कविता

आख़िर कैसा यह व्यवहार

रिश्ते -नाते न बदले अब – बदल गया व्यवहार /
हाव भाव उनके अब देखो – कैसा शिष्टाचार /
चाय नाश्ता करके आते – रहे प्रतिष्ठा पाल /
एक मे आधा करके खाते – बहुत हैं खाए यार /
ऐसे वाणी जो भी बोले समझ लो उनका प्यार
आख़िर कैसा यह व्यवहार ——
एक नहीं हर पक्ष है बदले- मन का माया जाल/
अरबी अँग्रेज़ी मे बोले स्वर सरगम हर ताल /
मोह काम की पहन के ठठरी खड़ा है तन के द्वार /
अवधी मे हम का लिखी देही बड़ा अवध से प्यार/
आख़िर कैसा यह व्यवहार—-
राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

5 thoughts on “आख़िर कैसा यह व्यवहार

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      प्रिय मित्र रमेश सिंह जी आपके स्नेह के लिए आभार मंच पर रचना के साथ- साथ प्रतिक्रिया होती रहे तो साहित्य मे रम्यता आ जाती है —

  • सब डब्बल स्टैण्डर्ड ही है , कविता अच्छी लगी .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय भामरा जी प्रणाम आपका स्नेह पाकर मेरी रचना सार्थक हुई हार्दिक आभार

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