ग़ज़ल
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ वो जब भी मुस्कुराती है,
मैं घर आऊँ तो मुझको देखके बाहें फैलाती है
समझता हूँ खुद को मैं जहां में सबसे खुशकिस्मत,
मेरी नन्हीं परी जब-जब मुझे पापा बुलाती है
नहीं वो माँगती मुझसे मेरी औकात से बढ़कर,
नज़र भर देख लो इतने में ही वो खुश हो जाती है
भरी आँखों से मैं तो देखता रहता हूँ छुप-छुप के,
मेरी गुड़िया जब भी गुड़ियों की शादी रचाती है
ओ माँ की कोख में ही बेटियों को मारने वालो,
तुम्हें मालूम क्या इक बेटी घर को घर बनाती है
— भरत मल्होत्रा
बेहद सुन्दर और शिक्षाप्रद ग़ज़ल के लिए बधाई