लघुकथा

“नागपंचमी की याद”

सादर सुप्रभात मित्रों कल नेट समस्या के वजह से मन की बात न कह पाया, अत, पावन नागपंचमी की बधाई आज स्वीकारें……

कल की बात है गाँव फोन किया तो पता चला आज दिन में नागपंचमी है और शाम को नेवान। मैंने कहाँ मना लेना भाई, साल का त्यौहार है। हम तो ठहरे परदेशी कहाँ नागपंचमी और कहाँ नेवान। बासी जिंदगी और बासी पकवान यहाँ सुलभ है चाहों जितना खा लो और खेल लो। गांव छूटा चिक्का और कबड्डी सपना हो गया हैं। अब तो याद भी नहीं आती, उछल- कूद सब खयाली पुलाव है और नया अन्न, खा तो लेते हैं पर देख नहीं पाते फिर नेवान किसका करें। प्रणाम किसको करें, यहां दिन में ही कोई किसी के घर नहीं जाता तो रात में राम रामी कैसे होगी, हाँ झुल्ला सबके घर है और लोग 365 दिन झूलते रहते हैं और बनाते खाते रहते हैं। अपनी बताओ, अरे भइया, ना पूछो अब गाँव भी कम नहीं है न नाग न पंचमी, सब पुरानी बाते हैं अब कोई कही नहीं नहीं जाता, अपने अपने ओसारे में ही सब लोग, अपने तरह से कुश्ती कर लेते हैं और चिक्का कूद लेते हैं। हां नेवान जरूर करते हैं पर घूम कर सबसे आशीर्वाद लेना, अपने आप को छोटा मानने का काम है अतः लोग छोटा काम नहीं करते, रही बात झूले की तो न ढंग के पेड़ हैं न कोई अब झूलना ही पसंद करता है। बिना झूले के ही सबको घूमटा आ जाता है और लोग चकराने लगते हैं। अब तो फेसबुक, वाट्सएप पर ही सारे त्यौहार, रश्म- रिवाज मनाए जाते हैं। अच्छा भइया अब चलते हैं सब्जी लाना है कल नेवान के बाद नेट महाराज खुश रहे तो प्रणाम, आशीर्वाद होगा। जय राम जी की………
आप सभी को नागपंचमी और नवान्न की हार्दिक बधाई सह मंगलमयी शुभकमना…….
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ