राजनीति

बसपा को झटकों के बावजूद मायावती के हौसले बुलंद

जिस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही थी वह अब सच साबित हो रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य की बगावत के बाद अब बसपा को एक के बाद एक झटके लगना शुरू हो गये हैं। बसपा महासचिव आर.के. चौधरी ने भी बसपा से बगावत कर दी है। बसपा छोड़ते समय आर.के. चौधरी ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर लगभग उसी प्रकार के संगीन आरोप लगाये हैं जिस प्रकार के आरोप स्वामी प्रसाद मौर्य व बसपा से बगावत करने वाले पूर्व नेतागण लगा चुके हैं। इससे बसपा के मिशन फतह को लेकर बसपा के थिंकटैंक का चिंतित होना स्वाभाविक है। आर.के. चौधरी ने बसपा छोड़ते समय आरोप लगाया है कि बसपा रियल स्टेट कंपनी बनकर रह गयी है। बसपा से बगावत कर रहे लोगों का आरोप है कि बसपा ने डा अंबेडकर व मान्यवर कांशीराम के विचारों को उठाकर ताक पर रख दिया है। मायावती अब केवल दौलत कमाने में जुट गयी हैं। कार्यकर्ता उपेक्षा के कारण निराश और हताशा में डूबा हुआ है।

अब जब बसपा से बगावत करने वाले नेता इस प्रकार के संगीन आरोप लगाकर बसपा का त्याग कर रहे हैं तो बसपा का मिशन-2017 और 300 सीटें जीतने का लक्ष्य पिछड़ने के आसार नजर आने लगे हैं। इन सबके बावजद बसा सुप्रीमो मायावती और उनके परम दल सहयोगी नसीमुददीन सिद्दीकि ओर सतीशचंद्र मिश्र के हौसले बुलंदी पर हैं। अब बसपा की ये जोड़ियां और अधिक आक्रामक होकर पीएम मोदी भाजपा और सपा पर हमला बोलने लग गयी हैं। नसीमुददीन सिद्दीकि ने तो स्वामी प्रसाद मौर्य को कचरा तक कह डाला है जबकि मायावती का भाजपा के बारे में कहना है कि वह देवी-देवताओं का नाम भी जप ले, तो भी उसे सत्ता नहीं मिलने वाली है। चाहे जो हो, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव प्रदेश व देश की राजनीति के लिए एक नयी कहानी लिखने वाले हैं। जिस दल का आत्मबल जितना अधिक मजबूत होगा वह उतनी अधिक सफलता प्राप्त करेगा।

ज्ञातव्य है कि आर.के. चौधरी बसपा के पहले से पुराने कद्दावर नेता रह चुके हैं। वे इससे पहले भी बसपा छोड़ चुके हैं, यह उनका बसपा से दोबारा मोह भंग हुआ है। ज्ञातव्य है कि चौधरी पासी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। वह मोहनलालगंज से विधायक रह चुके हैं। चौधरी का कहना है कि बसपा कार्यकर्ता को यह लग रहा है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी को मंझधार में छोड़ दिया है और टिकटों आदि की नीलामी करवाकर अंधाधुंध कमाई कर रही हैं। चौधरी का कहना है कि मान्यवर कांशीराम ने पूरे देश में सामाजिक परिवर्तन का एक महाआंदोलन खड़ा कर दिया था जो कि अब मटियामेट हो चुका है। उधर बसपा के पूर्व सांसद बृजेश पाठक का कहना है कि आर.के. चौधरीजब बसपा में थे, तब भी कोई लाभ नहीं हुआ था और न ही उनके जाने से कोई नुकसान होगा।

आर.के. चौधरी की बसपा से बगावत सोशल मीडिया में चर्चा का कारण बनी हुयी है। सोशल मीडिया में लोगों का कहना है कि अब बसपा के चुनावी अभियान पर असर तो पड़ेगा। वहीं कुछ का कहना है कि इसमें किसी बड़ें दल की साजिश नजर आ रही है। लोगों का इशारा भाजपा और कांग्रेस की तरफ था। वह इसलिए भी क्योंकि भाजपा 14 वर्षों के बाद 73 सांसदों के बल पर विधानसभा चुनाव फतह करने की जोरदार तैयारी कर रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी भी इस बार प्रशांत किशोर के सहारे सटीक रणनीति तैयार कर रही है तथा उसे भी दलित और पिछड़े नेताओं की दरकार है। लेकिन इस बार इस खेल में भाजपा व संघ अधिक तेजी दिखा रहे है। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि अभी तक किसी भी बगावती नेता ने किसी बड़े विरोधी दल का दामन नहीं थामा है हालांकि उनके दरवाजे सभी दलों के लिए खुले हैं।

आर.के. चौधरी अपने बीएस-4 को पुनर्जीवित करने जा रहे हैं। जब चौधरी ने बसपा छोड़ने का ऐलान किया उस समय कई और कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भी बसपा को झटके पर झटके दिये हैं। आगामी 11 जुलाई को आर.के. चौधरी अपनी आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे। बसपा को पहले भी कई प्रकार के दबावों के झेलने का खतरा मंडरा रहा था। जिसमें भारी संख्या में छोटे दलों का गठबंधन और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की उप्र में मौजूदगी भी बसपा के लिए बड़ा खतरा बन रहे थे। इन बगावतों ने बसपा सुप्रीमो मायावती की चिंता बढ़ा दी है। अब मायावती सपा और पीएम मोदी के खिलाफ और अधिक मुखर हो सकती हैं तथा बसपा का तोड़ने की साजिश रचने का आरोप भी लगा सकती हैं। वहीं दूसरी ओर इस बात की प्रबल संभावना नजर आ रही है कि अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए बसपा के कई और नेता बगावत का रास्ता अपना लें।

मृत्युंजय दीक्षित