ब्लॉग/परिचर्चा

कहीं टमाटर का नाम ही तो नहीं मिट जाएगा?

लगता है कयामत आने वाली है,
टमाटर के अभाव में शामत आने वाली है,
बन चुका है अब टमाटर एक बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा,
घर का फ्रिज भी टमाटर के बिना सूना-खाली है.

प्याज़ ने तो पहले भी कई बार रुलाया है,
लगता है अब टमाटर का नंबर आया है,
हाहाकार मच गया है चारों ओर,
न जाने पड़ा किस बला का सरमाया है.

बचपन में सुना था एक चुटकुला एक भिखारी का,
सेठ ने दरवाज़ा खोलकर देखा और कहा ‘टमाटर खा’,
भिखारी खुश था, तभी अंदर से नौकर आया और बोला,
“यहां क्यों खड़े हो, हमारे सेठ जी तो तोतले हैं,
वे ‘क’ को ‘ट’ बोलते हैं, मतलब ‘ जा, कमाकर खा’.

अब वैसी बात नहीं है, बहुत ही गंभीर है,
उसको भी नहीं मिलता टमाटर, जो अमीर है,
जिसके पास टमाटर का अच्छा-ख़ासा स्टॉक है,
उसका तो पहले ही बिक गया अंतर्मन का ज़मीर है.

टमाटर पर ब्लॉग-के-ब्लॉग लिखे जा रहे हैं,
लेखक टमाटर के बिना सब्ज़ी खाने की सलाह दे रहे हैं,
या फिर पूरा परिवार ही व्रत रखकर पानी पीकर सो जाए,
और भी ढेरों परामर्श वे सबको दे रहे हैं.

फेसबुक और ट्विटर भला क्यों पीछे रहें,
आखिर लोग अपनी व्यथा किससे कहें,
या तो सोशल साईट्स पर अपनी भड़ांस निकालें,
या फिर मौनी बाबाओं की तरह बिलकुल मौन रहें.

एक डॉयलॉग भी हिट हो रहा है कि,
टमाटर अब न्यूज में आते हैं, घरों में नहीं,
टमाटर की महंगाई ने तो पेट्रोल को भी मात कर दिया,
डॉलर की भी इसके सामने कोई हैसियत नहीं.

न टमाटर में किक है, जो लोगों को लग रही है,
11 राज्यों की सरकारें उसको ही ढूंढ़ रही हैं.
पर, टमाटर को खरीदना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है,
यह आम जनता पुकार-पुकारकर कह रही है.

कॉमनवेल्थ में 5 गोल्ड की जगह, अगर 5 टमाटर दिए जाते,
तो देशवासी ज़्यादा खुश होते और तालियां बजाते,
लोग किडनी बेचकर टमाटर खरीदने जा रहे हैं,
क्योंकि घरवाले सब्ज़ी के लिए टमाटर हैं मंगाते.

लोग दोनों हाथ देकर भी टमाटर लेने को तैयार हैं,
वे ढाई किलो टमाटर लेकर, उठ जाने को भी दमदार हैं,
बंगला, गाड़ी और बैंक बैलेंस की क्या औकात,
वही संतुष्ट है, जिसके पास टमाटर दो-चार हैं.

करण अर्जुन जब दो किलो टमाटर लाएंगे,
तभी तो वे घरवालों के मन को भाएंगे,
आज भी फेंके हुए पैसे नहीं कोई नहीं उठाएगा,
हां, टमाटर हो तो कतई छोड़कर नहीं जाएंगे.

कई बड़े घरों से भी शादी के रिश्ते इसलिए आ रहे हैं,
क्योंकि, किसी ने अफवाह उड़ा दी कि साहबज़ादे बेचते टमाटर हैं,
घर पे इनकम टैक्स वालों और चोरों का खतरा मंडरा रहा है,
लोग बैंक के लॉकर में टमाटर रखने को तैयार हैं.

न जाने कब तक यह टमाटर हमें ऐसे सताएगा,
आदमी दो जून की रोटी भी ढंग से कब खा पाएगा,
कृपा करके कोई तो इसका जवाब दे दो मेरे प्यारो,
कहीं टमाटर का नाम ही तो नहीं मिट जाएगा?

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “कहीं टमाटर का नाम ही तो नहीं मिट जाएगा?

  • जवाहर लाल सिंह

    आदरणीया लीला महोदया ने कविता क्या खूबसूरत बनायी है, अब तो टमाटर के ढेर में बहुतो की शामत आयी है ! बहुत सुन्दर आदरणीया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा ,टमाटर की व्यथा और यह कविता में बिआन बहुत अच्छा लगा . मह्न्घाई तो यहाँ भी जोरों शोरों पर है लेकिन हर चीज़ मिल तो जाती है . इंडिया में जो hoarding की आदत बनी हुई है ,जिस से विओपारी पैसा बनाते हैं ,यही सब से बुरी बात है और दुःख की बात यह है किः हकूमत भी इस पे लगाम नहीं लगाती .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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