओढ़ मुखौटा
बन कठपुतली
जीएं सारे
इस रंगमंच में….
खुद को भुला
नित नयी भूमिका
निभायें सारे
इस रंगमंच में….
खोखले नाते
बनावटी रिश्ते
भरे हुए हैं
इस रंगमंच में….
चढ़ा के आवरण
नफरत पे प्यार का
दोहरा जीवन जीयें सारे
इस रंगमंच में….
— अंजु गुप्ता