कवितापद्य साहित्य

~~तोल मोल के बोल~~

तोल मोल के बोल,
शब्द बड़े है अनमोल।
दुखे दिल किसी का ,
मुख से ऐसा कुछ न बोल|

वाणी में अपने अमृत घोल,
कड़वा तू कभी न बोल|

शब्द ऐसे न बोल कभी,
जो घाव कर जाऐ।
अन्दर ही अन्दर दिल का,
जो नासूर बन जाऐ|

निकले न मुख से वह शब्द जिससे,
किसी के मन में मलाल आये।
और सामने वाला दुःखी हो जाऐ ,
शब्द बाण से विचलित हो जाऐ।

शब्द नेक बढाएं मान सदा,
कुटिल शब्द अपमान करा जाएं|

तीर तलवार के घाव भर जाते है,
शब्दों के घाव नासूर बन जाते हैं।
सोच-समझ के ही तू बोल जरा,
कम बोलने वाले ही सबको भाते हैं |

उटपटांग बोल,
समय- समय पर,
दिल को उद्धेलित करते है,
घृणा-इर्ष्या, बदले की आग को,
सदा प्रज्जवलित करते है।

शब्द कहो नहीं ऐसे, जिससे,
किसी को घृणा हो जावे,
कानों में पड़ते ही शब्द,
ह्रदय तार-तार हो जावे|

बोलो ऐसे शब्द जो कर्ण प्रिय हो,
हृदय भी शब्द -सार से प्रफुल्लित हो।

तोल मोल के बोल,
शब्द बड़े है अनमोल।
प्यार के मीठे दो बोल से
दिल के दरवाजे तू खोल|
तोल मोल के बोल…

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|