गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : तुम्हें ख़त लिख रहा हूँ

तुम्हें ख़त लिख रहा हूँ |
लगी लत लिख रहा हूँ ||
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दीवारें वालिदा को |
पिता छत लिख रहा हूँ ||
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बड़ों से झुक के मिलना |
लियाकत लिख रहा हूँ ||
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ये कत्लेआम दहशत |
कयामत लिख रहा हूँ ||
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मुहब्बत से ही आदम |
सलामत लिख रहा हूँ ||
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बढ़े जो दाम रोटी |
कसालत लिख रहा हूँ ||
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बहस घर वापसी पर |
सियासत लिख रहा हूँ ||
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कसालत = आलस्य

आलोक अनंत 

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

3 thoughts on “ग़ज़ल : तुम्हें ख़त लिख रहा हूँ

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा गज़ल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा गज़ल

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