सामाजिक

रक्षाबंधन के समान दूसरा त्योहार नहीं

 मिश्री के समान मीठा , मखमल के समान मुलायम । रोली – कुमकुम के समान पावन । रेशम के समान मजबूत ।पूर्णिमा के चाँद के समान दुलारा ।प्यार से भी प्यारा ।यदि कोई पर्व है तो वह है रक्षाबंधन। इसे राखी का भी त्योहार कहते हैं ।यह त्योहार भाई – बहन के पवित्र प्यार और भरोसे का प्रतीक तो है ही सामाजिक सद्भाव का भी द्योतक है।त्योहार तो बहुत हैं , पर रक्षाबंधन जैसा दूसरा नहीं ।जब एक बहन हृदय की अतल गहराइयों से अपने भाई के प्रति अपने प्रेम और उद्गार को प्रकट करती है ।चाहे वह नन्हीं- सी बच््ची हो ,चाहे नातियों – पोतियों वाली नानी -दादी ।पर , आज के दिन तो वह सिर्फ अपने भाई की बहन होती है । बाकी सब रिश्‍ते गौण ।बहनें हफतों पहले से जुट जाती हैंराखी की तैयारी में ।वैसे बाजार भले न जांये , पर अपने मन की राखी खरीदने तो जरूर जायेंगी ।जो बहनें इस दिन ससुराल से मयके नहीं आ पातीं या जिनका भाई परदेष में होता है, वह तो 15 दिन पहले से ही अपनी राखी स्पीड -पोस्ट से भेजकर राखी का पहँुचना सुनिश्‍ि‍चत कर लेती हैं । भले दो ही शब्द लिखें पर , लिखेंगी जरूर – भैया ! मुझे मालूम है । तुम्हें छुट्टी नहीं मिल पा रही होगी ।चिंता न करना । राखी भेज रही हूँ । बाँध जरूर लेना । मैं तुम्हारी लुबी उम्र की कामना करती हूँ । तुम्हारी बहन । राखी के दिन रोली – अक्षत , कुमकुम ,घी का दिया जलाकर रंग- बिरंगी राखियों से बहनें पहले थाल सजाती हैं। मिर भाई की दाहिनी कलाई में रेषमी राखी बाँघती हैं। भाई का मुँह मीठा कराती हैं और उसकी लंबी उम्र की ईश्‍वर से प्रार्थना करती हैं । भाई , बहन को उपहार प्रदान करता है। साथ ही किसी कठिनाई व मुसीबत में बहन की सहायता व रक्षा के लिए वचनबद्ध होता है ।इसीलिए रक्षाबंधन के इस धागे को ‘रक्षासूत्र‘ भी कहा जाता है ।इस रक्षासूत्र का एक जंबा इतिहास है । कहने को तो यह हिंदंुओं का त्येाहार है , जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । लेकिन यह त्येाहार जाति और मजहब से कहीं ऊपर है। अन्यथा मेवाड़ की राजमाता कर्मावती चित्तौड़ की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी क्यों बाँधती । इसी प्रकार सिकंदर की जान बचाने के लिए उनकी पत्नी ने महाराज पोरस को राखी बाँध दी थी । इतिहास साक्षी है हुमायूँ और पोरस ने अपनी मुँहबोली बहनों के सम्मान की रक्षा कैसे की । षिषुपाल वध के समय कृश्ण के हाथ में चोट लग गयी थी और खून बहने लगा था , तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक कोना फाड़कर बाँध दिया था । कृष्‍ण ने दौपदी को बहन मानते हुए उनकी रक्षा की –
—डॉ डी एम मि‍श्र
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*डॉ. डी एम मिश्र

उ0प्र0 के सुलतानपुर जनपद के एक छोटे से गाँव मरखापुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्म । शिक्षा -पीएच डी,ज्‍योतिषरत्‍न। गाजियाबाद के एक पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में कुछ समय तक अघ्यापन । पुनश्च बैंक में सेवा और वरिष्ठ -प्रबंघक के पद से कार्यमुक्त । प्रकाशित साहित्य - देश की प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में 500 से अधिक गीत, ग़ज़ल, कविता व लेख प्रकाशित । साथ ही कविता की छः और गजल की पांच पुस्तकें प्रकाशित, ग़ज़ल एकादश का संपादन। गजल संग्रह '- आईना -दर-आईना ,वो पता ढूॅढे हमारा , लेकिन सवाल टेढ़ा है , काफ़ी चर्चित। पुरस्कार - सम्मान ----- जायसी पंचशती सम्मान अवधी अकादमी से 1995, दीपशिखा सम्मान 1996, रश्मिरथी सम्मान 2005, भारती-भूषण सम्मान 2007, भारत-भारती संस्थान का - लोक रत्न पुरस्कार 2011, प्रेमा देवी त्रिभुवन अग्रहरि मेमोरियल ट्रस्ट अमेठी प्रशस्ति -प़त्र 2015, उर्दू अदब का - फ़िराक़ गोरखुपरी एवार्ड 2017, यू पी प्रेस क्लब का -सृजन सम्मान 2017, शहीद वीर अब्दुल हमीद एसोसियेशन द्वारा सम्मान 2018, साहित्यिक संघ वाराणसी का सेवक साहित्यश्री सम्मान 2019 आदि । अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ राष्ट्रीय स्तर के कुछ प्रमुख संकलनों में भी मेरी रचनाओं ( गीत, ग़ज़ल, कविता, लेख आदि ) को स्थान मिला है । जैसे -- भष्टाचार के विरूद्ध, प्राची की ओर , दृष्टिकोण , शब्द प्रवाह , पंख तितलियों के, माँ की पुकार, बखेडापुर, वाणी- विनयांजलि , शामियाना , एक तू ही, आलोचना नही है यह, परम्परा के पडाव पर गाँव, अजमल: अदब, अदीब और आदमी, युगांत के कवि त्रिलोचन, कथाकार अब्दुल बिस्मिल्ला: मूल्यांकन के विविध आयाम, हिन्दी काव्य के विविध रंग, समकालीन हिन्दी गजलकार एक अध्ययन खण्ड तीन- हिंदी ग़ज़ल की परम्परा सं हरे राम समीप , हिंदी ग़ज़ल का आत्मसंघर्ष, सं सुशील कुमार, ग़ज़ल सप्तक सं राम निहाल गुंजन आदि संकलनों में शामिल । अन्य - आकाशवाणी, दूरदर्शन, आजतक, ईटीवी , न्यूज 18 इंडिया आदि चैनलों पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित। अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों, मुशायरों व गोष्ठियों में सक्रिय सहभागिता। सम्पर्क -604 सिविल लाइन, निकट राणाप्रताप पी. जी. कालेज, सुलतानपुर एवं ए - 1427 /14, इंदिरानगर, लखनऊ । मोबाइल नं. 09415074318, 07985934703 ई मेल - dmmishra28@gmail.com, dmmishra865@gmail.com

One thought on “रक्षाबंधन के समान दूसरा त्योहार नहीं

  • डॉ डी. एम. मिश्र

    एक लेख पोस्‍ट कि‍या । देखि‍येगा

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