आख़िर कैसा यह व्यवहार
रिश्ते -नाते न बदले अब – बदल गया व्यवहार /
हाव भाव उनके अब देखो – कैसा शिष्टाचार /
चाय नाश्ता करके आते – रहे प्रतिष्ठा पाल /
एक मे आधा करके खाते – बहुत हैं खाए यार /
ऐसे वाणी जो भी बोले समझ लो उनका प्यार
आख़िर कैसा यह व्यवहार ——
एक नहीं हर पक्ष है बदले- मन का माया जाल/
अरबी अँग्रेज़ी मे बोले स्वर सरगम हर ताल /
मोह काम की पहन के ठठरी खड़ा है तन के द्वार /
अवधी मे हम का लिखी देही बड़ा अवध से प्यार/
आख़िर कैसा यह व्यवहार—-
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
सुंदर!!
प्रिय मित्र रमेश सिंह जी आपके स्नेह के लिए आभार मंच पर रचना के साथ- साथ प्रतिक्रिया होती रहे तो साहित्य मे रम्यता आ जाती है —
सुंदर!!
सब डब्बल स्टैण्डर्ड ही है , कविता अच्छी लगी .
आदरणीय भामरा जी प्रणाम आपका स्नेह पाकर मेरी रचना सार्थक हुई हार्दिक आभार